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________________ देशी नाममाला लेखक : प्रो० नेमिचन्द्र शास्त्री एम. ए. कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र की प्रतिभा बहुमुखी थी। इन्होंने दर्शन, व्याकरण, कोष, पुराण, अलङ्कार आदि शास्त्रों पर महत्त्वपूर्ण और उपयोगी ग्रन्थ लिखे हैं। इनका देशी नाममाला नामक कोश ग्रन्थ प्राचीन आर्यभाषा के जिज्ञासुओं के लिए अत्यन्त उपयोगी है । इस कोश के आधार पर आधुनिक आर्यभाषाओं के शब्दों की व्युत्पत्तियाँ एवं अनेक अर्थगत वैशिष्टय की विवेचना सम्यक् प्रकार की जा सकती है। जिन शब्दों की व्युत्पत्ति संस्कृत से सिद्ध नहीं की जा सकती है, उनकी इस कोश के आधार पर सहज में निर्धारित की जा सकती है। प्राकृत भाषा का शुद्ध भण्डार तीन प्रकार के शब्दों से युक्त है-तत्सम, तद्भव और देश्य । तत्सम वे शब्द हैं, जिन की ध्वनिया संस्कृत के समान ही रहती हैं, जिन में किसी भी प्रकार का विकार उत्पन्न नहीं होता, जैसे नीर, कंक, कंठ, ताल, तीर आदि । जिन शब्दों के संस्कृत ध्वनियों में वर्णलोप, वर्णागम, वर्णविकार अथवा वर्णपरिवर्तन के द्वारा अवगत किया जाय, वे तद्भव कहलाते है; जैसे अग्र-अग्ग, इष्ट-इट्ठ, धर्म-धम्म, गज-गय, ध्यान-झाण, पश्चात-पच्छा आदि । जिन प्राकृत शब्दों की व्युत्पत्ति-प्रकृति प्रत्यय विधान सम्भव न हो और जिन का अर्थ मात्र रूढ़ि पर अवलम्वित हो, ऐसे शब्दों को देश्य या देशी कहते है। जैसे अगय-दैत्य, इराव हस्ती, छासी-छाश, चोढ=विल्व आदि। इस देशी नाममाला में जिन शब्दों का संकलन किया गया है, उनका स्वरूप निर्धारण स्वयं ही आचार्य हेम ने किया है। जे लक्खणे ण सिद्धा ण पसिद्धा सक्कयाहिहाणेसु । ण य गउणलक्खणासक्ति संभवा ते इह णिबद्धा ॥१-३।। देस विसेस पसिद्धीइ मण्णमाणा अणत्तया हुन्ति । तम्हा अण्णाइपाइअपयट्ट भासाविसेसओ देसी ॥१-४॥ जो शब्द न तो व्याकरण से व्युत्पन्न हैं और न संस्कृत कोशों में निबद्ध हैं तथा लक्षणा शक्ति के द्वारा भी जिनका अर्थ प्रसिद्ध नहीं है, ऐसे शब्दों का संकलन इस कोश में करने की प्रतिज्ञा आचार्य हेमने की है। देशी शब्दों से यहां महाराष्ट्र, विदर्भ, आभीर आदि प्रदेशों में प्रचलित शब्दों का संकलन भी नहीं समझना चाहिए। यतः देश विशेष में प्रचलित शब्द अनन्त है, अतः उन का संकलन संभव नहीं है। अनादिकाल से प्रचलित प्राकृत भाषा ही देशी है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012077
Book TitleMohanlalji Arddhshatabdi Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMrugendramuni
PublisherMohanlalji Arddhashtabdi Smarak Granth Prakashan Samiti
Publication Year1964
Total Pages366
LanguageHindi, Gujarati, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size13 MB
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