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साक्षात्कार
1991 पर अपनी जाति आदि, अपने धार्मिक बंधुओं की जिस चेतना को जगाना चाहता था वह नहीं जगा सका। प्रश्न ऐसा कौनसा कार्य है जो आप करना चाहते थे पर अभी तक कर नहीं पाये? उत्तर : मेरी एक ही इच्छा है कि मैं 'श्री आशापुरा मां जैन अस्पताल को पूर्णकालीन (२४ घंटे चलनेवाली) प्रायः
सभी विभागों से सज्ज अस्पताल बनाना चाहता हूँ। जिसमें हकीकत में गरीबों की सेवा हो सके।' प्रश्न आज की युवा पीढ़ी एक ऐसे चौराहे पर खड़ी है जहां कोई एक सही दिशा चुनना मुश्किल है ऐसे में आप
उन्हें क्या संदेश देंगे? उत्तर : मेरा तो एक ही संदेश है कि हमारा बालक, किशोर, युवा संस्कारी बने। जैनधर्म के प्रति उसकी रक्षा
हेतु तन-मन-धन से सच्चे अस्तित्व के लिए समर्पित रहकर आवश्यक हो तो संघर्ष करे। राजनीति में स्थान बनाकर आवाज को बुलंद करे।। अपनी आलोचना करना सबसे कठिन कार्य है अपनी आलोचना या अपनी कमियों के संदर्भ में कुछ पूछ
सकती हूँ? उत्तर : मनुष्य मात्र कमजोरियों का पुतला है। मैंने जब अभिनंदन ग्रंथ के लिए अपनी जीवन की कथा लिखी
तो मुझे अपने में ही अधिक गलतियाँ या कमजोरियाँ दिखीं जिनमें- क्रोध करना प्रमुख है। दूसरे एक जैन विद्वान को जितना त्यागी होना चाहिए उतना नहीं हो पा रहा हूँ। अन्याय के सामने लड़ बैठना अन्यायी को क्षमा नहीं कर पाना मेरी कमजोरी ही तो है जिससे लोग दुश्मन अधिक बने- दोस्त कम। वर्तमान
युग में भी मैं परिवार को पुराने चश्मे से देखता हूँ यह भी कमजोरी है आप जाने! प्रश्न आपका अभिनंदन ग्रंथ जैन धर्म के चारों सम्प्रदायों द्वारा संकलित-प्रकाशित किया जा रहा है यह सुनकर
आपको कैसी अनुभूति हो रही है? उत्तर : इसमें अनुभूति तो सुखद है। मैंने जीवनभर समन्वय के लिए कार्य किया है अतःचारों समुदायों का प्रेम
वात्सल्य पाना मेरी भावना थी। जब चारों सम्प्रदायो के लोगों ने मिलकर संयुक्त रूप से अभिनन्दन का प्रस्ताव किया तो मैं ना नहीं कर सका।