________________
देलखण्ड का जैन कलावैभव
357 __शासन देवताओं और सज्जा प्रतीकों के साथ देवगढ़ में खड़े हुये या ध्यानस्थ बैठे हजारों दिगम्बर तीर्थंकर बिम्ब हैं। न शरीर पर आवरण, न अलंकार, न हाथों में आयध. न चरणों तले कोई वाहन। इन्हें देखकर ही तो समझ में आता है कि सौन्दर्य का सृजन कभी श्रृंगार का मुखापेक्षी नहीं रहा। रूप की गरिमा हृदय से प्रस्फुटित होती है। उसका अस्तित्व एक सहज-स्वाभाविक घटना है, वह किसी बनाव या मेक-अप का मोहताज नहीं है। उसी सहज सौन्दर्य की अनन्त-अनन्त राशियाँ पाषाण की कठोर कारा में कैद होकर बिखर गई हैं। लुअच्छगिरि की इस अटवी में, जिसे आज हम 'देवगढ़' कहते हैं। अकेला देवगढ़, नहीं, उसके आस-पास चारों ही दिशाओं में साधकों ने हर पत्थर को भगवान बनाने का अभियान कभी चलाया था। चन्देरी और बूढी चन्देरी, थूबोन और सीरोन, चांदपुर. जहाजपुर और दुधई, ऐसे न जाने कितने स्थान थे। एक-एक स्थान पर न जाने कितने मन्दिर थे। एक-एक मन्दिर में न जाने कितनी मूर्तियां थीं, जो अब नहीं हैं। काल ने उन सबका अस्तित्व मिटा दिया है। खण्डित प्रतिमाओं के ढेर ही अब वहां शेष बचे हैं। इनके अलावा बुंदेलखंड में पपौरा, श्री क्षेत्र आहार, सिद्धक्षेत्र द्रोणगिरि, सिद्धक्षेत्र नैनागिरि, सिद्धक्षेत्र कुण्डलपुर, पिसनहारी की मढ़िया, सेरोंजी, पवाजी, सोनागिरि, थोभोंजी, चांदपुर, जहाजपुर, दुधई आदि अनेक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र हैं जहाँ के मंदिर और मूर्तियाँ अत्यंत कला से पूर्ण एवं पूज्य हैं।
श्री क्षेत्र बहोरीबंद दर्शनीय स्थान है। इसमें बहोरीबंद शान्तिनाथ का महत्वपूर्ण मूर्तिलेख है। यह लेख ऐतिहासिक है जिसका सर कनिंघम और डॉ. मिरासी आदि विद्वानों ने पाठ प्रकाशित किया था। .
स्वस्तित्री सं. १०१० फाल्गुन वदी ९ भौमे श्रीमद् गयाकर्णदेव विजयराज्ये राष्ट्रकूट कुलोद्भव महासामन्ताधिपति श्रीमद् गोल्हण देवस्य प्रवर्षमानस्य। श्रीमद् गोल्लापूर्वाम्नाये वेल्लप्रभाटिकायामुरुकृताम्नाये । तर्क-तार्किक-चूड़ामणि श्रीमन्माधवनन्दिनानुगृहीतः साधु श्री सर्वधरः। तस्य पुत्रः महाभोजः धर्मदानाध्ययनरतः, तेनेदं कारितं रम्यं शान्तिनाथस्य मंदिरम्। इन पंक्तियों का अर्थ इस प्रकार होगास्वस्तिश्री संवत १०१० (विक्रमाब्द) फाल्गुन वदी नवमी भौमवार को जयवंत श्रीमान गयाकर्ण देव के शासन में महासामन्ताधिपति, राष्ट्रकूट कुल (राठौर वंश) में उत्पन्न, समृद्धिशाली श्रीमान गोल्हणदेव (के संरक्षण में), गोलापूर्व आम्नाय में वेलप्रभा नगरी में जिन्होंने अपनी आम्नाय की कीर्ति बढ़ाई है, जो तर्कतार्किकचूड़ामणि श्रीमान माधवनन्दि के कृपापात्र हैं, उन श्रीमान साहु श्री सर्वधर के, सदैव धर्म-दान एवं अध्ययन में रत रहनेवाले सुपुत्र, श्रीमान साहु महाभोज ने, शान्तिनाथ प्रभु के इस रमणीक मन्दिर का निर्माण कराया। वास्तव में ये तीर्थ हमारी प्राचीन संस्कृति और कला की अनूठी धरोहर हैं और साथ ही साथ हमारे सामाजिक जीवन की शाश्वत आधार-भूमि भी हैं। यही तो कारण है कि मेरे बुन्देलखण्ड की धरती के चारों खूट, पूरब से । पश्चिम तक और उत्तर से दक्षिण तक पवित्र और प्रणम्य हैं।