SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 694
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६२८] गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ श्वेताम्बर जैन मुनि श्री अभयसागरजी की भावाञ्जलि पालीताना सिद्धक्षेत्र जो दि. जैन ग्रंथों में "शत्रुञ्जय गिरि" के नाम से जाना जाता है, यहाँ से युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन ये तीन पांडव तथा आठ करोड़ द्रविड़ राजाओं ने मोक्ष पद प्राप्त किया है। जैसा कि निर्वाण काण्ड में पढ़ते हैं पांडव तीन द्रविड़ राजान, आठ कोटि मुनि मुक्ति पयान । श्री शत्रुञ्जय गिरि के शीश, मुक्ति गए वन्दो निशदीस ॥ जम्बूद्वीप ज्ञानज्योति १९ सितम्बर को यहाँ पधारने पर मुनि श्री अभयसागरजी ने बड़ी आतुरता एवं अपनत्वपूर्वक उसका स्वागत किया। इस सिद्धक्षेत्र पर श्वेताम्बरों का ही विशेष रूप में आधिपत्य चल रहा है। पालीताना में श्वेताम्बर मुनि श्रा अभयसागर जा क तत्त्वावधान म ज्यात स्वागत समा पता नहीं क्यों, दिगम्बर सम्प्रदाय के लोग इस क्षेत्र के पुनरुद्धार में आगे नहीं को संबोधित करते हुए श्री कपिल भाई कोटडिया (वर्तमान में भल्लक चितसागर जी)। आए हैं। शहर के बीच में मात्र एक दिगम्बर जैन मंदिर है, जो वि.सं. १९४८ में तैयार हुआ तथा उसकी प्रतिष्ठा सं. १९५१ में भट्टारक कनककीर्तिजी के द्वारा कराई गई थी। पर्वतराज के ऊपर अनेक श्वेताम्बर मंदिरों के मध्य एक भव्य दिगम्बर जैनों का अति प्राचीन मंदिर है। कुछ भी हो, यहाँ आने पर ज्योति यात्रा के सहयोगी महानुभावों ने अपने को धन्य माना और विशाल स्वागत सभा तथा जुलूस के साथ यहाँ का प्रवर्तन सम्पन्न हुआ। भावनगर का भाव जगा थापूज्य मुनिराज श्री वैरागसागरजी एवं मुनि श्री सिद्धान्तसागरजी के पावन सानिध्य को पाकर भावनगर तो यूं ही वैराग्य भावों में डूबा हुआ था। ज्ञानज्योति रथ के वहाँ पदार्पण होने पर वह भाव और भी वृद्धिंगत हो उठा। इस कृत्रिम समवशरण के पहुंचते ही प्रत्येक नगर में न मालूम कहाँ से जनता की अपार भीड़ इकट्ठी हो जाती थी। भावनगर में भी यही हुआ, देखते ही देखते नगर निवासियों का समूह एक विशाल सभा में परिवर्तित हो गया। ज्योतिरथ के संचालक पंडित श्री सुधर्मचंदजी शास्त्री ने अपने प्रवचन में प्रवर्तन के उद्देश्य बतलाये तथा मुनिद्वय ने मंगल आशीर्वाद में जनसमूह को संबोधित किया। शोभायात्रा में हजारों नर-नारी का केशरिया लिबास इन्द्रपुरी सदृश दृश्य उपस्थित कर रहा था। भावनगर में ज्ञानज्योति जलस के साथ मुनि श्री विरागसागर जी एवं मुनिश्री सिद्धांतसागर जी। इसी मांगलिक प्रसंग पर मुनिराजों के चरणों में हस्तिनापुर पधारने हेतु श्रीफल भी अर्पित किये गए। इसी भावनगर जिले के सोनगढ़ नगर में भी २१ सितम्बर को ज्योतिरथ पहुँचा, जो कानजी भाई की चर्चित कर्मभूमि है। यहाँ कानजी भाई की प्रेरणा से निर्मित अनेक निर्माण स्थल हैं। ज्योतिरथ के पधारने पर यहाँ के सभी आश्रमवासियों सहित ब्र. चंपा बहन ने ज्योतिरथ का अवलोकन किया, पश्चात् ज्योति यात्रा अपने गन्तव्य की ओर चल पड़ी। मुख्यमंत्रीजी आए२३ सितम्बर को बड़ौदा (गुजरात) में गुजरात प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री माधव सिंह सोलंकी ने पधार कर भारत की प्रधानमंत्री द्वारा प्रवर्तित ज्ञानज्योति का सोनगढ़ में ज्ञानज्योति का अवलोकन करती हुई वहाँ के आश्रम की बहनें। भावभीना स्वागत किया तथा अपने स्वागत भाषण में उन्होंने कहा Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy