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साक्षर श्री रमणभाई चि. शाह से परिचय एवं पर्युषण व्याख्यान माला
इस महावीर जैन विद्यालय में ही मेरा परिचय मध्यस्थ कार्यकारिणी के सदस्य गुजराती के प्राध्यापक विद्वान डॉ. श्री रमणभाई चि. शाह से हुआ। एकबार वे भावनगर विद्यालय के दौरे पर अवलोकनार्थ आये। दो दिन उनके साथ रहने का मौका मिला। मेरा पढ़ना-लिखना, वक्तव्य आदि से प्रभावित होकर उन्होंने मुझे देश की प्रसिद्ध संस्था 'मुंबई जैन युवक संघ' जो पर्युषण में आठ दिन में राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय कक्षा के विद्वान वक्ताओं को आमंत्रित करती है... उस मंच से पर्युषण व्याख्यान माला में प्रवचनार्थ बंबई के लिए आमंत्रित किया। भावनगर
से बंबई इस पर्युषण व्याख्यान माला में प्रथमबार निमंत्रित हुआ। हृदय में बड़ा आनंद था। पर धुकपुकी भी लगी | रहती थी कि क्या होगा। इतने बड़े मंच से बौद्धिकों के बीच एक घंटे बोलना..... पर आत्मविश्वास था, लगन । थी सो लगभग एक माह पूर्व से विषय की तैयारी की। आलेख लिखा टाईप कराया, कैसेट में भरा और समय की
सीमा में बोलने का कई दिन रिहर्सल किया। इसका परिणाम यह आया कि पहली बार ही अपेक्षा से अधिक सफलता मिली।
स्मरणीय प्रवचन
इस प्रकार एकबार इसी व्याख्यान माला में जो भारतीय विद्या भवन के विशाल सभा खंड में आयोजित था। उन दिनों आचार्य रजनीश की कृति 'संभोग से समाधि' की बड़ी चर्चा थी। इधर हिन्दी साहित्य जगत में भी मनोविश्लेषणवादी, अस्तित्ववादी साहित्य की गहन चर्चा थी। अज्ञेय जैसे साहित्यकार जो फ्रोईड, जुंग आदि से प्रभावित थे, सभी समस्याओं का निदान जैसे भौतिक और शारीरिक भूख की तृप्ति में खोज रहे थे। मैंने १९६९ में ही दिनकर जी पर पी-एच.डी. का कार्य संपन्न किया था। उर्वशी जैसी कृति ने एक ओर प्रेम, सौंदर्य और | काम जैसे विषयों पर विस्तृत प्रस्तुति हुई थी। यद्यपि इससे पूर्व श्री जयशंकरप्रसादजी की कामायनी में भी प्रेम, सौंदर्य, काम, वासना आदि की बौद्धिक चर्चा हो चुकी थी। दोनों कृतियों में प्रेम, सौंदर्य, काम की चर्चा व आवश्यकता का स्वीकार तो किया था पर उसका शमन या परणति तो त्याग-तप-संतृप्ति में ही पाया गया था। । जहाँ पश्चिमी साहित्य काम-तृप्ति पर ही अपनी इति कर लेता है वहीं भारतीय साहित्य काम की तृप्ति के पश्चात राम को खोजता है। पश्चिम की यात्रा काम तक सीमित है। पर हमारी यात्रा राम तक विस्तृत है। हमारा वानप्रस्थाश्रम इसका प्रतीक है। इन्हीं विचारों से प्रेरित होकर मेरा प्रवचन 'काम से मोक्ष' व्याख्यानमाला में प्रस्तुत हुआ। विषय के विज्ञापन के कारण बौद्धिकों की भी उपस्थिति और उसमें भी आचार्य रजनीश के शिष्यों की । उपस्थिति विशेष थी। मैंने एक घंटे में यह सिद्ध किया कि हमारी मंज़िल तो काम से तृप्त होकर राम की ओर बढ़ना है। उस लोक में पहुँचना है जहाँ काम की इति और राम का जन्म होता है। अर्थात् भोग से मुक्ति पाकर योग और आत्मा के साथ जुड़ने का क्रम हो; उस लोक में जहाँ हर पुरूष शिव और हर नारी शिवा हो। प्रवचन । खूब जमा। उसके कैसेट भी त्रिशला इलेक्ट्रोनिक्स वालों द्वारा खूब बेचे गये।
इस प्रकार इस व्याख्यानमाला में ७-८ वर्षों तक विविध विषयों पर वैज्ञानिक एवं मनोवैज्ञानिक पृष्ठभूमि पर प्रवचन हुए। बंबई में ऐसा होता है कि जो वक्ता इस युवक संघ कि ओर से आमंत्रित होते हैं उन्हें वहाँ उपनगर के जैन संघ अपने यहाँ आयोजित व्याख्यानमाला में आमंत्रित करते हैं। इसी श्रृंखला में मैंने बंबई के अनेक उपनगरों में व्याख्यान दिये।