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किया। रोटरी क्लब के सदस्य और विविध समितियों के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष रहने से भावनगर के अनेक लब्ध । प्रतिष्ठित व्यापारी. वकील, जज, डॉक्टर्स, शिक्षाविद ऑफिसर्स से परिचय और मैत्री हुई। । हिन्दी समाज का गठन और संचालन
___जैसे कि मेरी आदत रही है कहीं न कहीं कोई न कोई संगठनात्मक कार्य करना ही चाहिए ऐसा सोचता रहता | था। सन् १९७४-७५ में मैं भावनगर रेल्वे डीवीज़न में हिन्दी सलाहकार समिति में मनोनीत सदस्य था। लगभग
तीन वर्ष तक इसका सदस्य रहा। पूरे भावनगर डिविज़न में मुझे किसी भी रेल्वे स्टेशन पर जाकर हिन्दी की प्रगति, उसके शिक्षण आदि का जायजा लेने का अधिकार था। मुझे प्रथम दर्जे का प्रवास पास निःशुल्क प्राप्त था।
इससे मेरा भावनगर डिविज़न के सभी वरिष्ठ पदाधिकारियों से परिचय तो हुआ ही अनेक हिन्दी भाषी पदाधिकारियों | से मित्रता भी हुई। डिविज़न के वरिष्ठतम पदों पर अनेक बिन गुजराती लोग थे। यहीं से यह बीज अंकुरित हुआ
कि क्यों न एक हिन्दी भाषी प्रदेशों के लोगों का संगठन बनाया जाये। जिस प्रकार अहमदाबाद में हिन्दी समाज गुजरात का संगठन हम लोगों ने बनाया था उसी तरह हमने हिन्दी समाज भावनगर की स्थापना की। प्रायः सभी लोग ऐसे संगठन की आवश्यकता का अनुभव कर रहे थे। अतः रेल्वे, आयकर, बिक्री कर, सॉल्ट रिसर्च एवं अन्य कार्यालयों में जो भी गुजरात से बाहर के लोग थे वे तथा हिन्दी भाषी व्यापारी, अध्यापक आदि इसमें सदस्य बने। प्रथम अध्यक्ष रेल्वे डीवीज़न के वाणिज्य अधिकारी श्री वी.एन. उपाध्याय को चुना गया। डॉ. पी.एम. लाल
उपाध्यक्ष चुने गये तो महामंत्री का भार मैंने वहन किया। इसमें स्टेट बैंक ऑफ सौराष्ट्र के उच्च पदाधिकारि श्री । वार्ष्णेयजी एवं श्री चंद्रिकाप्रसाद मिश्र तथा सॉल्ट रिसर्च के श्री अखिलेश तिवारीजी मुख्य थे। ट्रस्ट रजिस्टर्ड
कराया गया और अनेक प्रवृत्तियाँ प्रारंभ की गईं। जिनमें होली-दीवाली का स्नेह मिलन, कवि संमेलन, वाकस्पर्धायें विशेष होती थीं। लेकिन दुःख के साथ यह लिखना पड़ रहा है कि मेरे, श्री चंद्रिकाप्रसाद मिश्र एवं । वार्ष्णेयजी के भावनगर छोड़ने के पश्चात पूरा समाज ही अस्तित्वहीन हो गया।
भारत जैन महामंडल
भावनगर की अन्य सामाजिक एवं धार्मिक प्रवृत्तिओ में रूचि होने के कारण एवं राष्ट्रीय स्तर पर भारत जैन । महामडंल से परिचिय होने के कारण मेरीभावना थी कि संस्था की स्थापना भावनगर में हो। भारत जैन महामंडल | जैन धर्म के चारों संप्रदायों का मिलाजुला संगठन है, जो संप्रदाय भेद से ऊपर उठकर सिर्फ जैनधर्म की बात करता । है। मैं तो प्रारंभ से ही ऐसी ही समन्वयात्मक भावना का समर्थक रहा हूँ। भावनगर में विशेष व्यक्तियों से चर्चा की और भारत जैन महामंडल की शाखा का प्रारंभ हुआ। _ डॉ. भरतभाई भीमाणी प्रथम स्थापक अध्यक्ष बने और मुझे प्रथम स्थापक महामंत्री बनने का गौरव प्राप्त हुआ। हमारे संगठन ने भावनगर में जैनों के बीच भावात्मक एकता के हेतु अनेक कार्यक्रम किए जिसमें भगवान महावीर का जन्मदिन, पर्युषण एवं दशलक्षण के पश्चात विश्व मैत्री दिन का आयोजन विशेष महत्वपूर्ण थे। साथ ही कॉलेजों के गरीब जैन विद्यार्थियों के लिए निःशुल्क ट्युशन क्लास प्रारंभ किए तो जैन डॉक्टरों द्वारा गरीब जैन रोगियों को मुफ्त या राहत दर से जाँचने या दवा देने का कार्यक्रम चलाया। तदुपरांत पुस्तकें भी निःशुल्क । प्रदान की जाने लगीं। इससे सामाजिक निकटता बढ़ी व समाज सेवा का सुंदर अवसर मिला।
शिक्षण संस्कार
भावनगर में मैंने 'जैन एज्युकेशन ट्रस्ट' द्वारा 'शिक्षण संस्कार' मासिक पत्र का प्रारंभ किया। उसका संपादन । किया। यह पत्र पूर्ण रूपेण शैक्षणिक समाचार, आलेख, विचारधारा से संबद्ध था। जिसमें शिक्षण जगत की ।