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________________ WERINomumes 11281 यावावा उसके मुख्यमंत्री श्री मोरारजीभाई देसाई थे और स्वास्थ्य मंत्री थे श्री कन्नवरमजी। अहमदाबाद में रायपुरमें रहनेवाले श्री गोरसाहबने होम्योपेथी कॉलेज का प्रारंभ किया। जिसमें एल.सी.ई.एच. के डिप्लोमा की पढ़ाई का प्रारंभ हुआ। मेट्रिक के आधार पर प्रवेश मिलता था। मेरे मन में भी डॉ. बनने की तीव्र इच्छा थी। अतः कोर्पोरेशन में श्री के.टी. देसाई के प्रयत्न से सुबह की पाली में अपना तबादला करा दिया और इस मेडिकल मॅलेज में दाखिला ले लिया। यहाँ शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी था- बायोलोजी जैसे विषय में चीरफाड़ सिखाते थे। एक तो अंग्रेजी माध्यम, दूसरे प्रातःकाल स्कूल में पढ़ाकर भोजन करके आना...... अतः कक्षा में नींद अधिक आती-विषय कम समझ में आता। लगा बेकार फँस गये। पर इससे बड़ी दुर्घटना तो यह हुई की ट्रस्टीगण कॉलेज चला नहीं पाये और वह बंद हो गई। लड़कों का वर्ष बिगड़ रहा था। पर सरकारने अहमदाबाद के लड़कों को बंबई की होम्योपेथी कॉलेज में प्रवेश दिलाया। कई लड़के गये भी। पर आर्थिक परेशानी से मैं नहीं जा सका। पर इससे एक बात मेरे हृदय में घर कर गई कि मैं भले ही डॉक्टर नहीं बन पाया पर परिवार में डॉक्टर जरूर बनाऊँगा। मेरा यह संकल्प दृढ हुआ और मैंने छोटे भाई महेन्द्र को उज्जैन भेजकर डॉक्टर बनाया। मेरे दोनो पुत्र जिन में बड़े ने बी.ए.एम.एस. और छोटेने एम.डी. किया। वास्तव में यह सब मेरी ही भावनाओं का प्रतिबिंब था। ___ मेडिकल कॉलेज बंध होने से मेरा वर्ष बिगड़ रहा था उसी समय अहमदाबाद के रायपुर विस्तार के एक बंध मील- जहाँ आज बिग बाजार और मल्टीप्लेक्स थीयेटर हैं.... वहाँ पार्टीशन करके सर्वोदय आर्ट्स कॉलेज का प्रारंभ हुआ था। उसमें श्री प्रेमशंकर भट्ट आचार्य थे। उन्हें सारी परिस्थिति बताई तो उन्होंने मुझे प्रवेश तो दिया पर मेरा मनपसंद विषय अर्थशास्त्र मुझे नहीं मिला। अतः हिन्दी लेकर के ही मैंने पढ़ना प्रारंभ किया। उस समय एक ही भावना थी कि किसी तरह ग्रेज्युएट हो जाऊँ। उस समय हिन्दी का श्रेष्ठ विभाग एल.डी. आर्ट्स एवं सेन्ट झेवियर्स कॉलेजों का माना जाता था। अतः । जुनियर बी.ए. में सेन्ट झेवीयर्स कॉलेज नवरंगपुरा में प्रवेश प्राप्त किया। वहाँ कॉलेज के प्राचार्य थे फादर वोलेस और हिन्दी विभाग के अध्यक्ष थे प्रो. विश्वनाथ शुक्ल और अन्य अध्यापको में थे प्रसिद्ध कवि, कथाकार डॉ. रामदरस मिश्र। प्रथम वर्ष बी.ए. यहाँ से पास किया। उधर पुरानी सर्वोदय कॉलेज कि जिसका नाम अब 'श्री स्वामीनारायण कॉलेज' हो गया था वहाँ हिन्दी डिपार्टमेन्ट प्रारंभ हो गया था। पर विद्यार्थी नहीं थे। प्रो. लोधा । साहबने हमें इन्टर में पढ़ाया था। उनके प्रति हमारी सम्मान की भावना थी। अतः उनके आग्रह पर मैं सेन्ट झेवियर्स कॉलेज से एवं भाईश्री जगदीश शुक्ल एल.डी. आर्ट्स कोलेज से यहाँ दाखिल हुए। हम दोनों से यहाँ हिन्दी डिपार्टमेन्ट प्रारंभ हआ। पढाई के साथ हमने यहाँ हिन्दी साहित्य मंडल बनाया। अनेक प्रवत्तियाँ की. इनाम भी जीते और रेडियो स्टेशन पर कार्यक्रमों के मौके भी प्राप्त किये। मुझे गीत-नाटक-लेखन-पठन में रूचि थी। अतः कॉलेज के वार्षिकोत्सव में नाटक का पूरे जोन (विभाग) के श्रेष्ठ अभिनय का कप भी प्राप्त हुआ। इस प्रकार सन् १९६१ में मुख्य विषय हिन्दी, गौण विषय इतिहास के साथ बी.ए. ओनर्स की डिग्री प्राप्त कर सका। - अनुस्नातक १९६१ में बी.ए. पास करने के पश्चात गुजरात युनिवर्सिटी में एम.ए. में प्रवेश प्राप्त किया। उस समय युनिवर्सिटी का हिन्दी का सेन्टर सेंट झेवियर्स कॉलेज में चलता था। यहीं दो वर्ष में एम.ए.उच्च द्वितीय श्रेणी में ५७ प्रतिशत प्राप्त करके उत्तीर्ण हुआ। यहीं हमारे साथ अध्ययन करते थे गुजराती के प्रसिद्ध उपन्यासकार कवि श्री रघुवीर चौधरी, श्री भोलाभाई पटेल और गुजरात युनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति डॉ. चंद्रकांत महेता। हमारे इन सहपाठियों में अधिकांश गुजरात के कॉलेजो में प्राध्यापक हुए।
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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