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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
भारती सम तिमिर हरती
-ब्र० धरणेन्द्र कुमार जैन विधानाचार्य
जम्बूद्वीप - हस्तिनापुर
ज्ञान की ज्योति जलाकर, धर्म का करती प्रकाश ।
भारती सम तिमिर हरती, अज्ञान का होता विनाश । ज्ञान की नित साधना, आराधना नित ज्ञान की।
ज्ञान की जिन की मती है! उनकी उतारूँ आरती । शुभाशुभ महाकर्म, कलिता मनुजाः सदा ।
गुरुपदिष्टाचारेण, जायन्ते गुवों गुणैः । संसार में मनुष्य सदा शुभ-अशुभ कर्मों के करने में ही तल्लीन रहते हैं। परन्तु वे ही मनुष्य गुरु के उपदेश के अनुसार आचरण का पालन करने से गुणों से भी गुरु हो जाते हैं। परम पूज्य गणिनी आर्यिका रत्न श्री ज्ञानमती गताजी भी परमपूज्य आचार्य श्री वीरसागरजी महाराज से जो नाम प्राप्त किया है ऐसे ही यथा नाम तथा गुणवाली हैं। उन्होंने अपने अलौकिक गुणों से माँ सरस्वती के भंडार को तो भरा ही है, वे जंगल में मंगल करने वाली हैं। वे विलक्षण प्रतिभाशाली हैं। उनके प्रथम दर्शन में ही भक्त बरबस ही उनकी ओर आकर्षित हो जाते हैं। जैसे-लोहा चुम्बक की ओर आकर्षित हो जाता है। मैं भी सन् १९९० सितम्बर में हस्तिनापुर यात्रार्थ आया था। उस समय माताजी का दर्शन करते ही जैसे प्यासा प्राणी पानी को देखते ही उस तरफ भागता है। ऐसे ही मेरा मन भी माताजी की छत्र छाया में रहकर विद्या पिपासा को पूर्ण करने की इच्छा हुई
और मन में सन्तोष हुआ था कि उ० प्रदेश में भी चारित्र चक्रवर्ती आ० श्री० शान्तिसागरजी महाराज दक्षिण परम्परा के साधु भी उपस्थित हैं। ऐसा सोचकर पुनः प० पू० गुरुदेव चारुकीर्ति भट्टारक स्वामीजी के पास जाकर उनकी अनुमति प्राप्तकर के माताजी के सानिध्य में आया। माताजी के सानिध्य में अनेक ग्रन्थों का अध्ययन किया और विधि विधान, प्रतिष्ठा आदि विद्यायें प्राप्त करके विधानाचार्य बना एवं प्रतिष्ठाचार्य का कोर्स चल रहा है। माताजी के सानिध्य में ही इन्द्रध्वज, कल्पद्रुम, सर्वतोभद्र ,जम्बूद्वीप,तीन लोक आदि बड़े-बड़े विधानों में भी आचार्यत्व को प्राप्त करके निर्विघ्नता से सम्पन्न कराया और चन्द्रप्रभ तीर्थंकर की २ प्रतिमा एक पार्श्वनाथकी प्रतिमा इन तीनों प्रतिमाजी की लघु पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में प्रतिष्ठा विधि सीखी। प्रतिष्ठा के समय ८-३-१९९२ को आजीवन ब्रह्मचर्यव्रत ग्रहण किया।
ऐसे अनेक लाभ माताजी के सानिध्य में प्राप्त किये वास्तव में जो कार्य माताजी ने धार्मिक, सामाजिक एवं साहित्य के क्षेत्र में किये हैं वे बड़े-बड़े पुरुषों के लिए भी दुःसाध्य हैं। ये अपने युग की श्रेष्ठतम महिला हैं। इन्होंने अनेक पुरुषों एवं महिलाओं को संसार मार्ग से निकालकर मोक्षमार्ग में लगा दिया है। इतना ही नहीं अपनेसे पूज्य मुनिपद में भी प्रतिष्ठित कराया है।
गुरुं विना न कोष्यस्ति भव्यानां भवतारकः ।
मोक्ष मार्ग प्रणेता च सेव्योतः श्री गुरु सताम् । आचार्य उमास्वामी कहते हैं कि गुरु के बिना इस संसार में भव्य जीवों को जन्म-मरण रूप संसार से पार कर देने वाला अन्य कोई नहीं है। ऐसा भाव रखते हुए मैं हमेशा उनका चिर ऋणी हूँ।
पूज्य माताजी के जम्बूद्वीप, कमल मन्दिर आदि भी ऐसे कार्य हैं। जिनके लिए सम्पूर्ण दिगम्बर जैन समाज उनका चिर ऋणी है। ये कार्य कभी भुलाये नहीं जा सकते।
___ आज भी पू० माताजी श्रावकों को सामाजिक, पारिवारिक संकटों से निकालकर भगवान जिनेन्द्र के दिव्य संदेश द्वारा पाप-मार्गों से बचाकर धर्म में प्रतिष्ठित कर रही हैं। अंत में यही कामना है कि
वरद हस्त सिर पर रहे
बोध दिशा के साथ । ज्ञानामृत झरता रहे
पूर्ण चन्द्र के हाथ ।
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