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शुभेच्छा
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"गुणाभिनन्दादभिनन्दनो भवान" अर्थात् जिसके गुण अभिनन्दनीय | प्रशंसनीय हैं वह अभिनन्दनीय / प्रशंसनीय
है। गुण से युक्त गुणी होता है, धर्म से युक्त धर्मी होता है, धर्मानुरागी डॉ. शेखरचन्द्र जैन- आशीर्वाद। उसी प्रकार अभिनन्दन | अभिनन्दनीय भी है। गुण तथा
जो देव-शास्त्र-गुरू के प्रति समर्पित रहता है, वही गुणी की प्रशंसा से गुणानुमोदना होती है, भाव में प्रसन्नता एक सद्गृहस्थ श्रेष्ठ श्रावक कहलाता है। हमारा जैन धर्म | होती है। अनुकूल वातावरण बनता है। जिस गुण के कारण भाव प्रधान है। विश्व में प्रख्यात डॉ. शेखरचन्द्र जैन श्रेष्ठ | जिसकी प्रशंसा होती है, सद्गुणी महानुभाव स्वयं के उस श्रावक एवं विद्वान हैं, जो तीर्थंकरों की वाणी के प्रचार- | गुण को जानते हैं, मानते हैं, बढाते हैं। इससे विपरीत प्रसार करने में अग्रणी है। स्वयं जिनवाणी का रसपान | दूसरों की निन्दा करने से स्व-पर में गुण-द्वेषी, ईर्ष्या, करते एवं कराते हैं। यह जिनमार्ग का सत्पथ संकेत असूया, संक्लेश, द्वेष, लड़ाई-झगड़ा, भेद-भाव, फूटे करता है।
आदि अप्रशंसनीय भाव एवं कार्य होते हैं। दूसरों के गुणों ___ आप कर्म सिद्धान्त के विशिष्ट ज्ञाता हैं, श्रेष्ठ श्रावक | की प्रशंसा से पुण्यकर्म | उच्चगोत्र का बन्ध होता है तो है जो 'तीर्थंकर वाणी' के माध्यम से लोगों को सतपथ पर | निन्दा से पापकर्म।नीचगोत्र का बन्ध होता है। पूजा स्वाध्याय चलाने का प्रयास करते हैं। वर्तमान में समाज को स्पष्ट | जो कि गुणानुराग-गुणस्मरण एवं गुणानुकरण स्वरूप है। वक्ता, जुझारू कार्यकर्ता एवं सम्यक् बोध देनेवालों की | इसलिए सज्जन, गुणी, ज्ञानी, धर्मात्मा, विद्वान्, साधुआवश्यकता है और आप ऐसे ही कार्यकर्ता हैं। आपने | संत से लेकर भगवान की पूजा-प्रार्थना-प्रशंसा आदि अनेक पदवियाँ प्राप्त करके जो मानवसेवा की है उस हेतु | यथायोग्य विधेय हैं, करणीय हैं। परन्तु सम्यक् भावना, आपको मेरा मंगल आशीर्वाद है। आपकी प्रवृत्ति निर्मल उद्देश्य भावनादि से युक्त डॉ. शेखरचन्द्र जैन अभिनन्दन बनी रहे और आप ऊँचाईयों को प्राप्त करें। धर्म का प्रचार ग्रन्थ का प्रकाशन स्व-पर-राष्ट्र-विश्व में अभिनन्दनीयकरते हुए अपने आत्मा को परमात्मा बनाने का शुभ संकेत सद्गुण-सदाचार-सद्विचार को प्रकाशित करके सत्यभी लायें इन्हीं शुभकामनाओं के साथ धर्मवृद्धि। इति शुभम्।
समता-शान्ति के लिए प्रेरक बने ऐसी महान् उदात्त भावना आ. १०८ श्री भरतसागरजी
के साथ मेरा मंगलमय शुभाशीर्वाद एवं शुभकामनायें डॉ. शिष्य-आ. १०८ श्री सन्मतसागरजी |
| शेखरचन्द्र जैन तथा डॉ. शेखरचन्द्र जैन अभिनन्दन समिति को है।
आचार्य कनकनदीजी,
सागवाडा (राज.)