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સૂરિપુરંદર શ્રી હરિભદ્રસૂરિ
क्रम नाम
१.
२.
विशेष टिप्पणी :
(१) (स्वस्तिक) चिह्नांकित ग्रंथ आज अनुपलब्ध है ।
(२)
(३) •
(४)
१.
२.
३.
8.
६.
७.
८.
स्तुति
वीरस्तव
संसार दावानल
श्लोक
83
जहाँ पर (प्रा.) ऐसा लिखा है, वे ग्रंथ प्राकृत भाषा में हैं ।
जिस ग्रंथ के साथ शून्यदर्शक चिह्न अंकित किये गये हैं, उस ग्रंथ की पाण्डुलिपियाँ आज भी मौजूद हैं।
यहां हमने ग्रन्थाग्र दिये हैं, उसकी कहीं पर भिन्नता देखने को मिल सकती है, पर अंदाजन करने में कोई बाधा नहीं होगी । इस गणना से श्री हरिभद्रसूरिजी ने प्रायः १५०००० श्लोक से अधिक ही रचना की है यह बात निःशंक है ।
प्रथम पुरस्कर्ता : श्री हरिभद्राचार्य
प्रतिक्रमण की विधि को व्यवस्थित संकलित करने में श्री हरिभद्रसूरिजी सर्व प्रथम थे, ऐसा लगता है ।
पंचवस्तुक में चर्चित विषयों का तार्किक दृष्टि से निरूपण करनेवाले श्री हरिभद्रसूरिजी प्रथम संभवित है ।
जैनागमों में श्री आवश्यकसूत्र के अलावा संस्कृत में वृत्ति लिखने की सर्वप्रथम शुरूआत करने वाले श्री हरिभद्रसूरिजी थे, ऐसा लगता है ।
चैत्यवंदन सूत्र पर सर्व प्रथम यदि कोई वृत्ति उपलब्ध है, तो वह श्री हरिभद्रसूरिजी की है । श्री हरिभद्रसूरिजी द्वारा स्वरचित चार (अनुयोगद्वार, आवश्यकसूत्र, न्यायप्रवेशक, पंचवस्तुक) वृत्ति के नाम शिष्यहिता एवं एक (दशवैकालिक) का नाम शिष्यबोधिनी रखा, इस प्रकार का नाम रखने वाले जैनाचार्यों में वे प्रथम हैं, ऐसा लगता है ।
भारतीय दर्शनों में चार्वाक दर्शन की भी एक दर्शन के रूप में पहचान करानेवाले श्री हरिभद्रसूरिजी का प्रायः प्रथम स्थान है ।
उपलब्ध साहित्य देखते हुए योग के सम्बन्ध में आठ दृष्टि का विचार देकर नई दिशा सूचित करनेवाले एवं जैन साहित्य में योग मार्ग की पुनः स्थापना करनेवालों में श्री हरिभद्रसूरिजी प्रथम थे ।
केवलज्ञान - केवलदर्शन दो उपयोगवाद के विषय में तीन मतों के पुरस्कर्ता के रूप में श्री जिनभद्रगणि, श्री सिद्धसेन दिवाकरसूरिजी एवं श्री वृद्धाचार्यश्री का उल्लेख सर्व प्रथम बार श्री भद्रसूरिजी ने किया था ।