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________________ गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ पंडाल पंचकल्याणक में माताजी ने स्वयं ही मुझे नियमसार ग्रंथ पर बोलने का आदेश दिया। बड़े समारोहों में समय की बहुत सीमा होती है। किन्तु माताजी ने कहा "पंडितजी अपने नाम के आगे का मल हटा दीजिए, सागर सीमा में ही रहता है किन्तु आप समय सीमा में नहीं बंधे हैं। " । पंचमकाल में जम्बूद्वीप को साकार कर देना दैविक चमत्कार कहा जाये या माताजी के पूर्व संस्कारों का दृश्य ? काल चक्र में जब तक जम्बूद्वीप रहेगा तब तक सदियों / पीढ़ियों को परमपूज्य आर्यिकारत्र गणिनी ज्ञानमती माताजी का सानिध्य मिलता रहेगा। सन् १९७८ से आज तक के संस्मरण / स्मृतियाँ कागज के पन्नों में नहीं लिखे जा सकते, वे तो मन में तरंगों की भाँति हिलोरे लेते रहते हैं। धन्य हैं वे लोग जिन्होंने माताजी और जम्बूद्वीप को एक साथ देख लिया है। यह मेरा सौभाग्य ही रहा है कि मैंने जम्बूद्वीप ज्ञानज्योति रथ के उद्घाटन और समापन दोनों ही देखे है, गणिनी का पद भी ग्रहण करते देखा है। यह अभिवन्दन ग्रंथ मार्च ८७ में ही प्रकाशित हो जाना चाहिये था, जो आज हो रहा है। मैं इस निमित्त को पाकर पूज्य माताजी के चरणों में नतमस्तक होता हूँ । प्रज्ञा और पुरुषार्थ की मूर्ति [६५ भारत वसुन्धरा जिन भव्यात्माओं से गौरवान्वित है, उनमें आर्थिकारण १०५ श्री ज्ञानमती माताजी को श्रद्धा के साथ स्मरण किया जा जाता है। रत्नत्रय से पवित्र माताजी के जीवन का मंत्र अध्यात्मवाद है। इनका जीवन पवित्रता से ओत-प्रोत है। ज्ञान सम्यक् है। आचार्य कुन्दकुन्द ने इन जैसे ज्ञान को ही ज्ञान कहा है जेण रागा विरज्जेज जेण सेएस रज्जदि । जेण मित्तिं पभावेज तं णाणं जिणसासणे ।। [ २६८ ] ॥ Jain Educationa International - डॉ० श्रेयांस कुमार जैन, बड़ौत महामंत्री- दि० जैन शास्त्री परिषद् मूलाचार जिसके द्वारा जीव राग से विरक्त होता है, जिसके द्वारा मोक्ष में राग करता है, जिनशासन में वह ज्ञान कहा है। ऐसे ज्ञान की अधिकारिणी आप हैं चारित्र और ज्ञान के समन्वय के कारण माताजी जगत्विश्रुत / बंध हो गयी हैं। अष्टसहस्त्री नियमसार, समयसार आदि दार्शनिक और सैद्धानित्क ग्रन्थों की प्रामाणिक हिन्दी-संस्कृत टीका करके आप विद्वत्जगत् में गौरवान्वित हैं। प्रत्येक व्यक्ति अवसर की खोज में रहता है कि ऐसा अवसर मिले कि हम भी कुछ करके दिखाएँ। इस प्रकार प्रतीक्षा में सम्पूर्ण जोवन ही व्यतीत हो जाता है, परन्तु उन्हें अवसर ही नहीं मिलता। आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी के सामने कार्यों की भरमार रही और प्रत्येक कार्य माताजी की प्रज्ञा और पुरुषार्थ के फलस्वरूप सफलतम रहा। जम्बूद्वीप प्रतिकृति संरचना माताजी के जीवन का श्रेष्ठतम कार्य है। विश्वास इनके जीवन की सिद्धि है। प्रत्येक कार्य की सिद्धि विश्वास पर अवलम्बित है इनके कर्मठ व्यक्तित्व का प्रभाव जैन और जैनेतर समाज में बाहुल्येन व्याप्त है। लोककल्याण की भूमिका में जो जीवन और चरित्र रहा करते हैं, व्यक्ति के आध्यात्मिक जागरण के भीतर जो जीवन-दर्शन पीठिका के रूप में स्थिर रहता है वही व्यक्तित्व/जीवन-चरित्र और दर्शन आर्यिकारत्न ज्ञानमती माताजी का है। पूज्य माताजी तप और त्याग की मूर्ति हैं। शान्ति और संयम की जीवित प्रतिमा हैं, उनके हृदय में दया, क्षमा, करुणा, वात्सल्य, सहनशीलता और स्नेह का सागर हिलोरें लेता रहता है। ऐसी प्रशम और प्रज्ञा की मूर्तिमती माताजी के प्रति विनम्र विनयांजलि अर्पित करता हुआ भावना करता हूँ कि इनके द्वारा जिनधर्म और जिनागम की प्रभावना सहस्रों वर्षों तक होती रहे। For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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