________________
प एवं सफलताका काना
183
विशेषता बताते हुए बारात रेलगाड़ी से न ले जाकर स्पेश्यल बस में ले जाने का निश्चय किया था। इसका बड़ा ! ही दुःखद अनुभव रहा। बस अहमदाबाद से ही घंटों लेट चली और सागर दोपहर में पहुँचने के बदले रात्रि को ११-१२ बजे पहुँची । वहाँ सारा कार्यक्रम ही फीका-फीका रहा। क्योंकि पूरा समाज इतनी देरी तक बैठ नहीं सका। चौधरी शाह रतनचंदजी की प्रतिष्ठा के कारण अनेक गण्यमान्य लोग भी पधारे थे पर वे भी रुक नहीं सके। खैर! विवाह संपन्न हुआ। दूसरे दिन उसी बस में बारात लेकर वापिस निकले कि बस के कंडक्टर को एकाएक बुखार चढ़ा और वह भोपाल के निकलने के बाद ही कब मर गया पता ही नहीं चला। जब उसे हिलायाडुलाया और मरा हुआ पाया तो बड़ी समस्या हुई। क्या करें कुछ सूझता नहीं था । वह कंडक्टर ड्राईवर का ही भतीजा था। उन दिनों डीज़ल की बड़ी किल्लत चल रही थी। रास्ते में पेट्रोल पंपों पर मीलों लंबी ट्रकों की लाईने 1 देखी जाती थीं। हम सब और ड्राईवर धबड़ा गये। प्रश्न यह हुआ कि यदि इसकी रिपोर्ट लिखायें तो मरने का कोई
कारण ही समझ में नहीं आता और नहीं लिखाते हैं तो परेशान होते हैं। परंतु वह ड्राईवर दिलका मजबूत था । हम लोगो ने भी शांति से सोचते हुए यह तय किया कि इसे पिछली सीट पर कपड़ा ओढ़ाकर रख दिया जाय ताकि । कोई समझे कि कोई मुसाफिर सो रहा है। उस ड्राईवरने जिस शांति, स्वस्थता और तेजी से खेतों आदि में से बस चलाई वह एक अद्भुत कार्य था । आखिर हम लोग किसी तरह अहमदाबाद सी. टी. एम. तक आये। वहाँ से सब लोग अपने-अपने घर चले गये। हमने अपना सामान किसी तरह घर पहुँचाया। सारा भोजन फैंक देना पड़ा, पूरे रास्ते हमने अपनी पुत्रवधु की जो स्वस्थता देखी वह अद्भूत थी। इस माहौल में भी वह सबके साथ स्वस्थता धारण करके साथ में आई । बाद में वह ड्राईवर उस लाश को लेकर अपने गाँव गया । हमने उसे योग्य राशि प्रदान की। उस दिन हम सब लोग बड़े खिन्न रहे । विवाह के सारे कार्यक्रम बंद रखे। आज भी जब कभी उसकी स्मृति होती है तो वह दृश्य एकदम खड़ा हो जाता है और धर्म की वह बात याद आ जाती है जीवन और मरण, खुशी और 1 गम, बारात और अर्थी यह सब तो चलती रहने वाली क्रियायें हैं।
एक त्रासदी पूर्ण प्रसंग
अहमदाबाद में यह एक सबसे दुःखद और त्रासदीपूर्ण घटना है। गणधराचार्य श्री कुंथुसागरजी के शिष्य आ. कुमुदनंदी हैं । वे युवा है और स्वच्छंद भी। गुरू के होते हुए भी आचार्य बन गये हैं। वैसे भी गणधराचार्यने आचार्य के पद खूब बाँटे हैं। उसीमें एक यह कुमुदनंदी भी थे। उनके एकबार चातुर्मास अहमदाबाद में शिवानंद नगर में थे। वे एक तो एकलविहारी मनस्वी थे। सुबह ८.३० बजे उन्हें आहार चाहिए और उसमें भी देर सारा आईस्क्रीम | ! मैं समझता हूँ कि मुनियों को बर्फ या आईस्क्रिम का प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि बर्फ या ओला २२ अभक्ष्य में है। उनके और भी बहुत शिथिल आचरण थे। मैंने उन्हें समझाने का प्रयत्न किया । आखिर अंधश्रद्धालु भक्त और ऐसे ही उनके आचार्य मेरी कैसे सुनते ? मैंने अपनी जिज्ञासा की शांति हेतु २००२ के तीर्थंकर वाणी में एक । अंक में विद्वानों से जिज्ञासा हेतु प्रश्न किये, उसमें एक यह प्रश्न भी था कि 'क्या साधुको आइस्क्रीम खाना चाहिए।' लोगों ने उनके ये कान भरे, मेरे विपरीत ज़हर उगला। वे विहार कर गये। लगभग एक या डेढ़ वर्ष बाद वे पुनः शिवानंदनगर में पधारे। मैं भी मुनिभक्ति से प्रेरित होकर वहाँ गया। मेरे विरोधियों ने उन्हें पूरा चढ़ा रखा था। सो उन्होंने प्रवचन में मेरे व मेरे परिवार की अनेक ऐसी बातें जाहिर में की जो योग्य नहीं थीं और जो मुनियों । के लिए शोभास्पद नहीं होतीं। मैंने 'तीर्थंकर वाणी' में उनके इस वैचारिक दूषित प्रवचन की मात्र चार-पाँच पंक्तियाँ छापी इससे उनका व उनके स्वार्थी अंध भक्तों का पारा और भी बढ़ गया ।