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सफलताका
1 791 वक्ता के रूप में प्रसिद्धि भी मिली और लेखन की प्रेरणा भी। वैसे यह मेरा सौभाग्य रहा कि प्रायः सभी सम्मान । किसी न किसी गवर्नर श्री के द्वारा ही प्राप्त हुए।
विद्यार्थियों हेतु स्कॉलरशीप
मुझे प्रारंभ से ही उन विद्यार्थियों के प्रति सहानुभूति रही है जिन्हें आर्थिक विपन्नता के कारण अध्ययन करने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। वे फीस, पुस्तकें आदि के अभाव में अच्छे ढंग से । पढ़ भी नहीं पाते। मेरे मनमें जैसे १९५४ में गरीबों के लिए अस्पताल खोलने का एक बीज हृदय में रोपा
गया था उसी तरह यह बीज भी हृदय में कहीं छिपा रहा। जैसे अस्पताल का कार्य प्रारंभ कर सका वैसे ही यह कार्य भी किया। मैंने पिछले ५ वर्षों से यह संकल्प किया था कि मुझे पर्युषण आदि पर्व में जो भी विदाई राशि मिलेगी उसे मैं इस अस्पताल में गरीबों के लाभार्थ दे दूंगा और मैं उसपर अमल करके स्वयं में आत्मसंतुष्टि का अनुभव करता हूँ। इसी प्रकार अपनी सीमा में विद्यार्थियोंकी सहायता करने हेतु एक स्कॉलरशीप फंड का भी प्रारंभ किया।
मुझे २००५ में जब पू.ग.आ. ज्ञानमती पुरस्कार में १ लाख रू. की राशि प्राप्त हुई तो उस राशि में मैंने १ लाख रू. और मिलाकर कुल २ लाख रू. रिजर्व बैंक में फिक्स में जमा करा दिये हैं और संकल्प किया है कि इस राशि से जो भी व्याज आयेगा उसे गरीब विद्यार्थियों में विद्याध्ययन में सहायतार्थ दे दूंगा। अगले वर्ष से यह कार्य प्रारंभ हो जायेगा। मेरी भावना है कि यह राशि ५ लाख तक किसी तरह बढ़ाई जाय। ताकि अधिक से अधिक विद्यार्थियों को लाभ पहुँचा सकूँ।
श्री आशापुरा माँ जैन (गाधकड़ा) अस्पताल का प्रारंभ
सन् १९८८ में समन्वय ध्यान साधना केन्द्र की स्थापना की गई। परंतु मात्र कागज पर स्थापना थी। सन् १९९३ तक कोई विशेष कार्य नहीं हो सका। हाँ १९९३ में ट्रस्ट के मुखपत्र के रूप में तीर्थंकर वाणी मासिक पत्र का प्रारंभ किया और उसका प्रचार-प्रसार करते रहे। उससे लगभग १३ लाख रू. की बचत हुई। अतः अहमदाबाद के उपनगर ओढ़व में एक बिल्डींग की दूसरी मंजिल के १३ कमरे का पूरा फ्लोर खरीद लिया गया। पर समस्या थी कि अब कोई राशि शेष नहीं है क्या करें?
इसी उधेड़बुन में मैं और श्री धीरुभाई देसाई लगे रहते। मकान खरीद लिया था, पर आर्थिक अभाव में कुछ भी प्रारंभ करना कठिन लग रहा था। तभी एकदिन उनकी दुकान पर उनके मामा के लड़के श्री रमेशभाई धामी
और उनके साथी दिल्ली निवासी श्री त्रिलोचनसिंह भसीन पधारे। हमने अपनी समस्या उनके सामने रखी। उन्होंने उसे सहानुभूति से सुना और एक सप्ताह में उत्तर देने को कहा। उन्होंने हमसे पूछा कि आपको कितनी राशि मिले तो आप अस्पताल प्रारंभ कर सकेंगे। मैंने कहा यदि २१ लाख रू. प्राप्त हो जायें तो हम कार्य कर सकते हैं। __ आठ दिन बाद उन्होंने २१ लाख रू. देने की स्वीकृति दी और कहा 'हम सब श्री आशापुरा माँ के भक्त जिसका स्थानक सावरकुंडला के गाधकड़ा गाँव में है- सब मिलकर आपको २१ लाख रू. देंगे। हम कोई अपना नाम नहीं चाहते हैं। आप माताजी के नाम पर अस्पताल को प्रारंभ करें।' ट्रस्टने उनके प्रस्ताव का स्वीकार किया
और अस्पताल को 'श्री आशापुरा माँ जैन (गाधकडा) अस्पताल' नाम प्रदान किया। और १९९८ में इसका विधिवत प्रारंभ तत्कालीन भारत सरकार के गृहराज्यमंत्री श्री हरिनभाई पाठक के द्वारा संपन्न हुआ।
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