SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 92
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६६] वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला नमस्करणीय ज्ञानगरिमा - डॉ० रमेशचन्द जैन, बिजनौर बीसवीं शताब्दी सामाजिक और धार्मिक चेतना की दृष्टि से जैन समाज के लिए महत्त्वपूर्ण रही है। इस सदी में महान् आध्यात्मिक साधु-संत, त्यागी, व्रती और विद्वानों के अतिरिक्त अनेक साध्वियाँ और गृहस्थ महिलारत्न हुईं, जिनकी साहित्यिक, धार्मिक और सामाजिक सेवा स्मरणीय रहेगी। पूज्य आर्यिकारत्न ज्ञानमती माताजी ऐसी साध्वी नारी रत्न हैं, जिन्होंने जैन समाज को अपने कार्यकलापों से गौरवान्वित किया। दुर्बल क्षीणकायाधारिणी उन्होंने अपनी लेखनी से अनेक सुन्दर ग्रन्थ रत्नों का सृजन किया। अष्टसहस्री जैसे दर्शनशास्त्र के क्लिष्टतम ग्रन्थ का उन्होंने सरल, सुबोध हिन्दी भाषा में अनुवाद किया। वे जम्बूद्वीप रचना को साकार कर हस्तिनापुर तीर्थक्षेत्र का जन-जन में प्रचार करने में इस युग में अग्रणी रही हैं। उनकी ज्ञानगरिमा सभी के लिए नमस्करणीय है। मुझे उनके चरणों में बैठकर अष्टसहस्री के कठिन स्थल समझने और उनकी अनूदित हस्तलिखित प्रति से नोट्स लेने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मैं उनके प्रति हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ और चौबीसों तीर्थंकर भगवान से प्रार्थना करता हूँ कि वे शतायु ही नहीं सहस्रायु हों और दर्शनशास्त्र के अन्य उच्चकोटि के ग्रन्थ उनके द्वारा अनूदित होकर लोगों के हृदय कमल में विराजमान हो सकें। साकार अनन्वय अलंकार - विद्यावारिधि डॉ० महेन्द्र सागर प्रचंडिया निदेशक - जैन शोध अकादमी, अलीगढ़ पर्वत में ऊँचाई तो होती है, पर गहराई नहीं; सागर में गहराई तो होती है, पर ऊँचाई नहीं। गहराई और ऊँचाई यदि किसी को एक साथ जाननी हो तो उसे पूजनीया आर्यिकारत्न १०५ श्री ज्ञानमती माताजी को जानना चाहिये। माताजी में आगमी ज्ञान की गहराई और चारित्र की ऊँचाई एक साथ मुखर हो उठी हैं। - जैन संत स्व-पर कल्याणार्थ ज्ञान और ध्यान में सदालीन रहते हैं। स्वाध्याय उनकी चर्या का प्रधान अंग होता है। उनके भोजन में संयम और भजन में यम-नियम का मणि-कांचन संयोग की भांति सदा संग-साथ रहता है। पूजनीया माताजी इस तथ्य की साकार अनन्वय अलंकार हैं। उन्होंने अपने अध्ययन- अनुशीलन से अनेक उपयोगी ग्रंथों का प्रणयन किया है और अपनी चारित्रिक गंध-सुगंध से संत परम्परा को गत्यात्मकता प्रदान की है। माताजी ने देश के तमाम सिद्ध क्षेत्र तीर्थों क्षेत्र तथा अतिशय तीथों की वंदना कर धर्म तथा पुण्यार्जन तो किया ही है, साथ ही अन्य साधर्मी भाई-बहिनों को प्रबल प्रेरणा दी है कि वे जीवन में तीर्थवन्दना कर अपने जीवन को सफल बनाएँ। इतना ही नहीं, हस्तिनापुर में आपने जम्बूद्वीप की रचना कराने की प्रबल प्रेरणा देकर शास्त्रीय सत्य को सरल शैली में मूर्तरूप से सुलभ कराया है। संत-निवास तपोवन का रूप धारण कर लेता है। संयम और तपश्चरण का वातावरण नवागंतुक में सदाचरण के संस्कार जगा देता है। इस दधि से त्रिलोक शोध संस्थान एक जीवंत उदाहरण है। उसे देखने के लिए देश-देशान्तर के दर्शनार्थी प्रायः नित्य पधारते हैं और होते हैं लाभान्वित । मुझे भी वहाँ ठहरने, दर्शन करने तथा ब्रह्मचारी रवीन्द्रजी के ब्याज से पूज्या माताजी के दर्शन करने का शुभ अवसर प्राप्त हुआ है। यह जानकर प्रसन्नता है कि श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ प्रकाशन की योजना बनी है। इस संदर्भ में मेरे अनन्त शाब्दिक श्रद्धान सादर समर्पित हैं। मेरी भावना है कि ग्रंथराज के द्वारा माताजी के व्यक्तित्व और कृतित्व के अतिरिक्त जिनवाणी के अनेक लुप्त - विलुप्त संदर्भ उजागर होंगे। ग्रंथराज का सम्पादन - प्रकाशन निर्विघ्न सम्पन्न हो, इस मंगलाचरण के द्वारा अपनी शुभकामना और भावना व्यक्त करता हूँ। इत्यलम्। Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy