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जैन आचार-विचारों का सूक्ष्मजीव विज्ञानकीय दृष्टिकोण प्रो. पी. सी. जैन यह तो सर्वविदित है जैन धर्म अहिंसा की पृष्ठभूमि पर आधारित है । अतः जैनाचार कैसा हो इसके लिये आचार्यों ने अपनी दिव्य दृष्टि से जो देखा उसके अनुसार श्रावकाचार हेतु कुछ सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया और श्रावक का आचरण कैसा हो यह बतलाया है। साधारण अवस्थाओं में अहिंसा का भाव मन में आते ही बहुत से अवगुण अपने आप दूर हो जाते हैं और हम सदाचारी बन जाते हैं। परंतु जीवन यापन, व्यवसायिक क्रियाकलापों में व्यक्ति से जीव हिंसा न हो यह तो असंभव बात है परंतु अहिंसा का भाव मन में हो और स्वप्रयोजन के लिये अनावश्यक होने वाली हिंसा से अथवा अपनी सुख-सुविधाओं, रसास्वादन आदि के लिये हो रही हिंसा से बचना गृहस्थ या श्रावक का धर्म बताते हैं । इसी सिद्धान्त को ध्यान में रख जैन आचार-विचार एवं व्यवहार कैसा हो इस संबंध में कुछ बातें उल्लेखित हैं। जैसे - जल का उपयोग छान कर किया जाना, कंद मूलों तथा जमीकंदों का निषेध, वस्तुओं का मर्यादानुसार उपयोग करना आदि।
प्रकृति में विभिन्न प्रकार के जीव पाये जाते हैं जो अपनी प्रकृति एवं स्वभाव के अनुरूप अपना जीवन जीते हैं, और जीवन काल समाप्त होने पर स्वतः ही मर जाते हैं ( यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया हैं)। परंतु इसके विपरीत जब हम किसी जीव को उसके को जीवन कालावधि के पहले ही मार देते हैं या ऐसा कुछ करते है जिससे किसी प्राणि / जीव को अपना जीवन चक्र पूर्ण करने में बाधा उत्पन्न होती है या कष्ट होता है तब उसे हम जीव हिंसा की श्रेणी में मानते हैं। मन में हिंसक भाव आने या रखने से भी हमें हिंसा का 1 दोष लगता है इसलिये जैन सिद्धान्तों में भाव हिंसा से बचाव एवं मन में दया भाव, क्षमा भाव रखना महत्वपूर्ण होता है ।
दीर्घ काय जीव जिन्हें हम देख सकते हैं उनकी हिंसा से बचा जा सकता है परंतु प्रकृति में कुछ जीव ऐसे हैं जिन्हें हम अपनी आँखों से नहीं देख पाते हैं। अतः उनकी हिंसा से ! बचने के लिये व्यक्ति का खान-पान तथा व्यवहार कैसा हो यह जैनाचार में भलीभांति समाहित है। जैन सिद्धान्तों के परिपालन हेतु जैन आचरणों में से कुछ को मैंने सूक्ष्मजीव विज्ञान के अध्ययन के आधार पर विश्लेषित करने का प्रयास किया है ताकि इन