________________
मोमबार
3377 | आदि प्रमुख कारक हैं। इनके कारण अनेक भौतिक (बादल आदि), रासायनिक (दही एवं घी का निर्माण आदि) । तथा भौतिक-रासायनिक क्रियाएं होती हैं। ये कारक प्रायः वही हैं जो आज के वैज्ञानिक बताते हैं, पर अब इनमें
दाब, विद्युतधारा, तीव्र गतिशील सूक्ष्म कणों की बौछार, विभिन्न कृत्रिम ऊर्जाएँ आदि भी कारक के रूप में जुड
गये हैं। यद्यपि परमाणु एक स्वतंत्र इकाई है, पर ये व्यवहार परमाणु के रूप में ही अधिकांश प्रकृति में पाए जाते । हैं। अतः परमाणुओं के बंधन की प्रक्रिया व्यवहार परमाणुओं के सक्रियकरण से प्राप्त घटक परमाणु में विभेदन के बाद ही माननी चाहिए।
परमाणुओं के भेद-प्रभेद
ग्रीक विद्वान विभिन्न परमाणुओं के आकार-विस्तार भिन्न-भिन्न मानते थे। वे उनमें केवल स्पर्शगुण ही मानते थे। इसके विपर्यास में, जैन सभी परमाणुओं को एकसमान, भारहीन एवं एकप्रदेशी ही मानते हैं। वे उनमें रूप, रस, गंध, स्पर्श और संस्थान के गुण भी मानते हैं। इस आधार पर उन्होंने इनके 20/25 गुणों में से चरम परमाणु में पांच गुण माने हैं और परमाणु के अनेक कोटि के प्रकार बताए हैं। (1) सूक्ष्म और स्थूल
(5) कार्य परमाणु, कारण परमाणु, जघन्य परमाणु
उत्कृष्ट परमाणु (2) कार्य परमाणु (स्कंध विभाजन), कारण परमाणु (6) द्रव्य परमाणु, क्षेत्र परमाणु, काल परमाणु, (स्कंध उत्पत्ति)
भाव परमाणु | (3) द्रव्य परमाणु, भाव परमाणु
(7) रूप, रस, गंध, स्पर्श के दृश्य भौतिक गुणों
की संख्या के आधार पर, 5x2x5x8=200
प्रकार के परमाणु (4) द्विस्पर्शी, चतुस्पर्शी, अष्टस्पर्शी
(8) उपरोक्त गुणों की तीव्रता की तरतमता के
आधार पर संख्यात और अनंत परमाणु। वर्तमान में मापनीय भौतिक गुणों (द्रव्यमान, भार) के आधार पर वैज्ञानिकों ने प्रायः 109 प्रकार के परमाणुओं की खोज की है। जैनों के अनुसार, ये सभी व्यवहार परमाणु या अणु हैं। हमें यह सोचना होगा कि दृश्य । गुणों पर आधारित वर्गीकरण, मापनीय गुणों पर आधारित वर्गीकरण से कितना प्रामाणिक है।
सामान्यतः आदर्श परमाणु द्विस्पर्शी एवं भारहीन होते हैं, पर व्यावहार परमाणु तो दोनों प्रकार के हो सकते हैं। ये अनंत परमाणुओं के पिण्ड होते हैं। द्विस्पर्शी या चतुस्पर्शी परमाणु ऊर्जारूप, अग्राह्य एवं अदृश्य होते हैं। इन्हें केवल विशिष्ट अवधिज्ञानी, मनःपर्ययज्ञानी और केवली ही देख सकते हैं। इनके कार्यों से ही इन्हें पहचाना जा सकता है। इनके अनेक गुणों का वर्णन अनेक लेखकों ने दिया है, अतः पुनरावृत्ति नहीं की जा रही है। इन गुणों और भेदो के विपर्यास में, आधुनिक विज्ञान प्रत्येक तत्त्व के परमाणु में भार एवं धनत्व मानता है और उसकी स्वतंत्र अणुक अवस्था (अपवादों को छोड़कर) को पारस्परिक बंध का कारण मानता है।
स्कंषवाद (परमाणु-समुच्चय वाद)
पुद्गल द्रव्य का हमारे लिए उपयोगी रूप स्कंध ही है जो परमाणुओं, व्यवहार परमाणुओं के दृश्य या अदृश्य । समुच्चय से उत्पन्न होता है। यह दो प्रकार का होता है। (1) भौतिक - जिसके अवयव शीघ्र अपघटित या । विलगित किये जा सकते हैं और (2) रासायनिक, जो स्थाई होता है और जिसका अपघटन कठोर परिस्थितियों में ही होता है। ये सूक्ष्म और स्थूल, इन्द्रियग्राह्य और अनेक प्रदेशी भी होते हैं। इनमें परमाणु के समान ही