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________________ गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ गुणों की करण्ड Jain Educationa International - बा० प्र० मनोरमा शास्त्री, बी०ए०, अवागढ़ परम पूजनीया १०५ पंचमकाल की प्रथम बाल ब्र० माता ज्ञानमतीजी से कौन परिचित नहीं होगा, अर्थात् विश्व के बच्चे-बच्चे के मुख पर उनका नाम, चक्षुओं पर आभा एवं अधरों पर उनके गुण विराज रहे हैं। नारी जीवन को, जो व्यक्ति निःकृष्ट पर्याय समझते हैं, उन्होंने इस बात को नकार दिया, नारी नर की खान होने के साथ-साथ पुरुषों से भी बढ़कर है। त्याग-संयम के क्षेत्र में आने पर वह पुरुष से भी आगे बढ़ जाती है। असंयमी पुरुष, चाहे वह कितनी ही बड़ी गद्दी या मिल का मालिक हो, उसे नारी के आगे झुकना ही पड़ता है। कौन जानता था कि मैना नाम की कन्या अपने नाम अर्थात् मैं-ना, मैं नाम के शब्द को अलग करके रखेगी, पक्षी की तरह बिना पंख होते हुए भी गृहवास का त्याग कर देगी । आज कही मैना हम सबके सम्मुख ज्ञानमती ( सम्यक्ज्ञान बुद्धि होकर विराजमान हैं। उनकी लेखनी पर एवं उनके निर्देशन में बनाये गये विश्व-विख्यात जम्बूद्वीप पर सभी गौरवान्वित हैं। जम्बूद्वीप की अनुपम छटा को देखकर मन गद्गद हो जाता है, देश-विदेश के कोने-कोने से वहाँ आकर जीव ज्ञान गंगा में स्नान करके अपने पाप कल्मषों को धोते हैं। ऐसी पूज्या गुणकरण्ड ज्ञानमती माताजी हम सबके सम्मुख चिरकाल तक नीरोग काया को लेकर विराजमान रहें, यही वीरप्रभु से प्रार्थना है। अमर रहेगी इस धरती पर तेरी गौरव गाथा [५५ - ग्र० सुंदरबाई मांगीतुंगीजी १०५ विदुषी आर्यिकारत्न श्री श्रेयांसमती माताजी की शिष्या धन्य धन्य है जग की माता, अमर रहेगी इस धरती पर तेरी गौरव गाथा ॥ पाने को आशीष झुके हैं अगणित भाल ललाम । "माता ज्ञानमती" को मेरा सौ-सौ बार प्रणाम ॥ जम्बूद्वीप की पावन प्रेरिका गणिनी आर्यिकारत्र प०पू० श्री ज्ञानमती माताजी के सम्मान में प्रकाशित अभिवन्दन ग्रन्थ की सफलता के लिए अपनी हार्दिक मंगलकामनाएँ भेज रही हैं। पूज्या माताजी ने अपने ज्ञान और आचरण द्वारा समस्त नारी जाति का मस्तक ऊँचा किया है और अनेक प्राणियों को संयम मार्ग में अग्रसर किया है। अपने ज्ञान और विवेक द्वारा आपने अनेक प्रांतों की धर्म-पिपासु जनता को धर्मामृत का पान कराकर उसे सच्चे देवशास्त्र गुरु की दृढ़ श्रद्धा पर आरूढ़ किया है। पूज्या माताजी ने अपने संघ के माध्यम से जैन धर्म का जिस रूप में प्रचार-प्रसार किया है, वह अविस्मरणीय है और आपने जम्बूद्वीप की रचना करके इस भारत भूमि के जीवों को महान् वैभव दिलाया है आपके दर्शन, सदुपदेश और आशीर्वाद हमें दीर्घकाल तक प्राप्त होते रहें । देवाधिदेव १००८ श्री विश्व हितंकर सातिशय चिंतामणि पार्श्वप्रभु से आपके उत्तम स्वास्थ्य और दीर्घ जीवन की मंगलकामना करती हैं और प्रार्थना करती हूँ। ऐसी अद्वितीय धर्म प्रभावक पूज्या माताजी के चरणकमलों में शत-शत वन्दन । For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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