________________
वोर ज्ञानोदय फममा
[६४९
सन् उन्निस सौ छीयत्तर में आर्यिकारत्न माताजो ने।
निज संघ सहित आकर उनने चौमास किया इस नगरी में ॥ ६९ ॥ इन्द्रध्वज मंडल की रचना भूमी इतिहास प्रसिद्ध हुई। अतिशयकारी इस पूजन से यह पृथ्वी परम पवित्र हुई। पहले के सब संस्मरण आज ज्योतीयात्रा के अंग बने। अतएव खूब स्वागत करके सहयोग किया तन मन धन से ॥ ७० ॥
चल पड़ी ज्योति आगे इक ग्राम सरायरसूलपुरा आया। लघु जैन समाज तथापि सभी ने स्वागत म प बनवाया। मंदिर विशाल जो शिखरयुक्त पौराणिकता : लाता है।
बिन बोले ही सांस्कृतिक धरोहर का इतिहा । सुनाता है । ७१ ॥ स्वागत का यह क्रम नगर महलका के प्रांगण में पहुँच गया। चौदह अप्रैल पचासी को वहाँ ज्ञानज्योति रथ पहुँच गया ॥ बतलाते हैं इस मंदिर में जो चन्द्रप्रभ की प्रतिमा है। हस्तिनापुरी जाते-जाते यहाँ अचल हुई यह महिमा है॥ ७२ ॥
इसलिए यहीं पर उस प्रतिमा का मंदिर बना दिया सबने। कुछ अतिशय देख इसे चतुर्थकालिक माना है भक्तों ने॥ दौराला में भी आज ज्योति आगमन हुआ मंगलकारी।
श्री नेमिनाथ के मंदिर का दर्शन कर पुण्य मिला भारी॥ ७३ ॥ करनावल के नरनारी केशरिया झण्डे ले निकल पड़े। जिनने न कभी देखा पहले वे स्वागत करने उमड़ पड़े। पांचली जिला मेरठ के इस कस्बे में रथ आगमन हुआ। कुछ जैन समस्त अजैनों को शिक्षा हेतू रथ भ्रमण हुआ ॥ ७४ ॥
छोटे से ग्राम डहार में भी महावीर दिगम्बर मंदिर है। वहाँ पर भी धर्म मार्ग बतलाने पहुँचा ज्ञानज्योति रथ है। अब्दुल वहीद एम.एल.ए. ने आकर के ज्योति जलाई है।
वे बोले मानवता का पाठ पढ़ाने ज्योती आई है॥ ७५ ॥ जिनमंदिर तथा जैन के इक दो भी घर जहाँ उपस्थित थे। वे नगर ज्ञानज्योती के मंगल रथ से हुए सुशोभित थे। इस क्रम में ग्राम मुल्हेड़ा ने भी प्राप्त किया सौभाग्य यही। जब ज्ञानज्योति यात्रा निकली जनता की भीड़ अपार रही॥ ७६ ॥
सत्तरह अप्रैल पचासी को बरनावा अतिशय क्षेत्र ज्योति । चन्द्र प्रभु की अतिशयकारी प्रतिमा से भूमि पवित्र पूति ॥ इतिहास बताता यहीं कौरवों ने लाक्षागृह बनवाया।
पांडव के संग अन्याय किया उसका फल घोर नरक पाया ॥ ७७ ॥ कुछ पुरातत्त्व अवशेष नहीं पर अन्वेषक बतलाते हैं। इक खण्डहर किले व बन्द गुफा से यही बात समझाते हैं। सम्प्रति यह अतिशय क्षेत्र नाम से पूज्य हुआ इक तीरथ है। सन्तों की पदरज से इसकी बढ़ रही आज बहु कीरत है॥ ७८ ॥
Jain Educationa international
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org