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गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ
DITORIAL
चन्द्रकिरण सम शीतल वाणी- ।
आज की सभा के प्रमुख आकर्षण परमपूज्य १०८ मुनि श्री निजानंदसागर महाराज ने विशाल जनसभा को एवं ज्ञानज्योति को अपना मंगल आशीर्वाद देते हुए कहा
"ज्ञानज्योति की गूंज तो बहुत दिनों से कानों में सुनाई दे रही थी, किन्तु प्रत्यक्ष रूप से देखने का अवसर आज ही प्राप्त हुआ है। पूज्य आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी ने अपने नाम के अनुसार काम करके आज बड़े-बड़े मुनियों को भी पीछे कर दिया है। मैंने अपने गुरु दयासागर महाराज (आचार्य श्री धर्मसागरजी के शिष्य) से कई बार ज्ञानमती माताजी की प्रशंसा के संस्मरण सुने हैं।
यूं तो माताजी द्वारा रचित विशाल साहित्य ही उनकी ज्ञानप्रतिभा को अहमदाबाद में प्रादेशिक गृहमंत्री श्री प्रबोध भाई रावल को तिलक करते हुए संचालक पं. श्री सुधर्मचंद जी शास्त्री।
दर्शाता है, किन्तु इस ज्ञानज्योति रथ ने देश भर में एक नया विषय लेकर सभी का ध्यान अब हस्तिनापुर की ओर केन्द्रित कर दिया है . . . . . मेरा तो आप
सबके लिए भी यही कहना है कि अपने नाम को काम के द्वारा सार्थक कर संसार में एक कीर्तिमान स्थापित करें। पूरे गुजरात प्रान्त में खूब उत्साहपूर्वक रथ का भ्रमण कराएं और जन-जन में ज्ञान चेतना फैलाएं, यही मेरा आप सभी के लिए मंगल आशीर्वाद है। ___अहमदाबाद ज्ञानज्योति प्रवर्तन के समय कोबा आश्रम से श्री आत्मानंदजी सोनी, श्री मीठालालजी कोठारी, संरक्षक, गुजरात प्रांतीय समिति, कार्याध्यक्ष श्री सौभागमलजी कटारिया, महामंत्री, श्री अमृतलालजी दोषी तथा केन्द्रीय समिति के महामंत्री ब्र. श्री मोतीचंद जैन, श्री त्रिलोकचंद जैन सनावद, पं. सुधर्मचंद शास्त्री (संचालकजी), श्री अनोपचंदजी बड़वाह एवं नवल चंदजी चौधरी सनावद आदि महानुभाव भी उपस्थित थे। तलोद में ज्योतिनरोडा, दहेगांव और रखियाल होती हुई ज्ञानज्योति तलोद (साबरकांठा) में १५ अगस्त, १९८४ को पहुँचती है। पं. श्री कोदरलाल जी के धार्मिक उपदेशों से गुजरात प्रवर्तन समिति के समर्पित कार्यकर्तागण श्री मीठालाल जी कोठारी, श्री सौभागमल प्रशिक्षित इस नगरी में देवशास्त्र, गुरु भक्त समाज की बहुलता है। यहाँ की
अमृतलाल दोषी । साथ में है-श्री त्रिलोकचंद जैन सर्राफ, मोतीचंद जैन, श्री अनोपचंद जी
नवलचंद चौधरी, सनावद आदि। दीर्घकाय भीड़ अपनी श्रद्धा भक्ति का आज भरपूर प्रदर्शन कर रही थी।
श्री अम्बूभाई देसाई ने यहाँ ज्योति यात्रा का उद्घाटन किया। इस प्रवर्तन को लिखते हुए मुझे स्मरण आया कि मैं ब्रह्मचारिणी (कु. माधुरी) अवस्था में हस्तिनापुर से आचार्यरत्न श्री विमलसागर महाराज के संघ को हस्तिनापुर पधारने हेतु निमंत्रण देने गई थी। संघ उस समय गिरनारजी सिद्धक्षेत्र पर चातुर्मास में ठहरा हुआ था। मेरे साथ में संघस्थ कु. बीना जैन एवं श्री जिनेन्द्र कुमार जैन, शाहपुर (जि. मुजफरनगर, उ.प्र.) भी थे। अहमदाबाद से टैक्सी द्वारा गिरनारजी जाते समय रास्ते में ज्ञानज्योति रथ देखकर हम लोग तलोद उतरे और वहीं सायंकालीन जलपान भी लिया था। पुनः शाम को ही चलकर रात्रि में १२ बजे हम लोग गिरनारजी पहुंचे और दूसरे दिन आचार्यसंघ के चरणों में श्रीफल चढ़ाकर सन् १९८५ में होने वाले हस्तिनापुर के विशाल जम्बूद्वीप पंचकल्याणक महोत्सव में पधारने हेतु निवेदन किया, किन्तु उस समय संघ हस्तिनापुर न पहुँच सका, अतः उसके पश्चात् मार्च सन् १९८७ में उस संघ का हस्तिनापुर आगमन हुआ तथा उसी समय ब्र. मोतीचंदजी ने क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण कर मोतीसागर नाम प्राप्त किया। गुजरात प्रान्तीय ज्योती यात्रा की इस स्वागत श्रृंखला में हिम्मतनगर में १७ अगस्त को श्री जिलाधीश महोदय ने पधारकर रथ का उद्घाटन किया। टाकाटूका में १९ अगस्त, ८४ को मुनिराज श्री वीरसागर महाराज का सानिध्य प्राप्त हुआ।
२२ अगस्त को ईडर नगर में अभूतपूर्व स्वागत सभा एवं शोभायात्रा सम्पन्न हुई। तारंगाजी सिद्धक्षेत्र के २३ अगस्त को दर्शन हुए। ज्योतीरथ के साथ पधारे समस्त महानुभावों ने पर्वतराज की सामूहिक वंदना की।
दाता, सुदासणा, मेहसाणा आदि स्थानों में भ्रमण करती हुई ज्ञानज्योति २७ अगस्त, ८४ को कलोल पहुँची। यहाँ सभा को सम्बोधित करने
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