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मुतिया का नातायत | किस प्रकार खरे उतरते हैं अथवा उन्हें कैसे सत्यापित किया जा सकता है। । जैन धर्म तो मूलतः अध्यात्मपरक धर्म है जहाँ आत्मा के उत्थान और मोक्ष प्राप्ति को परम लक्ष्य माना गया । है। मोक्ष प्राप्ति की यह प्रक्रिया इतनी आसान नहीं है। इस प्रक्रिया को अपनाने के लिए मनुष्य को स्वयं सब संसार | की दशा का ज्ञान होना आवश्यक है, तभी वह ‘मुक्तिमार्ग' पर चलने के लिए अग्रसर होगा। ___जैनधर्म में अत्यंत ही व्यवस्थित रूप से चार अनुयोगों के माध्यम से संसार एवं मोक्ष के स्वरूप को दर्शाया गया है। प्रत्येक अनुयोग के अध्ययन से ज्ञात होता है कि जैनदर्शन तो वैज्ञानिक तथ्यों एवं सिद्धांतो की खान है। जिन तथ्यों एवं सिद्धांतों को वर्तमान में वैज्ञानिक अमूल्य एवं संवेदनशील उपकरणों एवं यन्त्रों के माध्यम से प्रकाश में ला पा रहे हैं। वह तो हजारों वर्ष पूर्व ही हमारे आचार्यों ने स्पष्ट कर दिये थे। ___ अनेकांत एवं स्याबाद :
जैन दर्शन की अध्ययन एवं अनुसंधान की दो प्रमुख पटरियाँ अनेकांत एवं स्याद्धाद हैं। जहाँ अनेकांत किसी वस्तु की बहुआयामिता या धर्मिता को विभिन्न दृष्टिकोणों से प्रतिपादित करता है, वहीं स्यावाद उस बहुआयामिता बहुमुखीनता तक पहुँच बनाता है। अनेकांत वस्तु स्वरूप का संबोधन है जबकि 'स्याद्वाद' इसे जानने की एक सम्यक एवं संपूर्ण प्रक्रिया है। वैज्ञानिकता के सिद्धांत के अनुसार भी किसी भी वस्तु अथवा घटना को संपूर्ण एवं सत्य रूप में जानने के लिए इसे बहुआयामी दृष्टिकोण से देखना एवं जानना आवश्यक है। इसी प्रकार विभिन्न प्रयोगों एवं यंत्रों के माध्यम से वैज्ञानिक विभिन्न वैज्ञानिक तथ्यों को जानने का प्रयास करते हैं। अथवा स्याद्वाद का सहारा लेते हैं।
प्रस्तुत आलेख में जैन धर्म एवं विज्ञान से संबंधित कुछ प्रमुख विषयों का वर्णन ही किया जा रहा है। समस्त विषयों को एक लघु आलेख में समाहित करना संभव नहीं है।
परमाणु, प्रदेश एवं समय :
उक्त शब्दों की जैन दर्शन में अद्भुत व्याख्या की गई है। परमाणु पुद्गल की,प्रदेश आकाश की और समय काल की अन्तिम इकाइयां जैन दर्शन में कही गई हैं। वर्तमान में वैज्ञानिक परमाणु के विभिन्न आयामों की खोज में व्यस्त हैं। जैनदर्शन में तो परमाणु की चार प्रकृतियों तक का वर्णन है।
यह प्रकृतियाँ क्रमशः शीत-स्निग्ध, शीत-रुक्ष, उष्ण-स्निग्ध एवं उष्ण-रुक्ष हैं। इसी प्रकार वर्तमान में वैज्ञानिकों द्वारा वर्णित अणु को जैन दर्शन में स्कन्ध के नाम से परिभाषित किया गया है दो या दो से अधिक परमाणुओं के संयोग से बने पदार्थ को 'अणु' अथवा 'स्कन्ध' कहा गया है। दो परमाणुओं से मिलकर बने अणु को 'द्विप्रदेशी' एवं अनंत परमाणुओं से बने अणु को अनंतप्रदेशी स्कन्ध कहा गया है। जैन दर्शन में परमाणुओं के आकर्षण एवं विकर्षण सिद्धांत को भी प्रतिपादित किया गया है। जिसे हम वर्तमान की 'एटोमिक थ्योरी' के परिप्रेक्ष्य में देख सकते हैं।
जैन दर्शन में अविभागी परमाणु, अविभागी प्रदेश एवं अविभागी समय खोजे गये और इनकी राशि समूह द्वारा दृष्ट स्कन्ध, दृष्ट अंगुल तथा दृष्ट आवलि, मुहूर्त आदि संबोधित किये गये। इनसे पल्य, सागर, जग श्रेणी, जग प्रतर, घन लोक आदि समय राशियां तथा प्रदेश राशियाँ क्रमशः काल प्रमाण और क्षेत्र प्रमाण रूप में निर्मित की गईं। द्रव्य प्रमाण हेतु वर्तमान में वैज्ञानिक जहाँ नेनाग्राम इकाई (मिलीग्राम का भी कई लाखवां भाग)