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________________ वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला [६४३ षट्खंड का एक छत्र शासन भरतेश यहीं से करते थे। फिर दीक्षा ले वे महापुरुष केवलज्ञानी भी बनते थे॥ १२ ॥ वृषभेश्वर की उत्तुंग मूर्ति तीरथ की कीर्ति बढ़ाती है। भरतेश बाहुबलि प्रतिमाएं वैराग्य हृदय में लाती है। बीसों टोकों के दर्शन कर मन में प्रसन्नता आती है। सरयू के तट पर बैठ हृदय की सुप्त कली खिल जाती है॥ १३ ॥ इस तीर्थ अनादी पर आकर ज्योतीरथ मानो धन्य हुआ। अपनी ज्योती को और बढ़ाने हेतु यहाँ कटिबद्ध हुआ। अब चार दिसम्बर चौरासी को गोरखपुर जगमगा उठा। संसद सदस्य हरकेष बहादुर ने आकर उत्सव देखा ॥ १४ ॥ गाजीपुर, शहर बनारस में प्रभु पार्श्वनाथ का दर्श किया। श्री चन्द्रपुरी औ सिंहपुरी ने तीर्थङ्कर आदर्श दिया । मैंने इस नगर बनारस से हस्तिनापुरी प्रस्थान किया। आगे संचालकजी के निर्देशन में रथ प्रस्थान हुआ॥ १५ ॥ आगे के इलाहाबाद, पपौसा, कौशाम्बी का भाग्य जगा। जायस, बछरावा, रायबरेली, घाटमपुर में रथ पहुँचा ॥ जसवन्तनगर, सिरसागंज, शौरीपुर का स्वागत स्वीकारा । टूंडला, फिरोजाबाद, आगरा बहुत हुई जयजयकारा ॥ १६ ॥ मथुरा व हाथरस के नन्तर जनवरी पचासी सन् आया। उत्तर प्रदेश के शहर अलीगढ़ में नववर्षोत्सव पाया ॥ एटा, कुरावली, मैनपुरी, कन्नौज, कानपुर का स्वागत। चल रही ज्योति निर्विघ्न रूप से आया मानो मंगल रथ ॥ १७ ॥ बारह जनवरी राजधानी लखनऊ का कण-कण जाग उठा। पुनरपि उत्तर प्रदेश शासन का एक बार सौभाग्य जगा ॥ नारायणदत्त तिवारी एवं वासुदेव सिंह ने आकर। उत्साह बहुत दिखलाया जम्बूद्वीप ज्योति का स्वागत कर ॥ १८ ॥ ब्रह्मचारीणी मालती शास्त्री भी लखनऊ महोत्सव में पहुँची। श्री मुख्यमंत्रि का केन्द्र समिति की ओर से शुभ स्वागत करती ॥ इक रजत प्रशस्ती पत्र दिया मंत्रीजी के करकमलों में। सारी जनता आकर्षित थी ज्योती के शुभ उद्देश्यों से ॥ १९ ॥ हस्तिनापुरी की सड़कों का शासन ने फिर उद्धार किया। श्री जम्बूद्वीप प्रतिष्ठा हेतू प्रारंभिक अब कार्य हुआ। इस मध्य तिवारीजी आए हस्तिनापुरी में मीटिंग की। उत्सव में चार चाँद हेतू खुद पर भी जिम्मेदारी ली ॥ २० ॥ इस समारोह में एक शिष्टमंडल ने नई अपील किया। तीर्थों के अन्य विकास हेतु शासन ने उसमें भाग लिया । मंत्रीजी ने पच्चीस लाख रुपये घोषित अनुदान किया। ज्योती उत्सव कार्यक्रम में सचमुच यह कार्य महान हुआ॥ २१ ॥ Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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