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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
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उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्रि नारायणदत्त तिवारीजी। हेलीकॉप्टर से आकर उद्घाटन की ज्योति जलाई थी॥ १७ ॥
मंत्री श्री वासुदेव सिंहजी अध्यक्ष आज के नायक थे। ब्रह्मचारी श्री रवीन्द्र भाई कार्यक्रम के संचालक थे॥ केन्द्रीय समिति के कई कार्यकर्ताओं का आगमन हुआ।
खुश होकर नगर वासियों ने इस उत्सव को सम्पन्न किया ॥ १८ ॥ मंत्रीजी की अभिलाषा थी उस जन्मभूमि के दर्श करूँ। जिस जगह मात ने जन्म लिया उस माटी का संस्पर्श करूँ॥ कैलाश, प्रकाश, सुभाष सभी मंत्रीजी को घर लाए थे। दर्शन कर जन्मभूमि के आज तिवारीजी हर्षाए थे॥ १९ ॥
कुछ आँखों देखा हाल यहाँ इस कार्यक्रम का प्रस्तुत है। मंत्रीजी एवं कुछ अन्यों के भाषण अंश उपस्थित हैं। स्वागत अभिनन्दन पत्र आदि का किञ्चित् परिचय देती हूँ।
निज मातृभूमि को वंदन कर आशीष मात का लेती हूँ॥ २० ॥ चमत्कार ही कहना होगाटिकैतनगर से ज्ञानज्योति का उद्घाटन करने हेतु उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री नारायणदत्त तिवारी की स्वीकृति पहले से प्राप्त हो ही चुकी थी, अतः गांव की जनता में अपूर्व आह्लाद था। इस गाँव के इतिहास में प्रथम बार किसी मुख्यमंत्री के आने की स्वीकृति तो यूँ भी सबके लिए ही आनन्ददायक
थी।
२४ नवंबर, १९८४ को ज्ञानज्योति के विस्तृत स्वागत की तैयारियाँ टिकैतनगर में चल रही थीं कि बीच में एक विघ्र आकर खड़ा हो गया। हुआ यह कि २२ नवंबर की रात्रि में १२ बजे मुख्यमंत्री कार्यालय से समाचार आ गया-"आवश्यक मीटिंग के कारण तिवारीजी को दिल्ली में प्रधानमंत्री श्री राजीव गाँधी ने बुला लिया है, अतः टिकैतनगर के कार्यक्रम में मंत्रीजी नहीं आ सकेंगे। इस स्थगन समाचार को सुनते ही एक बार तो सबके हाथ-पैर ढीले पड़ गए, क्योंकि अब मात्र २३ नवंबर (१ दिन) का समय शेष था, उसमें किसी अन्य राजनेता की स्वीकृति लेना भी संभव नहीं था।
रात्रि में यह समाचार पाते ही रात्रि १२.३० बजे ही ब्र. श्री रवीन्द्र कुमारजी अपने बड़े भाई कैलाशचंदजी के साथ तुरन्त लखनऊ चल दिए और सीधे लखनऊ के एनेक्सी भवन पहुंचे। वहाँ से दिल्ली टेलीफोन करके मुख्यमंत्रीजी के निजी सचिव से सारी स्थिति बताई कि मंत्रीजी की यह अस्वीकृति ग्रामवासियों के लिए अत्यन्त दुःखद वार्ता है . . . . आदि । वैसे अब स्वीकृति की कोई स्थिति नजर नहीं आ रही थी, किन्तु रवीन्द्रजी हिम्मत नहीं हारे और बराबर प्रयास करते रहे।
___इधर हस्तिनापुर से हम और ब्र, मोतीचंदजी दिल्ली के कुछ महानुभावों के संग २३ नवंबर को लखनऊ पहुँचे तो वहाँ ज्ञात हुआ कि "कल टिकैतनगर में प्रोग्राम है और रवीन्द्रजी अभी लखनऊ के एनेक्सी भवन में ही बैठे हैं।" हम लोग भी लखनऊ में ही रुक गए, सब तरफ से टेलीफोन की घंटिया बज रही थीं-कोई कहता कि प्रोग्राम कुछ दिन बढ़ा देना चाहिए, किसी का सुझाव मिला कि मंत्रीजी के बिना ही कार्यक्रम सम्पन्न कर लेना चाहिए . . . . इत्यादि । तभी शाम को लगभग ५ बजे होंगे कि रवीन्द्रजी का टेलीफोन श्री सुमेरचन्द पाटनी के यहाँ आया कि मुख्यमंत्रीजी की स्वीकृति मिल चुकी है। वे कल दिल्ली से सीधे हेलीकॉप्टर द्वारा टिकैतनगर पहुंचेंगे। सुनकर एक बार तो किसी को विश्वास नहीं हुआ, किन्तु आधा घंटे के अन्दर ही ब्रह्मचारी रवीन्द्रजी एनेक्सी भवन से लिखित स्वीकृति पत्र लेकर हम लोगों के पास आ गए।
सबके बुझे चेहरों पर अब दुगुनी प्रसन्नता झलकने लगी। हम सभी लोग भाईजी के साथ ही रात्रि में टिकैतनगर पहुंच गए। वहाँ रातोंरात पूरा नगर सजाया गया, क्योंकि इस नगर में प्रथम बार प्रदेश के मुख्यमंत्री का पदार्पण होने वाला था। उनकी इस पुनः स्वीकृति को नगरवासियों ने ज्ञानज्योति का चमत्कार ही माना। सड़क का भी उद्धार हुआटिकैतनगर में मंत्रीजी के पदार्पण हेतु वहाँ की पचीसों वर्ष पुरानी ऊँचे-नीचे गड्ढों वाली कच्ची सड़क का उद्धार हो गया। उस एक किलोमीटर
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