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TRESSUREMED927
हैमवान्
वैशाख
भारतीय ज्योतिष का पोषक जैन ज्योतिष
3651 नक्षत्र होता है, परन्तु यह नक्षत्र-गणना कृतिका से लेनी चाहिए।
प्राचीन जैन ज्योतिषमें सूर्य संक्रान्ति के अनुसार द्वादश महीनों की नामावली भी निम्न प्रकार मिलती हैप्रचलित नाम
सूर्य संक्रान्ति के अनुसार जैन महिनों के नाम श्रावण
अभिनन्दु भाद्रपद
सुप्रतिष्ठ आश्विन
विजया कार्तिक
प्रीतिवर्द्धन मार्गशीर्ष
श्रेयान् पौष
शिव माघ
शिशिर फाल्गुन चैत्र
वसन्त
कुसुमसंभव ज्येष्ठ
निदाघ आषाढ़
वनविरोधी इस माह प्रक्रिया के मूलमें संक्रान्ति सम्बन्धी नक्षत्र रहता है। इस नक्षत्र के प्रभाव से ही अभिनन्दु आदि द्वादश महीनों के नाम बताये गये हैं। जैनेतर भारतीय ज्योतिषमें भी एकाध जगह दो चार महीनों के नाम आये हैं। वराहमिहिरने सत्याचार्य और यवनाचार्य का उल्लेख करते हुए संक्रान्ति संबंधी नक्षत्र के हिसाबसे मास गणना का खण्डन किया है। लेकिन प्रारंभिक ज्योतिष सिद्धान्तों के ऊपर विचार करने से यह स्पष्ट किया है कि मास प्रक्रिया बहुत प्राचीन है। ऋक् ज्योतिषमें एक स्थान पर कार्तिकके लिए प्रीतिवर्द्धन और आश्विन के लिए विजया प्रयुक्त हुए हैं। __इसी प्रकार जैन ज्योतिषमें संवत्सरकी प्रक्रिया भी और मौलिक व महत्त्वपूर्ण है। जैनाचार्यों ने जितने विस्तार के साथ इस सिद्धान्त के ऊपर लिखा है उतना अन्य सिद्धान्तों के सम्बन्ध में नहीं। प्राचीन काल में जैनाचार्यों ने सम्वत्सर-सम्बन्धी जो गणित और फलित के नियम निर्धारित किए हैं वे जैनेतर भारतीय ज्योतिषमें आठवीं शती के बाद व्यवहृत हुए हैं। नाक्षत्र सम्वत्सर, ३२७+५२/६७, युग सम्वत्सर पांच वर्ष प्रमाण प्रमाण सम्वत्सर, शनि सम्वत्सर। जब बृहस्पति सभी नक्षत्रसमूह को भोग कर पुनः अभिजित् नक्षत्र परआता है तब महानक्षत्र सम्वत्सर होता है। फलित जैन ज्योतिषमें इन सम्वत्सरों के प्रवेश एवं निर्गम आदि के द्वारा विस्तारसे फल बताया है, अतः निष्पक्ष दृष्टि से यह स्वीकार करना ही पड़ेगा कि भारतीय ज्योतिषके विकास में जैन सम्वत्सर प्रक्रिया का बड़ा भारी योगदान है। ___ षट्खण्डागम धवला टीकाके प्रथम खण्ड गत चतुथौशमें प्राचीन जैन ज्योतिषकी कई महत्त्वपूर्ण बातें सूत्ररूप में विद्यमान हैं उसमें समयके शुभाशुभका ज्ञान कराने के लिए दिनरात्रि के (१) रौद्र (२) श्वेत (३) भैत्र (४) सारभट (५) दैत्य (६) वैरोचन (७) वैश्वदेव (८) अभिजित् (९) रोहण (१०) बल (११) विजय (१२) नैऋत्य (१३) वरुण (१४) अर्यमन और (१५) भाग्य मुहूर्त बताये हैं। इन दिनमुहूर्तो में फलित जैन ग्रन्थों के अनुसार रौद्र, सारभट, वैश्वदेव, दैत्य और भाग्य यात्रादि शुभ कार्यों में त्याज्य हैं। अभिजित् और विजय ये दो मुहूर्त सभी कार्यो में सिद्धिदायक बताये गये हैं। आठवीं शती के जैन ज्योतिष सम्बन्धी मुहूर्तग्रन्थों में इन्हीं मुहूतों को अधिक