________________
1274 । त्रिवर्ग-धर्म (पुण्य), अर्थ (लक्ष्मी) और काम (विषय वासना) की बात के बिना नहीं हो सकती क्योंकि इसी
प्रकार प्रयोजनभूत, हेय-उपादेय आदि का निर्णय किया जा सकता है। ____ आचार्य कुंदकुंद ने समयसार की गाथा 4 में अर्थशास्त्र आदि समस्त विषयों को 'काम-भोग बंध कथा'
कहा है। काम अर्थात् इच्छा और भोग अर्थात् इच्छा का भोगना। इस प्रकार काम-भोग संबंधी कथा का तात्पर्य इच्छा व इच्छाओं की पूर्ति संबंधी प्रयत्नों की कथा है। आचार्य जयसेन 'काम' में स्पर्शन व रसना इंद्रियों के विषयों को और 'भोग' में घ्राण, चक्षु व कर्ण इंद्रियों के विषयों को लेते हैं। इस तरह काम, भोग व बंध – इन तीनों की कथा अर्थशास्त्र आदि लौकिक विज्ञान में होती है। आचार्य कुंद कुंद पुनः कहते हैं कि मैंने 'मेरे आत्मा का निज वैभव' जो है उसे दर्शाने का व्यवसाय किया है और वह आत्मा का वैभव इस लोक में समस्त वस्तुओं
का प्रकाशक है और स्यात्पद की मुद्रावाला ट्रिडमार्क) है। आगम में भोग व उपभोग में भेद किया गया है। जो । एकबार भोग करने के बाद फिर भोग में नहीं आते हैं वे भोग हैं जैसे भोजन एक बार ही भोगने में आता है। जो
पदार्थ बार-बार भोगने में आते हैं वे उपभोग हैं जैसे वस्त्र, मकान, आभरण आदि। ___उक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि आगम में अर्थशास्त्र के प्रतिपादन में काफी गंभीरता है और एकदम ! वैज्ञानिक है। मूल में ही जाकर विश्लेषण किया गया है जहां से एक धारा संसार (त्रिवर्ग) की ओर जाती है और
दूसरी मोक्ष (अपवर्ग) की ओर।जैन शास्त्र अर्थशास्त्र तो नहीं हो सकते लेकिन फिर भी आगम में अर्थव्यवस्था संबंधी चाहे वह बात व्यक्ति (माइक्रो) या समष्टि (मक्रो) की हो, गंभीर व सूक्ष्म चर्चा मिलती है। उक्त काम भोग बंध कथा' रूप परिभाषा करने से चारों ही गतियों में होनेवाली इच्छाओं की पूर्ति के प्रयत्न आ जाते हैं। अर्थात् स्वर्ग, नरक, मनुष्य एवं तिर्यंच सभी जीव अपनी इच्छाओं की पूर्ति कैसे करते हैं, ऐसे विषय का समावेश हो जाता है, केवल मनुष्यों को ही नहीं। इस परिप्रेक्ष्य से देखा जाय तो तीन लोक व तीन काल में प्राणि अपनी इच्छाओं की पूर्ति कैसे करते हैं- इतना व्यापक विषय-वस्तु आगम के अर्थशास्त्र की विषय-सामग्री में समा जाता है। जैन आगम का अर्थशास्त्र दोनों त्रैकालिक व तत्कालीन व्यवस्था की चर्चा करता है अर्थात् गति विशेष या पर्याय विशेष में तत्कालीन इच्छाओं की पूर्ति एवं इन गतियों में त्रैकालिक आधार कैसा है। ___ आगम तो वास्तव में देखा जाय तो धन की निःसारता को बताता है। जहां अर्थशास्त्र में सुख की प्राप्ति हेतु धनादि कमाने की बात कही जाती है, वहां आगम में उसे 'महामोह रूपी भूत के वश बैल की भांति भार वहन करना' कहा है। जिसे अर्थशास्त्र में इच्छाओं की पूर्ति व संतोष कहते हैं उसे आगम में 'विषयों की तृष्णारूपी दाह से पीडित' होना कहा है और उससे 'आकुलित होकर मृगजल की भांति विषय-ग्राम की ओर दौडता है।' तिरूकुरल आचार्य कुंदकुंद का प्राचीन ग्रंथ है जिसमें धन संबंधी अनेक सूक्तियां हैं। उदाहरणार्थ, 'इंद्रिय संयम विशेष धन है और धन का यह उत्कृष्ट रूप है।' 'संसार दो प्रकार है- एक जिसमें धन की सम्पन्नता है और दूसरा जिसमें धर्म की सम्पन्नता है।' 'धन के कई प्रकारों में अहिंसामय धन ही विशेष है, अन्य धन तो नीच/दुष्ट मनुष्यों में भी पाया जाता है।' दौलतरामजी ने छहढ़ाला में धन पक्ष को सार रूप में ऐसा कहा है :
धन समाज गज बाज राज तो काज न आवै।
मान आपको रूप भये, फिर अचल रहावै॥ प्रथम पंक्ति में धन का निःसारपना व दूसरी पंक्ति में आत्मज्ञान के अविनाशी लाभ की बात कही है। ।
-
-
-
-
-