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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
माताजी के चरणों में विनम्र विनयांजलि
-ब्र० उषा जैन एम.ए., कसरावद, पश्चिम निमाड़ [म.प्र. ]
परम पूज्य आर्यिका ज्ञानमती माताजी के दर्शन करने का सौभाग्य मुझे प्रथम बार जून १९८४ में मिला। जब आपके सान्निध्य में जैन अध्यापक एवं अध्यापिकाओं का एक आठ दिवसीय शिविर हस्तिनापुर में आयोजित किया गया था, दशधर्म एवं तत्त्वार्थसूत्र का अध्ययन कराया गया था। शिविर के कुलपति सागर के डॉ० पन्नालालजी साहित्याचार्य थे। उस समय मैं भी एक अध्यापिका के रूप में सम्मिलित हुई थी।
शिविर पूर्ण सफलता के साथ सम्पन्न हुआ। शिविर में पूज्य माताजी पधारती और अपने प्रवचनों से हमें लाभान्वित करती रहतीं। आपकी वाणी में सहज आकर्षण रहता था, इसलिये हम शिविरार्थी उसे ध्यानपूर्वक सुनते थे। शिविर के अन्तिम दिन समस्त साथीगणों को अपने-अपने विषय पर बोलने को कहा गया था, तब मुझे भी उत्तम क्षमाधर्म पर बोलने का अवसर मिला तो उस समय मुझमें वह साहस नहीं था कि बहुत से पंडितों के समक्ष कुछ कह सकूँ। लेकिन आपकी मृदु वाणी ने मेरा हौंसला व हिम्मत बढ़ाई और मैंने घबराते हुए दो शब्द बोलने का साहस किया। आपने मेरी प्रशंसा में जो कुछ भी कहा उससे मैं इतनी प्रभावित रही कि कब पुनः दर्शन करने व मृदु वाणी सुनने का सौभाग्य प्राप्त होगा, यही इच्छा आज तक बनी हुई है। यद्यपि मैं पंचकल्याणक में हस्तिनापुर आई, लेकिन वृहत् जन समूह में ठीक से दर्शन भी न हो सके।
आपकी प्रवचन शैली व लेखनी दोनों ही अत्यन्त सुन्दर एवं हृदयग्राही हैं। आपने अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ लिखे- इन्द्रध्वज विधान, कल्पद्रुम महामंडल विधान व सर्वतोभद्र विधान जैसे विशाल विधानों पर ग्रन्थ लिखे तथा हस्तिनापुर में विश्व प्रसिद्ध “जम्बूद्वीप" जैसी विशालकृति को अपने मार्गदर्शन में पूर्ण करवा कर देश-विदेश के कोने-कोने में जैन धर्म एवं संस्कृति की ख्याति फैलायी।
इस प्रकार आज देश को व जैन समाज को पूज्य गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी की आवश्यकता है, जिनका जीवन स्वयं के लिए नहीं, अपितु संसार के तमाम प्राणियों को सन्मार्ग दिखाने के लिए है। अस्तु, मैं त्रिबार सादर वन्दना करती हुई आपके दीर्घायु की मंगल-कामना करती हूँ। ताकि इस संसार चक्र में फंसे हुये प्राणियों को आपका मार्ग-दर्शन एवं आशीर्वाद मिलता रहे।
VINAYANJALI TO MATA JI –
-Km. Astha Jain
Time to time many great souls have taken birth in India. There were 24 'Teerthankaras' in Arya-khanda of Bharat Kshetra of Jamboo-Dweep. The first Teerthanker' was shri Adinath & last Lord Mahaveer.
The first Digamber Muni was Charitra Chakraverti Acharya Shri Shantisagarji Maharaj of 20th century. Shri Veersagarji Maharaj was the first disciple of Shri Santisagerji Maharaj.
In the present time 105 Ganini Aryika Ratna Shri Gyanmati Mataji had taken 'Diksha' from Veersagerji Maharaj. Mataji was born in 1934 in a small village "Tikaitanager' district Barabanki. She is the first daughter of mother 'Mohini' & father Shri 'Chhotelal'. When Mataji left her house, she was only 18 years old. She studied up to fourth class only but today she is the most learned Aryika in the history of 2 thousand years.
Today Mataji is the first lady who has written many scriptures & translated in Hindi. Mataji has a deep knowledge about 'Jain Mythologies'. When Mataji translated Ashtasahasri', then the whole Jain Society has astonished.
Once Mataji was meditating in front of the image of Lord Bahubali in Shravanbelgol (Karnataka) then Mataji saw the model of Jamboo-Dweep. This model has been realized in Hastinapur. Hundreds spectators come here to see it. I also came here to see Jamboo-Dweep, & its solemn atmosphere impressed me so much that I decided to live near Mataji. Today I am studing under the shadow of Mataji.
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