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गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ
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"धन्य मात सानिध्य तुम्हारा"
-ब्र० कु० बीना जैन संघस्थ गणिनी आर्यिका श्री. ज्ञानमती माताजी
इस पावन वसुन्धरा पर समय-समय पर अनेक महान् आत्माओं ने जन्म लिया है, उन्हीं में से एक आत्मा पूज्य आर्यिका ज्ञानमती माताजी भी हैं। कन्या रूप में त्याग-मार्ग में पहला कदम रखने वाली ये ही पूज्य बड़ी माताजी हैं। इनके दीक्षा लेने के बाद अनेक कन्याओं ने अपने जीवन का उद्धार किया है। पूज्य ज्ञानमती माताजी ने मात्र कक्षा ४ तक पढ़कर भी अनेक ग्रन्थ लिख डाले और इतना बड़ा काम भी कर डाला कि आज तक किसी भी आर्यिका ने इतने ग्रन्थ नहीं लिखे थे। हमने १० साल पहले दिल्ली में पूज्य माताजी के दर्शन किये, वहाँ पर १०-१५ दिन रुके भी। पुनः सन् १९८२ में हस्तिनापुर में पूज्य माताजी के दर्शन किये और ऐसा प्रेम वात्सल्य मिला कि फिर जाने का मन ही नहीं हुआ। सन् १९८९ में हमने ब्रह्मचर्य व्रत एवं दो प्रतिमा के व्रत पूज्य माताजी से ग्रहण किये। पूज्य चन्दनामती माताजी, जो कि पहले ब्रह्मचारिणी कु० माधुरी थीं, इनके पास हमारा बहुत मन लगा। मन में ऐसी भावना आई कि हम भी इनके पद चिह्नों पर चलने का प्रयास करें।
पूज्य माताजी ने अनेक ग्रन्थ लिखे, अष्टसहस्री, नियमसार, समयसार और भी अन्य पुस्तकें लिखीं। पू० माताजी की पहचान ही यह है कि जब भी देखो तभी उनके हाथ में कलम रहती है, कुछ न कुछ जरूर लिखती रहती हैं। जब पूज्य चन्दनामती माताजी कहती हैं कि माताजी आज आपका स्वास्थ्य ठीक नहीं है, न लिखो तब माताजी कहती हैं कि हम जब तक कुछ लिखते नहीं हैं तब तक हमारा पेट नहीं भरता है। चाहे कितनी भी तबियत गड़बड़ हो, लेकिन लिखने से उनको हल्कापन मालूम पड़ता है।
जितना बड़ा काम आज पूज्य माताजी ने किया उतना काम आज तक किसी भी आर्यिका ने नहीं किया। पूज्य माताजी के आशीर्वाद से हमने अपनी मौसी कु० माधुरी के साथ ज्ञानज्योति में जाकर भी खूब आनन्द लिया था। इस प्रकार पूज्य माताजी के ९ वर्षीय सानिध्य से मेरे जीवन में बहुत बड़ा परिवर्तन आया है। आगे भी इसी प्रकार ज्ञान और संयम की आराधना करते हुए मुझे आपका वरदहस्त प्राप्त होता रहे, यही जिनेन्द्र भंगवान् से प्रार्थना है। .
"मेरी जीवन पद्धति बदल गई"
- डॉ० डी०सी० जैन सफदरजंग हॉस्पिटल, नयी दिल्ली
पूजनीया आर्यिकारत्न ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ का प्रकाशन कार्य प्रारम्भ किया गया है, यह जानकर अत्यन्त प्रसन्नता हुई।
माताजी का परिचय मुझे अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में एक सद्गृहस्थ ने दिया। उनके गुणों से प्रभावित होकर मैंने अपने जीने की पद्धति को एकदम बदल दिया। मुझे जैन धर्म की सार्थकता की अनुभूति तभी हुई।
पूजनीया माताजी ने जिनवाणी की जो सेवा की है, वह अद्वितीय है। उनके चरणों में मेरा शत-शत नमन है। अभिवन्दन ग्रन्थ के प्रकाशन में सफलता प्राप्त हो, यही मेरी शुभकामना है।
माताजी द्वारा नये युग का प्रारम्भ
-डॉ० लालबहादुर शास्त्री
गाँधीनगर, दिल्ली
आर्यिकारत्न गणिनी श्री १०५ पू० ज्ञानमती माताजी अपनी आयु के ५८ वर्ष पूर्ण कर रही हैं, इन अट्ठावन वर्षों में जहाँ आपने आध्यात्मिक भावनाओं से प्रेरित होकर अपना आत्म-कल्याण किया है, वहाँ जनसाधारण का भी महान् कल्याण किया है। आपका जीवनवृत्त एक महान् अवतार
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