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________________ गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ लखनऊ शहर के बाद ज्योतिरथ अपने पथ की ओर चला। • माँ रत्नमती की जन्मभूमि महमूदाबाद प्रवास मिला। हस्तिनापुरी से कोई भी नहिं पहुँच सका उस नगरी में। क्योंकी माँ रत्नमतीजी की चल रही समाधी उस क्षण में ॥ २२ ॥ पंद्रह जनवरी को जब ज्योती का सीतापुर में स्वागत था। हस्तिनापुरी में रत्नमती माताजी का अंतिम क्षण था। प्रातः से ज्ञानमती माता संबोधन में थीं लगी हुई। निज माता एवं शिष्या की अंतिम परिचर्या स्वयं करी ॥ २३ ॥ छवि शांत सौम्य मुद्रा माँ की अब तक स्मृति में आती है। ऐसी सुन्दर समाधि बिरले मानव को ही मिल पाती है। माता पुत्री के संगम का वह भी इक रोमांचक क्षण था। जिसने भी देखा उस क्षण को सचमुच उसका मन पावन था ॥ २४ ॥ जनता की आँखों में आँसू पर ज्ञानमती माता दृढ़ थीं। अपना कर्तव्य पूर्ण कर के उनके मन में संतुष्टी थी॥ जग की नश्वरता का चिन्तन प्रवचन भी उनका मिलता था। असली तो इस क्षण में ही उनका धैर्य अपरिमित दिखता था ॥ २५ ॥ श्री रत्नमती माताजी ने तेरह रत्नों को जन्म दिया। तेरह विध चारित पालन कर तेरह वर्षों को धन्य किया। उनकी यह वैरागी गाथा नारी आदर्श बताती है। गार्हस्थिक जीवन में भी संयम का संदेश सुनाती है ॥ २६ ॥ यह कार्य इधर सम्पन्न हुआ ज्योतीरथ उधर प्रगति पर है। इस समाचार के मिलते ही रुक गया वहीं ज्योतीरथ है। सोचा सबने यह जम्बूद्वीप महोत्सव अब टल जाएगा। पर ज्ञानमती माताजी बोली ऐसा नहिं बन पाएगा ॥ २७ ॥ माँ रत्नमती जम्बूद्वीप को हमसे पहले देखेंगी। मेरे संबोधन को वे मन में याद अवश्य ही रक्खेंगी। वे नेत्र खोलकर खुश होकर मेरा संबोधन सुनती थीं। जीवन भर की निर्दोष तपश्चर्या को मानो गुनती थीं ॥ २८ ॥ यह धर्मकार्य तो अपनी गति अनुसार किया ही जाएगा। ज्योतीरथ निज यात्रा पूरी कर हस्तिनापुर आएगा ॥ हाँ इतना कुछ मन में आया यदि शीघ्र महोत्सव हो जाता। तो रत्नमती माताजी का सानिध्य प्राप्त भी हो जाता ॥ २९ ॥ पर कर्मों की गति है विचित्र अनहोनी भी किसने जानी। माँ रत्नमती की शीघ्र समाधी की स्थिति नहिं पहचानी ।। वे तो अब असली जम्बूद्वीप का दर्शन कर संतृप्त हुई। उनके अतिशय से गजपुर की धरती भी मानो तृप्त हुई ॥ ३० ॥ कुछ दिनों बाद ही यहाँ महोत्सव तैय्यारी प्रारम्भ हुई। रथ ज्ञानज्योति से यू.पी. में भी परमशांति आरंभ हुई। Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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