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________________ गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रंथ ७०३ बढ़े। १८ मील का विहार वृद्धावस्था में पूरा करते हुए नांद्रे से महाराज श्रीक्षेत्र पर संध्या में पहुँचे । पवित्र आनन्दोल्लास का वातावरण पैदा हुआ। संस्था के मंत्री श्री सेठ बालचन्द देवचन्द जी और मुनि श्री समंतभद्र जी से संबोधन करते हुए भरी सभा में आचार्यश्री का निम्न प्रकारं समयोचित और समुचित वक्तव्य हुआ। जो आचार्यश्री की पारगामी दृष्टि-सम्पन्नता का पूरा सूचक था। "तुमची इच्छा येथे हजरो विद्यार्थ्यांनी राहावे शिकावे अशी पवित्र आहे हे मी ओळखतो, हा कल्पवृक्ष उभा करुन जाते। भगवंताचे दिव्य अधिष्ठान सर्व घडवून आणील। मिळेल तितका मोठा पाषाण मिळवा व लवकर हे पूर्ण करा । मुनिश्री समन्तभद्राकडे वळून म्हणाले, "तुझी प्रकृति ओळखतो, हे तीर्थक्षेत्र आहे । मुनींनी विहार करावयास पाहिजे असा सर्वसामान्य नियम असला तरी विहार करूनहो जे करावयाचे ते येथेच एके ठिकाणी राहून करणे । क्षेत्र आहे । एके ठिकाणी राहाण्यास काहीच हरकत नाही, विकल्प करू नको, काम लवकर पूर्ण करून घे। काम पूर्ण होईल! निश्चित होईल!! हा तुम्हा सर्वाना आशीर्वाद आहे।" आपकी आंतरिक पवित्र इच्छा है कि यहां पर हजारों विद्यार्थी धर्माध्ययन करते रहें इसका मुझे परिचय है। यह कल्पवृक्ष खड़ा करके जा रहा हूँ। भगवान का दिव्य अधिष्ठान सब काम पूरा कराने में समर्थ है यथासंभव बड़े पाषाण को प्राप्त कर इस कार्य को पूरा कर लीजिये।" मुनि श्री समन्तभद्र जी की ओर दृष्टि कर संकेत किया-"आपकी प्रकृति (स्वभाव) को बराबर जानता हूँ। यह तीर्थभूमि है। मुनियों को विहार करते रहना चाहिये इस प्रकार सर्वसामान्य नियम है। फिर भी विहार करते हुये जिस प्रयोजन की पूर्ति करना है उसे एक स्थान में यहीं पर रहकर कर लो। यह तीर्थक्षेत्र है एक जगह पर रहने के लिए कोई बाधा नहीं है। विकल्प की कोई आवश्यकता नहीं है। जिस प्रकार से कार्य शीघ्र पूरा हो सके पूरा प्रयत्न करना । कार्य अवश्य ही पूरा होगा। सुनिश्चित पूरा होगा। आप सबको हमारा शुभाशीर्वाद है।" ___पूर्णिमा का शुभ मंगल दिन था। शुभ संकेत के रूप से पच्चीस हजार रुपयों की स्वीकृति भी तत्काल हुई। काम लाखों का था। यथाकाल सब काम पूर्ण हुआ। “पयसा कमलं कमलेन पयः पयसा कमलेन विभाति सरः।" पानी से कमल, कमल से पानी और दोनों से सरोवर की शोभा बढ़ती है। ठीक इस कहावत के अनुसार भगवान् की मूर्ति से संस्था का अध्यात्म वैभव बढ़ा ही है। अतिशय क्षेत्र की अतिशयता में अच्छी वृद्धि ही हुई। अब तो मूर्ति के प्रांगण में और सिद्धक्षेत्रों की प्रतिकृतियां बनने से यथार्थ में अतिशयता या विशेषता आयी है। महाराज का आशीर्वाद ऐसे फलित हुआ। इस उदाहरण से स्पष्ट है कि मैंने भी जो जंबूद्वीप निर्माण और जंबूद्वीप ज्ञानज्योति प्रवर्तन की प्रेरणा दी है और अब विहार करने की शक्ति न होने से यहां क्षेत्र पर रह रही हूँ । इन सब कार्यों में मुझे चा.च. आचार्यश्री का आदेश और आशीर्वाद परोक्षरूप में है ऐसा मैं समझती हूँ। डा. शेखर आपने यहां संस्थान में क्षुल्लक मोतीसागर जी को “पीठाधीश" बनाया, इसमें आपका क्या उद्देश्य है? माताजी बड़ी-बड़ी धार्मिक संस्थाओं में मार्गदर्शन के लिये कोई साधु, साध्वी या पिच्छीधारी उत्कृष्ट श्रावक यानी क्षुल्लक रहते हैं तो धर्मपरंपरा, व व्यवस्था अच्छी बनी रहती है। इसी ऊहापोह में मैंने “महोत्सवदर्शन" पुस्तक में जो कि श्रीनीरज जैन द्वारा लिखित है उसमें पढ़ा था "परंपरागत गुरुपीठ के पीठाधीश भट्टारक या महंत स्वामी इन मठों के अधिपति होते हैं। ...जनश्रुतियों के अनुसार महामात्य चामुंडराय ने गोम्मटस्वामी की मूर्ति की प्रतिष्ठा के उपरांत, अपने गुरु सिद्धांत चक्रवर्ती नेमिचंद्राचार्य को श्रवणबेलगोल के मठ के मठाधीश पर विराजमान किया था। यह भी कहा जाता है कि वहां इसके बहुत पहले से गुरुपरंपरा चली आ रही थी। अनेक अभिलेख भी इस तथ्य को प्रमाणित करते हैं। ___चा.च. आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज ने भी कुंभोज के ब्रह्मचारी जी को क्षुल्लक पद में संस्था संचालन का अधिकार देकर उन्हें क्षुल्लक दीक्षा दी थी। देखिये शास्त्रशुद्ध व्यापक दृष्टिकोण ईस्वी सन् १९३३ का चातुर्मास आचार्य संघ का ब्यावर (राजस्थान) में था महाराज जी का अपना दृष्टिकोण हर समस्या को सुलझाने के लिए मूल में व्यापक ही रहता था। योगायोग की घटना है इसी चौमासे में कारंजा गुरुकुल आदि संस्थाओं के संस्थापक और अधिकारी पू० ब्र० देवचन्द जी दर्शनार्थ ब्यावर पहुंचे। पू० आचार्यश्री ने क्षुल्लक दीक्षा के लिए १. आचार्य शांतिसागर शताब्दी स्मृति ग्रंथ पृ. १- महोत्सव दर्शन, पृ.८५ Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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