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'तिरिया पल्टन' सम्बोधन में किंचित् व्यंग्य की गंध लगी, मैंने व्यंग्यात्मक टोन में ही प्रत्युत्तर दिया-तिरिया तो आँचल में दूध और आँखों में पानी वाली अबला होती है। उसकी पल्टन बनने का प्रश्न ही कहाँ उठता है? शेखरजी ने पैंतरा बदला बोले- कौन कहता है? आप अबला हैं। पूज्य गणिनी ज्ञानमती माताजी में तो हजारों पुरुषों की ऊर्जा है। जब मैंने डॉ. शेखरजी से शास्त्रि परिषद् की घटना का उल्लेख किया तो उन्होंने तपाक से रजिस्टर मेरे समक्ष रखते हुए कहा - 'विद्वत् संघ की सदस्यता का प्रारंभ आपसे ही होगा। जैनधर्म तो स्त्री-पुरुष की समानता का उद्घोषक है। कोई भेदभाव नहीं। हमारे समक्ष तीर्थंकर ऋषभदेव की पुत्रियाँ ब्राह्मी और सुन्दरी का आदर्श है। ऋषभदेव ने अपने पुत्रों के समान ही पुत्रियों को भी लिपि और अंक विद्या की शिक्षा प्रदान की। आदिपुराण के 16वें पर्व का निम्न् श्लोक इस तथ्य का प्रमाण है
विद्यावान् पुरुषो लोक सम्मतिं याति कोविदः।
नारी च तद्वती पत्ते स्त्रीसृष्टे रग्रिमं पदं॥ भाई शेखरजी के स्त्री जाति के प्रति इस उदार और व्यापक दृष्टिकोण ने मुझे भावाभिभूत कर दिया। आज भी जब किसी समारोह में अपनी सहेलियों के साथ शेखरजी से साक्षात्कार होता है - तो मैं 'तिरिया पल्टन' | शब्द को दोहरा कर हँसी की फुलझड़ी छोड़े बिना नहीं रहती। ___कुण्डलपुर की कार्यकारिणी में कुछ देर से पहुंचने पर बोले- आप उपाध्यक्ष की कुर्सी पर बैठकर समय की प्रतिबद्धता और अनुशासन का उदाहरण प्रस्तुत नहीं करेंगी तो सामान्य सदस्यों से हम किस मुँह से इन नियमों का पालन करने का आग्रह करेंगे? कथन सटीक था। बात मन को छू गई। ____ कुछ व्यक्तियों को शेखरजी की यह स्पष्टवादिता अखरती है पर कितनों में सच को सच कहने का नैतिक साहस होता है। विरोधियों के बाग्वाणों को सहते हुए भी डॉ. शेखर अपने कथन पर अडिग रहते हैं और उचित समय पर ईंट का जवाब पत्थर से देने में भी नहीं हिचकते। उनके अटल व्यक्तित्व की यह निर्भीकता उन्हें सामान्यजन से पृथक करती है। __यादों के झरोखे से एक और झोंका- मेरे निर्देशन में पूज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी के साहित्य पर एक, अजैन शोध-छात्र ने आगरा विश्वविद्यालय में शोध-प्रबन्ध प्रस्तुत किया। जैन धर्म और दर्शन के अधिकारी। विद्वान डॉ. शेखरजी को शोध-प्रबन्ध का परीक्षक नियुक्त किया गया। शोध-प्रबन्ध पर उनका विद्वतापूर्ण, । सारगर्भित, प्रतिवेदन प्राप्त होने पर विश्वविद्यालय ने उन्हें ही मौखिक परीक्षा के लिए आमंत्रण प्रेषित किया। । परीक्षा विश्वविद्यालय परिसर में ही सम्पन्न होनी थी। उन्होंने सर्वप्रथम शोध छात्र की इस बात के लिये प्रशंसा की कि उसने अजैन होते हुए भी जैन संत पर शोध-कार्य करने का साहस किया। प्रश्नोत्तर के मध्य छात्र के सही । उत्तर देने पर वे उसकी भरपूर प्रशंसा करते और जिस किसी प्रश्न पर वह अटक जाता, भाई शेखरजी मेरी ओर । देखकर मुस्कराकर कहते- मैडम, सम्भवतः out of course मैं ही तो नहीं पूछ रहा? ___ पश्चात डॉ. साहब ने स्वयं अपनी लेखनी से छात्र को पी.एच.डी. उपाधि प्रदान करने की संस्तुति की। ताजमहल परिसर में छात्र ने स्मृति स्वरूप डाक्टर साहब का मेरे साथ छाया चित्र लेने का अनुरोध किया। डॉक्टर साहब ने छात्र की श्रद्धा एवं आदर-भाव का सम्मान करते हुये हँसते हुए कहा- भई, मैं और मैडम तो उपाधि- । प्राप्ति के शुभ कार्य में निमित्त मात्र हैं, उपादान तो तुम्हारा ही है, तुम भी हमारे साथ चित्र खिंचवाओ। इस अविश्वसनीय व्यवहार से छात्र विमुग्ध था। प्रेरणास्पद घटनाओं, रोचक प्रसंगों की एक सुदीर्घ श्रृंखला मेरे स्मृतिकोष में है।