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________________ नभरावाल सपा 2531 पौराणिक गाथाओं में गुजरात गुजरात के शत्रुजय पर्वत से ऋषभदेव प्रथम तीर्थंकर के प्रधान गणधर पुण्डरीक ने निर्वाण प्राप्त किया। इस प्रदेश में अनेक तीर्थंकरों ने विहार किया। भरत चक्रवर्ती गिरनार पर्वत पर आए। महाभारत काल में तीर्थंकर अरिष्टनेमि का तो यह प्रदेश विहार क्षेत्र रहा। कृष्ण, बलराम आदि हरिवंशी यादवों ने मथुरा, शौरसेन आदि छोड़कर समुद्रतट पर आकर द्वारिका बसाई। जूनागढ़ के राजा उग्रसेन की कन्या राजुलदेवी के साथ नेमिकुमार के साथ विवाह की चर्चा चली। समस्त यादव बंसियों की बारात नेमिकुमार को विवाहने चली। किन्तु दीन पशुओं की पुकार सुनकर नेमिकुमार विरक्त हुए और निकटवर्ती गिरनार (ऊर्जयन्त) पर्वत पर जाकर तपस्या में लीन । हो गये। महासती राजुल ने उनका अनुसरण किया और ऊर्जयन्त पर जाकर तपस्या में लीन हो गईं। धन्य हो गया ऊर्जयन्त। इसी पर्वत पर नेमिनाथ का दीक्षा कल्याणक, केवलज्ञान कल्याणक हुआ और अन्त में इसी पर्वत से निर्वाण लाभ किया। ___ मगध के सम्राट श्रेणिक बिम्बसार अन्तिम तीर्थंकर भगवान महावीर के अनन्य भक्त थे। एक बार श्रेणिक बिम्बसार विपुलाचल पर महावीर की वन्दना करने गये और उनने भगवान महावीर से प्रश्न किया- 'प्रभो! गिरनार ऊर्जयन्त का क्या महत्त्व है?' तीर्थंकर की दिव्यध्वनि में उन्होंने जो उत्तर सुना, उसे सुनकर श्रेणिक और अन्य कृतकृत्य हुए। 'वह ऊर्जयन्त द्वारिका के पास सोरठ सौराष्ट्र में है। भगवान के गणधर इन्द्रभूतिगौतम ने उस प्रश्नोत्तर को लिपिबद्ध किया जिसे हम पुराण में पढ़ रहे हैं। ___ऋषभदेव तीर्थंकर से लेकर वर्तमान काल तक गुजरात व सौराष्ट्र में जैनधर्म की अविरल धारा बह रही है और उसके साक्षी हैं ये तीर्थ क्षेत्र १. तारंगा जी - तारंगा क्षेत्र उत्तर गुजरात के महेसाणा जिले में अरावली पर्वत मालाओं की मनोरम टेकरी । पर अवस्थित है। यह एक प्रसिद्ध सिद्ध क्षेत्र है। यहां से वरदत्त, वरांग, सागरदत्त आदि साढ़े तीन कोटि मुनियों । ने निर्वाण प्राप्त किया था। इस नगर के नाम तारानगर, तारापुर, तारागढ़, तारंगा आदि मिलते हैं। तारंगा नाम । १५वीं शताब्दी के विद्वान् भट्टारक गुणकीर्ति की मराठी रचना 'तीर्थ वन्दना' में सर्वप्रथम प्रयुक्त हुआ मिलता है। प्राकृत निर्वाण काण्ड, जो ईसा की प्रथम-द्वितीय शताब्दी की रचना मानी जाती है, उसमें निम्नलिखित गाथा । उपलब्ध होती है 'वरदत्तो य वरयो सायरदत्तो य तारवरणयरे। आहुद्द्य कोडीओ विणबाणगया णमो तेसिं॥४॥ तारंगा में कोटिशिला और सिद्धशिला नामक दो पर्वत हैं। दोनों पर्वत पर लगभग ९०० वर्ष प्राचीन प्रतिमाएँ विराजमान हैं। यहाँ गुफाएँ बनी हैं। जो प्राकृतिक हैं उनके निर्माण काल के संबंध में निश्चित रूप से कोई अभिमत प्रगट नहीं किया जा सकता है। २. शत्रुजय- पालीताना नगर का नाम है तथा शत्रुजय पर्वत का नाम है। पालीताना शहर से शत्रुजय गिरि का तलहटी एक मील दूर है। शत्रुजय की चतुर्सीमा-पूर्व में भावनगर, उत्तर में सिहोर और चमारड़ी की चोटियाँ, उत्तर पश्चिम व पश्चिम मैदान जहाँ से गिरनार दिखता है, यहाँ शत्रुजय नामक नदी है। शत्रुजय गिरि क्षेत्र है। इस स्थान से युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन ये तीन पाण्डव तथा आठ कोटि द्रविड़ राजा अष्टकर्मों का नाश करके मुक्त हुए थे। प्राकृत निर्वाण-काण्ड में बताया है
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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