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स्मृतियों के वातायन से विनोदी व्यक्तित्व
भाई श्रीमान् डॉ. शेखरचन्द्रजी का व मेरा शास्त्रि परिषद और 'तीर्थंकर ऋषभदेव जैन विद्वत् महासंघ' दोनों संस्थाओं में एक लम्बे समय तक साथ रहा है। वे कुशल एवं विनोदी व्यक्तित्व के बहुमुखी प्रतिभावान् मनीषी हैं। उनके अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशन के अवसर पर मेरी शुभकामनायें। वे दीर्घजीवी होकर जैनधर्म का प्रचार-प्रसार कर विद्वानों को प्रेरणा प्रदान करते रहें।
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श्री शिवचरणलाल जैन (मैनपुरी) संरक्षक-भ. ऋषभदेव जैन विद्वत महासंघ
बहुमुखी प्रतिभा के धनी
वर्तमान जैन विद्वानों की श्रृंखला में डॉ. शेखरचन्द्र जैन एक स्थापित नाम है जिनकी बहुमुखी प्रतिभा को ' फूल की सुवास की तरह सर्वत्र मेहसूस किया जा सकता है; चाहे वह शिक्षा का क्षेत्र हो या पत्र सम्पादन का स्वास्थ्य सेवा का क्षेत्र हो या मंच संचालन का । चाहे शोध-वाचन हो या शास्त्र वाचन, वे अपनी वाक् प्रतिभा से सर्वत्र प्रभावित करते हैं।
जैन सम्प्रदायों में समन्वय के पक्षधर, जमीन से उठकर शिखर तक पहुंचने वाले डॉ. शेखरचंद्रजी से मेरा करीब एक दशक का परिचय है। उन्हें मैंने सदैव प्रफुल्लित एवम् ऊर्जा से परिपूर्ण पाया है।
ऐसे विलक्षण प्रतिभा सम्पन्न डॉ. जैन का अभिनन्दन वस्तुतः उनके व्यक्तित्व एवम् कृतित्व की समीचीन अनुमोदना है। इस अवसर पर मुझे आशा और विश्वास है कि 'स्मृतियों के वातायन से' पुस्तक का प्रकाशन, समाज को एक नई चेतना देगा तथा युवा पीढ़ी को पुरुषार्थ की यथार्थ परिभाषा से अवगत कराने में सक्षम होगा ।
डॉ. शेखरचन्द्र जैन के लिए तो इस अवसर पर मैं यहीं कहूँगा कि Still there are Miles to Go before Sleep. मेरी उनके लिए हार्दिक शुभकामनाएँ तथा अभिनन्दन समिति के आयोजन कर्ताओं को हार्दिक बधाई एवम् अनेकशः साधुवाद।
श्री चीरंजीलाल बगड़ा प्रधान संपादक 'दिशाबोध', कोलकाता
शुभकामना
यह जानकर अतीव प्रसन्नता हुई कि बन्धुवर डॉ. शेखरचन्द्र जैन का अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित होने जा रहा है। अनेक उपाधियों से अलंकृत, विविध पुरस्कारों से पुरस्कृत, हिन्दी साहित्य और जैन साहित्य की अभिवृद्धि में रत, बहुआयामी प्रतिभा के धनी शेखरचन्द्रजी वस्तुतः अभिनन्दनीय हैं।
१४ नवम्बर, १९९४ ई., को मुझे साहित्यमनीषी पं. कमलकुमार जैन शास्त्री 'कुमुद', खुरई (सागर), द्वारा संकलित - सम्पादित तथा श्री खेमचंद्र जैन चैरिटेबल ट्रस्ट, सागर, द्वारा प्रकाशित, 'भक्तामर - भारती' की प्रति प्राप्त हुई थी। उसमें भक्तामर स्तोत्र के विभिन्न भाषाओं के १२१ पद्यानुवाद समाहित थे और 'सचित्र भक्तामर रहस्य' से उद्धृत मेरे पिताजी डॉ. ज्योति प्रसाद जैन की 'आविर्भाव' शीर्षक से विशद प्रस्तावना थी । साथ ही, प्रवचनमणि वाणीभूषण डॉ. शेखरचन्द्र जैन की अमर काव्य-कृति भक्तामर के अनुवादों पर