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257 धाम है। उसका अस्तित्व बहुत प्राचीन है। इस बात को पावागढ़ पर्वत पर दिगम्बर जैन मंदिर और उसकी नैसर्गिक किलेबन्दी स्पष्ट करती है।" ___ पावागढ़ का आधिपत्य गुजरात देश के राजा के हाथ में आया। गुजरात नरेश ने चांपानेर पावागढ़ की तलहटी
में बसाया और उसको राजधानी बनाया। उस समय में पावागढ़ व चांपानेर शहर संसार भर में मशहूर थे। ____संवत् १५२५ में आज से करीब ५०० वर्ष पहले राजा जयसिंह गुजरात में राज्य करता था जो पताई रावल
के नाम से जगत में मशहूर था। उसने पावागढ़ की दूसरी टोंक पर महल बनवाया और उसी टोंक पर भद्रकाली माता की स्थापना की। ___संवत् १५४० में मुस्लिम सुल्तान महमूद बेगड़ा ने पावागढ़ पर आक्रमण किया। बारह वर्ष तक तलहटी में घेरा डालकर पड़ा रहा उस समय उसने चांपानेर शहर का नाश किया। हिन्दू और जैन मंदिर को तोड़कर मस्जिदें बनवा दीं। मूर्तियां खंडित की जो आज भी खुदाई करते समय मिलती हैं।
बारह वर्ष बाद हिन्दुओं की कुसंप से महमूद ने किले पर कब्जा किया, परकोटा तोड़ा, हिन्दू और जैन मंदिरों का नाश किया। ___ मुस्लिम युग के बाद अंग्रेजों का शासन आया, उसमें हिन्दु और जैन संस्कृति को रक्षण मिला, उसमें जो अवशेष थे उनका जीर्णोद्धार करने का और सरक्षित रखने का प्रयत्न ब्रह्मचारी व पंडितगण करते रहे।
संवत १६४२ में वादीभूषण के आदेश से जीर्णोद्धार शुरू हुआ और संवत् १६४९ में जीवराज पापड़ीवाल ने चिंतामणि पार्श्वनाथ की श्याम प्रतिमा की प्रतिष्ठा नगारखाने के पास के मंदिर में महासुदी सप्तमी को करायी, जो प्रतिमा खंडित अवस्था में आज भी मौजूद है। ___ आज भी इन स्थानों पर खोदते समय कई जगह से पुराने मंदिर और प्रतिमाओं के अवशेष मिलते हैं। चट्टानों पर उकेरी हुई प्रतिमायें आज भी मौजूद हैं।
फिर धर्मप्रेमी भाइयों की सहायता से संवत् १९३३ वीर संवत् २४०३ में पावागढ़ में दूधिया तालाब पर के बड़े मंदिर का जीर्णोद्धार शुरू हुआ। उन दिनों सोलापुर जिले के परंडा गांव के धर्मप्रेमी दानवीर सेठ श्री गणेशजी गिरधरभाई वन्दना के लिए पधारे, तो वे जीर्णोद्धार का काम देखकर खश हए और जीर्णोद्धार का व प्रतिष्ठा का पूर्ण खर्च देने की घोषणा की।
६. महुबा (विघ्नहर पार्श्वनाथ)- 'श्री विघ्नहर पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र महुबा' सूरत जिले में ! है। तथा पूर्णा नदी के तट पर अवस्थित है।
यहाँ भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा चमत्कारी है। प्रतिमा के भाव सहित दर्शन करने से विघ्न दूर हो जाते हैं। इसीलिए इसके दर्शन करने के लिए एवं मनौती मनाने के लिए यहाँ जैनों के अतिरिक्त जैनेतर भी बड़ी संख्या । में आते हैं। इस क्षेत्र पर पहिले मुनि जनों का विहार होता था और मुनिजन यहाँ टहर कर ग्रन्थों का अभ्यास करते थे। । ____७. सूरत- सूरत में मूलसंघ सरस्वती गच्छ बलात्कारगण के भट्टारकों का पीठ भट्टारक देवेन्द्र कीर्ति ने । स्थापित किया था। इस पीठ के भट्टारकों ने धर्म रक्षा के अनेक कार्य किये। अनेक स्थानों पर मंदिर निर्माण कराये, मूर्ति प्रतिष्ठाएँ करायीं। उन्होंने अनेक लोगों को जैन धर्म में दीक्षित किया। सूरत में काष्ठा संघ के । भट्टारकों का भी पीठ रहा है।
८. अंकलेश्वर - गुजरात के भड़ोंच जिले में यह एक अतिशय क्षेत्र है। ग्राम में चार जैन मंदिर हैं। भोयरे में । पार्श्वनाथ की अतिशय सम्पन्न मूर्ति है। जैन और जैनेतर मनौती मनाने को भारी संख्या में आते हैं।
पुष्पदन्त और भूतबलि ने अपने गुरु धरसेनाचार्य से शिक्षा ग्रहण कर अंकलेश्वर में वर्षाकाल किया और श्रुत