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सतियों के वातायन। दिखाई देते हैं। । एक मज़ेदार बात ओर देखी। यहाँ बच्चा चाहे चौथी कक्षा पास हुआ हो या स्कूल की ८वीं या १२वीं या
कॉलेज की कोई परीक्षा पास हुआ हो। ग्रेज्युएशन पार्टी अवश्य होती है। इसमें बड़ी धूमधाम होती है। वैसे वहाँ पार्टिओमें इतना अधिक हो-हल्ला व पश्चिमी धुनों पर डांस होता है कि उनके सामने हमारे डीस्कोथ भी फीके लगें। ऐसी कुछ पार्टियों में सम्मिलित होने का मौका मिला और यह सब देखा और जाना। यहाँ के बच्चे अंतर्मुखी अधिक लगे। वे अधिकांश समय एकांत में अपने कमरों में गुजारते हैं या फिर अपने ढंग के वांचन-टीवी-डांसम्युजिक में बिताते हैं। इस कारण वे भारतीय संस्कारों से दूर होते जाते हैं। __ अमरीका के विस्तृत वर्णन हेतु में शीघ्र ही 'हवा के पंखों पर' पुस्तक लिख रहा हूँ।
जैन सेन्टर ___ यहाँ अमरीका का जैनों के संदर्भ में एक सुखद पहलू यह है कि हमारे जैन लोग बड़े ही सतर्क रहते हैं। अपनी संस्कृति की रक्षा हेतु उन्होंने प्रायः हर राज्य में जैन सेन्टरों की स्थापना की है। अमरीका में आज लगभग १ लाख जैनों की वस्ती है, और लगभग ८० सेन्टर कार्यरत हैं। जैन संस्कृति की रक्षा हेतु जैनधर्म के संस्कारों के सिंचन एवं प्रचार-प्रसार हेतु ऐसे जैन सेन्टरों की स्थापना की गई है। यहाँ विशेषता यह है कि सभी जैन अपने साम्प्रदायिक दायरे से निकलकर एकमात्र जैन बनकर कार्य कर रहे हैं। एक ही स्थान पर दिगम्बर-श्वेताम्बरतीर्थंकरों की मूर्तियाँ हैं तो स्थानकवासियों का साधना स्थल उपाश्रय है। अमरीका में श्रीमद् राजचंद्रजी के भक्तों की अच्छी संख्या होने से सेन्टरो में उनका साहित्य और साधना कक्ष भी होता है। सभी लोग मिलकर महावीर जयंति, दीपावली, नवरात्रि, पर्युषण, दशलक्षण उत्साह से मनाते हैं। प्रायः प्रति शुक्र-शनि-रवि पूजा-भजनभक्ति के कार्यक्रमों के साथ बच्चों के लिए उनकी मातृभाषा की कक्षायें चलाकर उन्हें मातृभाषा सिखाई जाती है। साथ ही उनकी उम्र और श्रेणी के अनुसार जैनधर्म की शिक्षा भी दी जाती है। बड़े लोगों के लिए धार्मिक कक्षायें और प्रवचनों का आयोजन होता रहता है। लगभग शनिवार या रविवार को केन्द्रों में इस शिक्षण के साथ समूह भोजन भी होता है। जैन संस्कृति को अधिक दृढ़ बनाने हेतु विद्वानों को बुलाकर निरंतर सत्संग आयोजित होते रहते हैं। इस कारण यहाँ जैनों में आज भी भारतीय जैन संस्कार दृष्टिगत होते हैं। आज यहाँ न्यूयार्क, शिकागो, बोस्टन, ह्युस्टन, सिनसिनाटी, डेट्रोईट, बोशिंग्टन, न्युजर्सी, केलिफोर्निया, सानफ्रान्सिस्को आदि अनेक राज्यो व शहरों में विशाल जैन मंदिरों की स्थापना हुई है। ये विशाल परिसर इन भोजनशाला, पाठशाला, ग्रंथालय आदि से सज्ज हैं। यहाँ प्रति दो वर्ष में युवा जैनों का एवं हर दो वर्ष में जैना का अधिवेशन विशाल स्तर पर होता है। जिसमें ८-१० हजार जैन एकत्र होते हैं। अनेक संत विद्वानों के निरंतर शैक्षणिक प्रवचन होते हैं। मुझे भी शिकागो एवं सानफ्रान्सिस्को के अधिवेशन में जाने का व प्रवचन ध्यान शिविर के आयोजन का मौका मिला है।
मैंने चिंतन किया तो पाया कि अमरीका की समृद्धि का कारण है- (१) यहाँ लोग स्वयं शिस्त में विश्वास करते हैं या पुलिस या दंड का डर भी उन्हें शिस्त पालन में बाध्य करता है। (२) सबको अपने काम से लगाव है। क्योंकि प्रायः सभी प्राईवेट फर्म होने से काम को ही प्राथमिकता दी जाती है, और तदनुसार ही पैसे मिलते हैं। यहाँ 'जितना काम उतना दाम' की नीति है। (३) अधिक पैसा मिलने के कारण विश्व के देशों का उत्कृष्ट बुद्धि धन यहाँ आ गया है। सिर्फ ४०० वर्ष पुराना देश होन से एवं विश्व के प्रायः प्रत्येक द्वीप के लोगों के आने से ।