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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
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के समक्ष झलकने लगता है तथा उसके साथ ही स्वतंत्र भारत की पृष्ठभूमि में छिपे अहिंसा रूपी अस्त्र का स्मरण भी आये बिना नहीं रहता। एक कवि ने भारत के नागरिकों को अपने अमर शहीदों की स्मृति दिलाते हुए भविष्य में इस देश की रक्षा का भार उन पर डालते हुए ही मानो कहा है
"हम लाये हैं तूफान से किश्ती निकालके,
इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के।" गुजरात की उस ऐतिहासिक धरा पर राजधानी दिल्ली से प्रवर्तित ज्ञानज्योति लगभग ८०० दिनों की भारत यात्रा के पश्चात् अहिंसा की मंगल ज्योति जलाने पहुंचती है।
९ अगस्त, १९८४ को दाहोद नगर से उसका प्रान्तीय प्रवर्तन प्रारंभ हुआ, जिसका उद्घाटन करने हेतु आदिम जाति कल्याण विभाग मंत्री श्री नायकजी एवं गुजरात राज्यमंत्री श्री ललित भाई पटेल पधारे। आज की स्वागत सभा में मुख्य अतिथि बने-श्री एस.के. नंदा, आई.ए.एस. कलेक्टर पंचमहाल।
आशातीत सफलताओं के साथ दाहोद की शोभायात्रा सम्पन्न हुई। श्री कन्नूभाई ने भी पधारकर ज्योति का स्वागत किया और प्रांतीय प्रवर्तन समिति के तत्त्वावधान में ज्योति यात्रा आगे अपने गन्तव्य की ओर बढ़ चली। अहमदाबाद में अभूतपूर्व स्वागतमध्यप्रदेश प्रवर्तन के समय से ही अहमदाबाद के धर्मबंधु जिस ज्ञानज्योति के स्वागत की बेसब्री से इंतजारी कर रहे थे, सो वह १२ अगस्त, १९८४ की रविवार को वहाँ पहुँची। पूरा शहर तोरण द्वारों, केशरिया झण्डों एवं विभिन्न प्रचारात्मक वस्तुओं से सजाया गया था। टाउन हॉल में आयोजित विशाल जन सभा में उस दिन पुण्ययोग से मुनि श्री निजानन्दसागरजी महाराज एवं क्षुल्लक गुजरात प्रांत में दाहोद से ज्ञानज्योति के प्रांतीय प्रवर्तन का उद्घाटन श्री धवलसागरजी का मंगल सानिध्य भी प्राप्त हो गया, जिससे जीते-जागते समवशरण सदृश ही दृश्य उपस्थित हो रहा था।
नेता भी स्वागत को आएगुजरात सरकार के गृहराज्य एवं शिक्षामंत्री श्री प्रबोध भाई रावल ने पधारकर ज्योतिरथ का सूक्ष्मता से अवलोकन किया तथा सभा में मुख्य अतिथि का पद सुशोभित किया।
श्री चिमनभाई पटेल दैनिक अखबार 'संदेश' के मैनेजिंग डायरेक्टर ने अहमदाबाद में ज्योतिरथ का उद्घाटन किया। पचासों हजार नर-नारी पुष्पवृष्टि, गर्वानृत्य, लोकनृत्य आदि करते एवं देखते हुए शोभा याग में चल रहे थे। सार्थक ये क्षण मेरे अपने
श्री रावलजी ने विशाल जनसमूह को संबोधित करते हुए कहा कि "आप लोग अहमदाबाद में ज्ञानज्योति की विशाल सभा को संबोधित करते हुए मुनि श्री निजानंद
तो सौभाग्यशाली हैं ही, क्योंकि हृदय से आपने इस ज्योति का सत्कार किया सागर महाराज एवं क्षुल्लक श्री धवलसागर जी।
है। आपके आमंत्रण पर यहाँ आकर मैं भी आज के इन क्षणों को अपने जीवन के सर्वाधिक अमूल्य क्षण समझता हूँ। शिक्षा के प्रचार में ज्ञानमती माताजी का जो योगदान देश को मिल रहा है, उससे उनकी कीर्ति सदैव अमर रहेगी।
श्री चिमनभाई पटेल ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा
___"यद्यपि मैंने इस ज्ञानज्योति की प्रेरणास्रोत ज्ञानमती माताजी के प्रत्यक्ष दर्शन नहीं किए हैं, किन्तु इस ज्योति रथ का अवलोकन करने से संचालकों से प्रवर्तन के प्रभावी उद्देश्य जानकर स्वयमेव उनकी महान् प्रतिभा का अनुमान लग जाता है। वे हमारे देश की एक महिलारत्न हैं। उनके व्यापक दृष्टिकोण से देशवासियों में निश्चित ही एकता तथा ज्ञान की लहर आयेगी।...."
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