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गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ
___ एक संस्मरण और लिखकर मैं अपनी बात समाप्त करता हूँ कि मुझे हस्तिनापुर स्थित जम्बूद्वीप में विगत वर्षों में कितनी ही बार आना पड़ा और जब भी मुझे माताजी के पास जाने का अवसर मिला मैंने माताजी को सदैव स्वाध्याय, लेखन, उपदेश एवं शास्त्र चर्चा करते हुये पाया। व्यर्थ का विसंवाद न कभी स्वयं करती हैं न औरों को करने की अनुमति देती हैं। माताजी अहर्निश स्वाध्याय एवं लेखन में लगी रहती हैं यह भी बहुत बड़ी तपस्या है, जिस पर हम सभी को गर्व है।
ऐसी महान् विदुषी एवं तपस्यारत्न गणिनी आर्यिका माताजी के पावन चरणों में शत-शत अभिनंदन ।
अद्वितीय प्रतिभा की धनी : आर्यिका जी
- डॉ० सुरेशचन्द्र अग्रवाल प्राध्यापक - गणित, मेरठ विश्वविद्यालय, मेरठ
हस्तिनापुर नगर का मेरे परिवार से घनिष्ठ सम्बन्ध है अतः प्रायः आना-जाना बना रहता है, किन्तु पूज्य आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमतीजी के सम्पर्क में मैं १९८५ में ही आया। १९८५ के इण्टरनेशनल सेमिनार आन जैन मैथमेटिक्स एण्ड कोस्मोलोजी के एकेडमिक सेक्रेटरी के रूप में मुझे पूज्य माताजी के सानिध्य में आयोजित सेमिनार सम्बन्धी अनेक बैठकों में सम्मिलित होने का अवसर प्राप्त हुआ। गणितीय विषयों में पूज्य माताजी की अभिरुचि, समागत विद्वानों के प्रति वात्सल्य भाव, विद्वत् जगत् के प्रति उनके मन में आदर श्लाघनीय है। स्थान मान पद्धति, अंक स्थान क्रम, संख्या सिद्धान्त एवं क्रमचय संचय (भंग एवं विकल्प गणित) पर चर्चा उनको बहुत प्रिय है। एक दिन मेरे शिष्य अनुपम जैन के साथ उनसे हो रही चर्चा में माताजी ने बताया कि 'तुम जैन गणित पर शोध कार्य करा रहे हो इसके लिए तुम्हें स्वयं जैन दर्शन पढ़ना चाहिये क्योंकि जैनाचार्यों की कृतियों पर उनके व्यक्तित्व का व्यापक प्रभाव पड़ा है। देखो ! महावीराचार्य (८५० ई०) ने स्थान मान की सूची में २४ स्थान ही लिए, क्यों ? क्योंकि तीर्थंकरों की संख्या २४ है। जैन गणित ग्रन्थों में रत्न - ३ के लिए, गति - ४ के लिए, इन्द्रिय - ५ के लिए, द्रव्य - ६ के लिए, तत्त्व - ७ के लिए, कर्म - ८ के लिए तथा पदार्थ- ९ एवं धर्म - १० के लिये प्रयुक्त हुआ है। जबकि जैनेतर ग्रन्थों में इन अंकों हेतु भिन्न शब्दों का प्रयोग हुआ है। अतः जैन गणित के सम्यक् अध्ययन हेतु जैन दर्शन का प्राथमिक ज्ञान आवश्यक है।'
आपकी प्रेरणा एवं आशीर्वाद से मैंने जैन दर्शन का प्राथमिक अध्ययन प्रारम्भ किया इससे जैन गणित पर अपने अध्ययन को विकसित करने में मुझे पर्याप्त सहायता मिली है।
पूज्य माताजी का जैन धर्म/दर्शन का ज्ञान अगाध है। उन्होंने १२५ से अधिक छोटी बड़ी पुस्तकों का सृजन किया है। उनकी कृतियों में पर्याप्त विविधता है। भूगोल - खगोल से लेकर न्याय, व्याकरण दर्शन तक उन्होंने अपनी लेखनी चलाई है। उनकी लघु पुस्तिकायें एवं कहानी संग्रह मस्तिष्क पर अमिट छाप छोड़ते हैं। वे अद्वितीय प्रतिभा एवं विलक्षण सूझ-बूझ की धनी हैं। उनकी प्रेरणा से निर्मित जम्बूद्वीप विश्व में अपने प्रकार की प्रथम दर्शनीय रचना है।
ऐसी महान् विदुषी के सम्मान में अभिवन्दन ग्रंथ का प्रकाशन कर जैन समाज स्वयं को गौरवान्वित कर रहा है। वे जैन समाज की ही नहीं अपितु सम्पूर्ण मानव समाज की साध्वी हैं। तथापि मैं आपके इस प्रयास की सफलता की कामना करता हूँ एवं पूज्य माताजी के चरणों में शतशः नमन् करता हूँ।
जैन गणित की विदुषी
-प्रो० एल०सी० जैन, निदेशक आचार्य श्री विद्यासागर शोध संस्थान, जबलपुर
परम पूज्य गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी अभिवन्दन ग्रन्थ प्रकाशन के समाचार से हार्दिक प्रसन्नता हुई। पूज्य माताजी विश्व की प्रथम भारतीय नारी हैं, जिन्होंने जैन गणितीय त्रिलोक संरचना में से जम्बूद्वीप की रेखागणित को साकार प्रारूप प्रदान किया। यह इतिहास की प्रथम गणितीय
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