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________________ गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ [४५ लाये और उसी समय रात में ही खून व पेशाब टेस्ट करने के लिए मेरठ से आदमी बुलाया गया. जिसने शीशी में थोड़ा-सा खून निकाला और पेशाब ले गया- रात में ही टेस्टिंग होकर निर्णय हो गया कि पीलिया है। इधर डॉक्टर साहब से हमने बताया कि हमारे मुनि-और आर्यिका न तो ग्लूकोज चढ़वा सकते हैं, न कोई दवाई आपकी ले सकते हैं, आप बताइए कि मालिश आदि से इनका कोई सुधार किया जा सकता है क्या? क्योंकि आहार तो प्रातः एक बार ही होगा। बोले मेरे पास तो कोई इलाज है नहीं-भगवान ही कर सकता है इलाज। फिर हमने कहा कि माताजी की आयु शेष होगी, तो माताजी स्वस्थ हो जायेंगी अन्यथा हम लोग उनकी ३५ वर्ष की तपस्या को न तो बिगाड़ेंगे, न ही माताजी कोई अशुद्ध उपचार करेंगी। माताजी इस मामले में पूर्ण सावधान हैं तथा माताजी की दृढ़ता इस संबंध में हम लोग विगत अनेक वर्षों में देख चुके हैं। माताजी को जीवन का लोभ नहीं है। हम तो केवल शुद्ध उपचार से ही उन्हें स्वस्थ कर सकेंगे तो करेंगे, अन्यथा नहीं। डॉक्टर अग्रवाल आश्चर्य में पड़ गये और बोले तुम लोग कैसे निर्दयी हो। हमने कहा हम लोगों का नियम ऐसा ही है। हमने पूछा कि ग्लूकोज का विकल्प क्या है? बोले गन्ने का रस दे सकते हो तथा पीलिया का एक नुस्खा हम लोगों को मालूम था जो कि ५ वर्ष पूर्व रत्नमती माताजी को पीलिया होने पर दिल्ली के एक वैद्य अतरसेन ने दिया था- जिससे रत्नमतीजी स्वस्थ हो गई थीं। उस नुस्खे की दवाइयां याद थीं, डाक्टर साहब को बताया, उन्होंने कहा कि यह बिल्कुल ठीक है- ये ही दवाइयाँ मिलाकर हमारे यहाँ एलोपैथिक दवाई बनती है जिसे हम लोग पीलिया में देते हैं। वह नुस्खा इस प्रकार है १० ग्राम ५ ग्राम कासने के बीज कासनी की जड़ बड़ी इलाइची मकोय लौंग जीरा या सौंफ खरबूजे की गिरी सफेद मिर्च ३ दाना ५ ग्राम ५ ग्राम ७दाना ३ ग्राम उपर्युक्त दवाई को पीसकर थोड़ा बूरा (शक्कर) मिलाकर रत्नमती माताजी को वर्षों तक दिया गया है। ज्ञानमती माताजी का तो मीठे का त्याग है। अतः बिना बूरा मिलाये ऐसे ही देने का निर्णय किया गया। इस नुस्खे का इन्तजाम किया गया। इसे हम लोग ठंढाई के नाम से कहते हैं। एक बात डॉक्टर साहब ने और कही कि दिन में कई-कई बार पानी, गन्ने का रस व यह दवाई पहुँचाई जाये। पुनः हमने डॉक्टर से बताया कि लेंगी तो एक ही बार, हमलोग- उनकी चर्या में कुछ भी अंतर नहीं करेंगे। उन्होंने कहा कि अच्छा एक ही बार में घण्टे-दो घण्टे बिठाकर दे देना। रुक-रुककर देना। इस बात पर मूलाचार के स्वाध्याय की एक बात ध्यान में आ गई कि आहार का उत्कृष्ट समय ६ घड़ी माना गया है, ६ घड़ी अर्थात् ६ x २४ = २ घण्टे २४ मिनट । अर्थात् एक बार की बैठक में २ घण्टे २४ मिनट तक तो साधु बैठ सकते हैं अतः हमने निर्णय किया कि कल प्रातः गन्ने का रस, उपर्युक्त ठण्डाई और पानी केवल ३ चीजें थोड़ी मात्रा में देना है और बहुत-रुक रुककर कम से कम एक घण्टे में देना है। प्रातः होती है-वैद्यों की सब दवाई बंद कर दी जाती हैं और उपर्युक्त निर्णयानुसार पानी, ठण्डाई और गन्ने का रस पूज्य माताजी को एक छोटी-सी कटोरी के द्वारा रुक-रुककर बड़ा शांति मंत्र पढ़कर आधीकटोरी पानी फिर शांतिमंत्र पढ़कर आधी कटोरी इस प्रकार तीनों चीजें क्रम-क्रम से केवल एक गिलास दिया गया और इस आहार में ३५ मिनट लगाये गये। आज माताजी को कुछ शांति मिलती है और उल्टी जो तुरंत हो जाती थी, वह संस्कारवश हुचकी तो आई लेकिन मात्र १० प्रतिशत निकल गया- कुल्ला करते समय। शेष दवाई पानी पेट में रुकी। अब हम लोगों के सांस में सांस आई कि माताजी को इस ठंडाई के नुस्खे से जीवन दान मिल सकता है और निदान सही हुआ है। यही नुस्खा चलता रहा माताजी इतनी कमजोर हो गई थीं कि उन्हें पाटा पर बिठाकर २-३ आदमी उठाकर कई दिन तक चौके तक ले जाते थे, यही नुस्खा बराबर दिया जाता रहा और धीरे-धीरे शरीर में स्वस्थता आती गई। उल्टी रुकती गई, फिर भी लगभग ६ माह में माताजी को चलने-फिरने योग्य शक्ति आ सकी थी। यह बात मैंने यहाँ इसलिए दी है कि परिस्थिति आने पर अनेक अनुभव आते हैं। एक तो किसी भी असाध्य रोग होने पर साधु का निदान किसी कुशल डॉक्टर से अवश्य करा लेना चाहिए क्योंकि वर्तमान में वैद्यों के निदान कभी-कभी सही नहीं निकल पाते हैं। दूसरी बात साधुओं के अत्यन्त कठिन समय में भी अशुद्ध उपचार का प्रयास गृहस्थ को नहीं करना चाहिए क्योंकि संयम बार-बार नहीं मिलता है। इस संयम की रक्षा साधु तो स्वयं ही करते ही हैं, लेकिन गृहस्थों का भी कर्तव्य है कि उन्हें योग्य समय पर, योग्य शुद्ध औषधि द्वारा ही रोगमुक्त करने का प्रयास करें भले ही समय ज्यादा लग जावे। तीसरी बात पूज्य माताजी के सानिध्य में जो स्वाध्याय चलते थे उसमें मूलाचार के स्वाध्याय का एक लाभ इस अवसर पर मिला कि आहार में आवश्यकतानुसार समय अधिक लगाया जा सकता है। क्योंकि एक गिलास पानी-रस-दवाई यदि दिया जाये तो एक मिनट का काम है लेकिन इससे उल्टी हो सकती थी। धीरे-धीरे देने से वह उल्टी रुक गई अतः यह स्वाध्याय मौके पर काम आया। यह शुद्ध उपचार कासनी के चीज की ठंडाई पूज्य माताजी के लिए पुनः जीवन दान बन गई और हम लोगों को इस उपचार से बहुत प्रसन्नता Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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