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शुभेच्छा
| 33 समीक्षात्मक दृष्टि डालते हुए २० पृष्ठीय भूमिका थी। उनकी समीक्षात्मक भूमिका ने मन मुग्ध किया था। 'भक्तामर-भारती' पर मैंने अपना अभिमत 'शोधादर्श-२४', नवम्बर १९९४ ई., में अभिव्यक्त किया था। __ डाक्टर साहब द्वारा सम्पादित त्रिभाषी मासिक पत्रिका 'तीर्थंकर वाणी' मेरे यहाँ आती रही है और सम्पादकियों में व्यक्त उनके विचार ध्यान आकर्षित करते रहे हैं। ___ २९ दिसंबर को शेखरचन्द्र जी का ६९वां जन्मदिवस है। मेरी शुभकामना है कि वह स्वस्थ रहें, दीर्घकाल तक समाजसेवा और साहित्य साधना में संलग्न रहें और उनका सुयश वृद्धिंगत रहे।
श्री रमाकान्त जैन संपादक- शोधादर्श, लखनऊ
- आदर्श शिक्षक, साहित्यसाधक और समाजसेवी । यह जानकर परम प्रमोद का अनुभव कर रहा हूँ कि निरन्तर पुरुषार्थ के बल से प्रगति-शिखर पर आरोहण । करने वाले डॉ. शेखरचन्द्र जैन के अभिनन्दन ग्रन्थ का प्रकाशन हो रहा है। डॉ. जैन की जैन विद्वानों में एक अलग
पहिचान है। लाग-लपेट से दूर स्पष्टवादिता उनका मौलिक गुण है, जो प्रायः अन्यत्र दुर्लभ सा ही दृष्टिगोचर होने लगा है। एक आदर्श शिक्षक के रूप में प्राथमिक कक्षाओं के सुकोमल मति बालकों से लेकर अनुसंधान के तर्कवितर्क से कर्कश प्रौढ़ छात्रों में भी उनकी अतुलनीय प्रतिष्ठा है। उनका साहित्य सृजन राष्ट्रभाषा हिन्दी एवं समृद्ध प्रान्तीय भाषा गुजराती को अनुपम भावराशियों का अनुकरणीय उपहार प्रदान करने में समर्थ रहा है। उपन्यास लेखन के क्षेत्र में उनकी भावनाओं की अभिव्यक्ति देखने को मिलती है तो कहानी लेखन में वे एक उपदेष्टा के रूप में दृष्टिगत होते हैं। शोध-ग्रन्थ एवं समीक्षा लेखन में उनका आलोचक पक्ष निर्भय होकर समाज की सही स्थिति प्रस्तुत करता है। एक अच्छे सम्पादक के गुण देखना है तो डॉ. जैन द्वारा सम्पादित 'तीर्थंकर वाणी' मासिक को देखा जाता है। इसमें जहाँ एक ओर गुरुभक्ति है, तो दूसरी ओर उनके शिथिलाचार-अनाचार पर घातक प्रहार भी हैं। ___सामाजिक सेवा के क्षेत्र में डॉ. जैन कुशल नेता हैं। पिछले २५ वर्ष से मुझे उनका आशीर्वाद, निर्देश एवं परामर्श प्राप्त होता रहा है। उनके अनुकरण से मुझमें स्पष्टवादिता, निर्भयता और आगमनिष्ठा दृढतर हुई है। । पुरस्कार पाकर भी वे पुरस्कार प्रदाता संस्थान के गुलाम नहीं बनते हैं, अपितु उसकी कमियों को दूर करके उसके विकास की भावना भाते हैं। ___ अग्रज डॉ. शेखरचन्द्र जैन के अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशन के अवसर पर मैं भावना भाता हूँ कि वे स्वस्थ एवं चिरायु रहें तथा देश, समाज एवं धर्म की और अधिक निष्पक्ष भाव से सेवा करते रहें। उनके प्रति मेरे विनम्र प्रमाण स्वीकारें।
श्री जयकुमार जैन वरिष्ठ उपाध्यक्ष-शास्त्रि परिषद, मुजफ्फरनगर