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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
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तथा ज्योतिरथ की वंदना करने हेतु गुजरात राज्यसभा सदस्य श्री शंकर सिंह वघेला, कलोल यूनिवर्सिटी के प्रिंसिपल श्री आर.एच. व्यास एवं नगरपालिका के चेयरमैन श्री भानु कुमार छोटेलाल बखारिया पधारे ।
ज्योतिरथ के संचालक पं. श्री सुधर्मचंद शास्त्री ने इन सभी अतिथियों एवं उपस्थित जनसमूह को बतलाया
"जम्बूद्वीप रचना के साथ प्रत्येक जनमानस की अपनत्व भावनाओं को जोड़ने हेतु पूज्य ज्ञानमती माताजी ने इस रथ का प्रवर्तन कराया है। माताजी की इस मानसिक विचारधारा से भारत की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी जी भी अत्यधिक प्रभावित हुई और आज भी केन्द्र सरकार की
ओर से उनका पूरा निर्देशन तथा सहयोग हमारे प्रवर्तन को प्राप्त हो रहा है।" गुजरात की राजधानी२८ अगस्त, १९८४ को लोक निर्माण विभाग गुजरात के मंत्री श्री खोड़ीदान ने गुजरात की राजधानी गांधीनगर में ज्योतिरथ का स्वागत किया तथा पूरे प्रान्त में अपने सक्रिय सहयोग का आश्वासन प्रदान किया। प्रान्तीय प्रवर्तन समिति के पदाधिकारियों ने भी कई स्थानों पर पहुँच कर संचालक की प्रत्येक गतिविधियों में सहयोग देकर अपने कर्तव्य का पालन किया।
इस प्रवर्तन के पश्चात् पर्युषण पर्व में ज्योतियात्रा स्थगित रही, पुनः तीर्थङ्कर श्री नेमिनाथ की निर्वाण भूमि जूनागढ़ गिरनार से यात्रा का शुभारंभ होता हैगुजरात प्रवर्तन का द्वितीय चरण तीर्थद्वय के सानिध्य में
सिद्ध क्षेत्र गिरनार जो में आ. श्री विमल सागर महाराज का जन्मजयंती के दिन आचार्यरत्न श्री विमलसागर महाराज की जन्मजयन्ती का उल्लासमयी वातावरण
ज्ञानज्योति की स्वागत सभा। मंच पर आसीन आचार्यश्री विमलसागर महाराज प्राचीन तीर्थक्षेत्र को नई नवेली की भाँति सजाने में व्यस्त था, मानो राजकुमार एवं आचार्य श्री निर्मलसागर महाराज ससंघ। नेमिनाथ की बारात ही आने वाली हो। यहाँ आज अचेतन और चेतन उभय तीर्थों के संगम में ज्ञानज्योति रथ का पदार्पण सचमुच ही त्रिवेणी संगम का दृश्य उपस्थित कर रहा था।
महाराष्ट्र में भी तो कई स्थानों पर ज्ञानज्योति प्रवर्तन में आचार्य श्री विमल सागर महाराज के संघ का सानिध्य प्राप्त हुआ था तथा पुण्ययोग से इस गुजरात यात्रा में सिद्धक्षेत्र गिरनारजी में भी उनके संघ सानिध्य ने प्रवर्तन का महत्त्व और अधिक बढ़ा दिया था।
यहाँ आचार्य श्री निर्मलसागर महाराज भी अपने संघ सहित “निर्मल ध्यान केन्द्र" में विराजमान थे। अतः उभय आचार्य संघों के मंगल सानिध्य में ज्ञानज्योति स्वागत सभा का आयोजन हुआ। दि. जैन त्रिलोक शोध संस्थान के अनेक प्रतिनिधियों सहित ब्र. रवीन्द्र कुमारजी गिरनारजी सिद्धक्षेत्र पर पधारे थे, क्योंकि ज्योतियात्रा के साथ ही सिद्धक्षेत्र की वंदना एवं आचार्य श्री की जन्मजयंती, साधुदर्शन आदि अनेकों लाभ यहाँ प्राप्त हुए थे। किस्सा कुर्ते काइस इतिहास को लिखते समय ब्र. रवीन्द्रजी ने मुझे बताया कि वहाँ पर मुझे बड़ी तकलीफ का सामना करना पड़ा। तकलीफ के नाम से हमारे पाठक भी चिंतित होंगे कि कौन-सी तकलीफ हुई, सो कोई शारीरिक या प्रवास की तकलीफ नहीं, बल्कि उन्होने बतलाया कि रात्री में टैक्सी से चलकर हम लोग गिरनारजी पहुँचे, वहाँ प्रातः स्नान करके जब कपड़े पहनने के लिए अटैची खोली तो अटैची में पानी आ जाने के कारण मेरे . सभी कुर्ते खराब हो गए थे, उन पर दाग-धब्बे पड़ गए थे, किन्तु अब मेरे पास कोई चारा नहीं था। अतः जैसे-तैसे उन्हीं कुर्तों से चार दिन तक काम चलाना पड़ा। गंदे कपड़े कभी न पहनने के कारण वह स्मृति उनके मस्तिष्क में कभी-कभी आ जाती है। ___ज्योति प्रवर्तन का कार्यक्रम तो अपनी योजनानुसार सफल हुआ ही, साथ में आचार्य श्री के चरणों में हस्तिनापुर पधारने हेतु श्रीफल भी अर्पित किए गए।
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