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माफलमा काना
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। हमारी प्रथम विजय थी। कुलपतिजी को यह विश्वास था कि भले ही फैकल्टी में यह लोग जीते हों पर ऐकेडेमिक | काउन्सिल में यह प्रस्ताव वे निरस्त करा लेंगे।
ऐकेडेमिक काउन्सिल में सभी विषयों के डीन एवं विविध फैकल्टी के चुने हुए सदस्य होते हैं। हमने इसमें भी पूरा जोर लगाया क्योंकि मैं और डॉ. मजीठिया ऐकेडेमिक काउन्सिल के सदस्य थे। वहाँ अनेक दलीलें हुईं, तर्क | हुए यहाँ तक कि कुलपतिजी से गाली-गलौच तक हो गया। लेकिन अंत में हमारी ही विजय हुई। कुलपतिजी ने | हिन्दी की जो स्थिति पैदा की थी, नए सत्र से अनिवार्य के स्थान पर वैकल्पिक दर्जा दिया था जिसका वे परिपत्र
कॉलेजों को भेज चुके थे- वह उन्हें वापिस लेना पड़ा। इससे उनकी बड़ी किरकिरी हुई। ___उस समय गुजरात राज्य के शिक्षा मंत्री श्री प्रबोधभाई रावल थे। भावनगर युनिवर्सिटी में श्री पंड्याजी का कार्यकाल पूरा हो रहा था, नये कुलपतिकी नियुक्ति का प्रश्न चल रहा था। पंड्याजी दूसरी बार पद के इच्छुक थे। श्री प्रबोधभाई रावल ने अपनी कार्य पद्धति के अनुसार भावनगर के प्रतिष्ठित शिक्षाविद अध्यापकों आदि से अभिप्राय प्राप्त किया। मैंने तो स्पष्ट रूप से लिखित रूप में यह दिया कि ऐसे शिथिल व्यक्तित्व को इस पद के लायक ही नहीं मानना चाहिए। आखिर पंड्याजी का चयन नहीं हो सका। पर जाते-जाते वे आम लोगों के बीच यह कहते गये की डॉ. जैन के कारण मैं पुनः इस पद को नहीं पा सका। उनके जाने से यह प्रकरण पूरा हुआ। हिन्दी तो बच गई पर पंड्याजी चले गये और मुझे भी जैनदर्शन में पुनः पी-एच.डी. के मार्गदर्शक के रूप में मान्यता प्राप्त हुई।
भावनगर की विविध प्रवृत्तियाँ ___ भावनगर में मुझे अनेक शिक्षणेतर प्रवृत्तियों में हिस्सा लेकर कार्य करने का मौका मिला। जिनमें मुख्य रूप से रोटरी क्लब, भारत जैन महामंडल, हिन्दी समाज एवं शिक्षण संस्कार पत्रिका चलाने के कार्य मुख्य था।
रोटरी क्लब
श्री महावीर जैन विद्यालय के मंत्री श्री वाडीभाई शाह के आग्रह पर एवं तत्कालीन भावनगर रोटरी क्लब के प्रेसीडेन्ट डॉ. श्री पोपट साहब जो सिविल सर्जन थे- उनकी प्रेरणा से मैं रोटरी क्लब का सदस्य बना और दस वर्षों तक उसका सक्रिय सदस्य ही नहीं विविध समितियों का सदस्य या कार्यकारिणी का सदस्य रहा। जिनमें सबसे महत्वपूर्ण था जेल समिति का चेयरमैन पद। मैं रोटरी क्लब की ओर से नियमित भावनगर की सेन्ट्रल जेल की मुलाकात के लिए जाता। वहाँ कैदिओं से मिलता, उनके जीवन का अध्ययन करता। इस अध्ययन से मैंने जाना कि अधिकांशतः किए गये अपराध क्रोध या भावावेश में ही किये गए हैं। ८० प्रतिशत कैदी अपने किये पर दुःखी थे, वे सुधरना चाहते थे। २० प्रतिशत कैदी आदतन गुनहगार थे। कई तो उच्च शिक्षा प्राप्त भी थे। मैं अनेक संतों, विद्वानों के वहां प्रवचन कराता था, खेल-कूद का आयोजन करवाता था और राष्ट्रीय त्यौहारों पर कार्यक्रम आयोजित करता था। जेल का यह बड़ा ही रोमांचक अनुभव था। - इसी प्रकार मैं रोटरी क्लब के बुलेटीन का चेयरमैन रहा और नियमित प्रकाशन करता रहा। रोटरी क्लब डिस्ट्रीक्ट ३०६ की क्लबों के महासम्मेलन में दो बार गया और दोनों बार वाक् प्रतियोगिता में मुझे प्रथम स्थान व पुरस्कार प्राप्त हुआ। क्लब की शिक्षण समिति आदि में मैंने कार्य किया। मैं ही एक ऐसा रोटेरीयन था जो जैन धर्म के सिद्धांतों के कारण रात्रि में भोजन नहीं करता था। प्रारंभ में मुझे व अन्य रोटेरीयन मित्रों को भी अटपटा लगा। पर मज़े की बात यह थी कि अन्य जैन रोटेरीयन मित्रों में से कुछ ने मेरे साथ ही रात्रिभोजन का त्याग