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श्रद्धांजली पूज्य तुम्हारे यशोगान लिख, कलम हमारो धन्य हुई, क्योंको तेरी दिव्य शक्ति, जन जागरणमें साकार हुई। समता सभ्य अदार स्वरो में, तेरी वाणी अमर हुई, श्रमण संस्कृति झुपदेशोकी, झांकी जिसमें प्रकट हुई ॥१॥ श्री शोभा की तरह तुम्हारी, कीर्ति जगमें छायी थी, .. वाणी वीर प्रभु की दे कर, सुखद 'शांति' फैलायी थी। पूर्व दिशा की सूर्य किरण सी, ज्योति तुमने पायी थी, मोहतिमिर अज्ञान राह की, बेडी तुमने तोडी थी ॥२॥ मोहन जैसा नाम तुम्हारा, ब्रह्मचर्य को पाया था, सकल संघ को धर्म मार्ग का, जिसने बोध कराया था । तू अध्यात्म योग मार्ग का, अक चमकता तारा था, दिव्य रत्न की भांति तूने, प्रखर ज्ञान ‘फैलाया था ॥३॥ मुनि की सौम्य मूर्ति धारण कर, क्रियोद्धार कहाये थे, यति से मुनि संवेगी बनकर, सम्यग् दर्शन पाये थे । घूम घूम कर जन मानस को, मुक्तिमार्ग बताते थे, मिथ्यात्वी को राह दिखाने वाले संत निराले थे ॥४॥ श्रद्धा अंजली भाव पुष्प की, शब्दो में है व्यक्त हुई, मोहन मुनि के चरण कमल में, भक्ति भाव से अर्पित हुई । पाकर जैसे मुनि रत्न को, धरती माता धन्य हुई, जिन के गुण गौरव को गाकर, कविता मेरी सफल हुई ॥५॥
शांति सुराण. M. Com. (साहित्यल सभातरत्न, साहित्य सुधा४२,
मथरत्न, शनीतिरल.)
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