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________________ ६४६] Jain Educationa International गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ हरिद्वार से भी आकर्षक कार्यक्रम की यहाँ व्यवस्था थी। पुष्पाञ्जलि के संग अर्थाञ्जलि दे रही यहाँ की जनता थी ॥ आखिर मैंने इक सज्जन से कल का वह कारण पूछ लिया । उनने हँसकर इस ज्ञानज्योति का स्वागत परिचय खूब दिया ॥ ४१ ॥ बोले कि बहनजी मात्र आपकी एक परीक्षा लेनी थी। कुछ क्रोध आपमें दिखे अगर तो वैसी शिक्षा देनी थी॥ लेकिन हम सभी प्रभावित होकर हरिद्वार से लौटे थे। हम सब तो कब से किये प्रतीक्षा ज्ञानज्योति की बैठे थे ॥ ४२ ॥ अब तक भी समझ न पाई मैं उनकी इस सरल परीक्षा को । अपने ही बंधुओं की मुझको लगती थी सहज समीक्षा वो ॥ कुछ भी हो खैर वहाँ का कार्यक्रम अच्छा सम्पन्न हुआ। मैंने तो केवल कौतुकवश उस घटनाक्रम का कथन किया ॥ ४३ ॥ फिर देहरादून प्रवर्तन के पश्चात् मसूरी रथ पहुँचा । प्राकृतिक छटाओं वाले इस पर्वतीय क्षेत्र पर शोर मचा ॥ हिम से आच्छादित पर्वतराज हिमालय यहाँ से दिखता था। इसलिए वहाँ जाने हेतु हम सबका हृदय ललचता था ॥ ४४ ॥ इक शहर विकास नगर से होकर प्रान्त हिमाचल पहुँच गए। नाहन में पी. सी. डोवरा श्री जिलाधीश महोदय पहुँच गए ॥ प्रोफेसर श्री कैलाशचन्दजी भारद्वाज पधारे थे। सुन्दर सुनियोजित स्वागत में नरनारी सभी पधारे थे॥ ४५ ॥ धार्मिक आयोजन से प्रदेश यह सूना अधिक रहा करता । इस ज्ञानज्योति के स्वागत में सबने सम्मान किया अच्छा ॥ श्री जिलाधीशजी बोले यह रथ हमें जगाने आया है। इसके पवित्र दर्शन का मैंने भी शुभ अवसर पाया है ॥ ४६ ॥ संचालक तथा माधुरीजी के प्रवचन वहाँ सुने सबने । मानवतावादी संदेशों को धारा जीवन में अपने ॥ जब सदाचार नैतिकता से उद्धार देश का बतलाया । पिछड़े वर्गों ने इक स्वर से तब धर्म अहिंसा अपनाया ॥ ४७ ॥ अम्बाला जिले के साढौरा में भी अच्छा सम्मान हुआ । फिर जगाधरी का क्रम आया जहाँ उत्सव खूब महान हुआ | एस.डी.एम. साहब ने आकर आभार सभी का माना था। क्योंकी इस सफल प्रवर्तन के उद्देश्य उन्होंने जाना था ॥ ४८ ॥ धार्मिक भावना से ओतप्रोत था यमुनानगर प्रतीक्षा में । स्वागत के क्रम में अपना भी नामांकन हो इस इच्छा से || सम्मान किया स्वीकार वहाँ का पुनः चल दिया रथ आगे । पश्चिम यू.पी. के जिला सहारनपुर के नर नारी जागे ॥ ४९ ॥ बेहट, चिलकाना, नकुड़ और सरसावा में नव ज्योति जली । जिनधर्म के पावन सिद्धान्तों का शोर मचाती गली गली ॥ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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