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________________ 13381 रूपरसादि के 20 गुण होते हैं। इनकी संख्या अनंत है और ये अगणित रूप में पाए जाते हैं। महास्कंध जैसे स्कंध में परमाणु संख्या अनंतानंत तक हो सकती है। भगवती सूत्र में रूपादिगुणवाले विभिन्न संख्या के परमाणुओं के समुच्चय से उत्पन्न स्कंधों की संख्या दी है, पर यह वास्तविक के बदले बौद्धिक अधिक लगती है। इसीलिए स्थानांग में सभी प्रकार के परमाणु समुच्चयों के अनंत रूप बताए हैं। इन स्कंधो में परमाणु प्रायः गतिशील रहते हैं। ये परमाणुओं के कार्य हैं। अनेक विद्वान पहले इनको अणु कहते थे, पर अणु तो रासायनिक होता है, पर स्कंध भौतिक भी हो सकता है। अतः अब स्कंध को परमाणु समुच्चय कहना उचित होगा। ये स्कंध (1) बडे स्कंधों के विभेदन से (2) परमाणुओं के संयोजन या सहभाजन से तथा (3) विभेदनसंयोजन की प्रक्रिया से प्राप्त होते हैं। ये विधियां वैज्ञानिक भी स्वीकार करते हैं, पर वे इनमें एकल व द्विकल विस्थापन की विधि और जोड़ते हैं। विभेदन की प्रक्रिया रेडियोएक्टिवता तथा आयनीकरण (इन प्रक्रमों का उल्लेख शास्त्रों में नहीं है) के समान आंतरिक भी हो सकती है, साथ ही परमाणु बंध के पूर्व वर्णित अन्य कारको से भी हो सकती है। स्कंधो के भेद स्कंध पुद्गल का एक बहुप्रदेशी रूप है, अतः इसके भेदों के आधार पर स्कंध के भी अनेक प्रकार से भेद किये जा सकते हैं। सामान्यतः पुद्गल अनेक प्रकार का माना गया है। : दो प्रकारः स्थूल और सूक्ष्म, इन्द्रिय-ग्राह्य और इन्द्रिय अग्राह्य, द्विक परमाणु, कर्म या 4-8 स्पर्शी। यह वर्गीकरण सामान्य ज्ञान की दृष्टि से है। तीन प्रकारः आंतरिक, बाह्य एवं मिश्र कारकों से परिणामी। चार प्रकार : (अ) स्थूल, सूक्ष्म, स्थूल-सूक्ष्म, सूक्ष्म-स्थूलः (ब) पूर्वोक्त स्कंध आदि चार। छःप्रकार (कुंदकुंद) (1) अतिस्थूल (ठोस पदार्थ) (2) स्थूल (तरल या द्रव) (3) स्थूल-सूक्ष्म (चक्षुइन्द्रिय ग्राह्य, ऊर्जाएँ) (4) सूक्ष्म-स्थूल (चक्षुभिन्न अन्य इंद्रिय ग्राह्य, शब्द, रूप आदि : (5) सूक्ष्म (कर्म वर्गणा, कर्म स्कंध, इन्द्रिय अग्राह्य : (6) सूक्ष्म-सूक्ष्म (व्यवहार परमाणु, द्वि-अमुक, कार्मोन, आदि) ___ यह वर्गीकरण चक्षु इन्द्रिय आधारित स्थूल-सूक्ष्मता पर आधारित है। यहाँ एक विसंगति तो स्पष्ट ही है कि गैसों की तुलना में ऊर्जाएँ सूक्ष्मतर हैं, अतः उन्हें चौथे क्रम पर होना चाहिए। जी.आर. जैन के अनुसार, स्कंधों का यह वर्गीकरण पर्याप्त वैज्ञानिक है। चूंकि व्यवहार परमाणु का विस्तार, त्रिलोक प्रज्ञप्ति के अनुसार लगभग 10-11 सेमी. और भीखण जी के अनुसार अंगुल का असंख्यातवां भाग या 10-20 सेमी. बैठता है जो वैज्ञानिक परमाणु के विस्तार के समकक्ष या सूक्ष्मतर है। यहाँ अनंतानंत की उपेक्षा की है और असंख्यात को महासंख से अधिक माना गया है। पर नेमीचन्द्र आचार्य ने यहाँ शंका में डाल दिया कि ये भेद पुद्गल के हैं, मात्र स्कंध के नहीं,अतः उन्होंने परमाणु भी जोड़ दिया। क्या यहाँ 'परे प्रमाणे' लगेगा? यदि ये पुद्गल के भेद हैं तो नेमिचन्द्राचार्य सही हैं। तेइस प्रकारः अनेक ग्रंथों में स्कंधो या पुद्गल के 23 प्रकारी वर्गणा-भेद किये गये हैं। समानजातीय पुद्गल समूह, वस्तु समुदाय या परमाणु समूह को वर्गणा कहते हैं। ये स्थूल भौतिक पदार्थो के उपादान कारण होते हैं। इनमें आचार्य कनकनंदी के अनुसार, परमाणु समूह मात्र समुच्चय के रूप में रहता है, बंध के रूप में नहीं। पर यह भी तो भौतिक या शिथिल बंध कहलायेगा। समुच्चय को एक-स्थानी बनाए रखने में समुच्चित परमाणुओं की कुछ ऊर्जा काम आती ही होगी। अतः वर्गणाओं को शिथिल समुच्चय या भौतिक स्कंध मानना चाहिए। ।
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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