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________________ Jain Educationa International वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला संभल, बिलासपुर, हल्द्वानी, काशीपुर आदि नगर आए। निज शक्ती के अनुसार सभी ज्योती स्वागत कर हर्षाए ॥ ३१ ॥ खुर्जा, शिकारपुर, बड़ा गांव, गाजियाबाद, हापुड़ आया। कांधला, शामली और बाबली में उत्सव का क्षण आया ॥ हरियाणा में पानीपत सोनीपत गन्नौर ज्योति पहुँची । रोहतक स्वागत में जनता के आमंत्रण पर मैं भी पहुंची ॥ ३२ ॥ हांसी-हिसार, कुरुक्षेत्र और करनाल प्रवर्तन क्रम आया। अम्बाला शहर छावनी से उत्तर प्रदेश में फिर आया ॥ नौ मार्च पचासी हरिद्वार में मैं ज्योती के संग पहुँची। इक घटनाक्रम बतलाती हूँ जो वहाँ पे मेरे संग घटी ॥ ३३ ॥ हरिद्वार में ऋषीकेश के कुछ सज्जन रात्री में आए थे। प्रोग्राम स्थगित करने को कुछ प्लान बनाकर लाए थे ॥ बोले कि बहन जी कारणवश ऋषिकेश भ्रमण नहिं हो सकता। इसलिए निवेदन करने हम आए हैं क्या रथ रुक सकता ? ॥ ३४ ॥ मैं बोली यह कार्यक्रम सब केन्द्रीय समिति बनवाती है। इसलिए ज्ञानज्योती अपनी सब जगह प्रभा फैलाती है ॥ तुम स्वागत चाहे मत करना ऋषिकेश ज्योति रथ जाएगा। महावीर प्रभू का सर्वोदय उपदेश वहाँ बतलाएगा ॥ ३५ ॥ वे चले गए फिर कुछ ही क्षण में फिर विचार करके आए। अपनी मजबूरी के अनेक कारण भी उनने बतलाए || बोले यदि स्वागत नहीं हुआ अपमान हमें सहना होगा। हम सबके वहाँ न रहने से सम्मान भला कैसे होगा ? ॥ ३६ ॥ इससे तो श्रेष्ठ यही कि आप ज्योतीरथ वहाँ न ले जाएं। मैं बोली चिन्ता छोड़ आप अपने-अपने घर को जाएं। "यह नहीं प्रवर्तन रुका कभी नहि आगे भी रुक सकता है। इन कतिपय विघ्नों के समक्ष नहिं धर्म कभी झुक सकता है ॥ ३७ ॥ कुछ व्यंग्य हंसी में हँसे और गंभीरमना कुछ चले गए। लगता था कुछ एकान्त पक्ष के बहकाने से आए थे | हमने संचालकजी से फिर गंभीर विचार विमर्श किया। माँ ज्ञानमती की जय बोली प्रातः ज्योतीरथ चला दिया ॥ ३८ ॥ आश्चर्य किन्तु हो रहा सभी को तीन किलोमीटर पहले। केशरिया झण्डे ले लेकर ऋषिकेश के नर-नारी पहुँचे। इतना विशाल समुदाय देख हम स्वयं न स्थिति समझ सके । रात्री के वे सब सज्जन भी हँस हँस कर ज्योति समक्ष झुके ॥ ३९ ॥ नगरी के भीतर जाते ही कितना सुन्दर माहौल दिखा। सरकारी पार्टी के अनेक नेताओं का यहाँ जोर दिखा ॥ सबने आ-आकर ज्ञानज्योति का स्वागत करके नमन किया। इन्द्राजी द्वारा जली ज्योति दर्शन कर जीवन सफल किया ॥ ४० ॥ For Personal and Private Use Only [६४५ www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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