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गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ
वहाँ के ओजस्वी प्रवचन से लगता नहि उन्हें बुढ़ापा था। विद्वान जगत में सिंहनाद करने वाला वह वक्ता था ॥ २३ ॥
प्रान्तीय प्रवर्तन समिती के सारे पदाधिकारी आए। नगरी की गरिमा देख सभी के मनमयूर भी हर्षाये ॥ पंद्रह से सत्रह मई हुई जब ज्योति प्रवेश नगर में था।
प्रातः से ही चल पड़े सभी नहिं कोई शेष नगर में था ॥ २४ ॥ मोटर साइकिलों पे केशरिया झण्डे लेकर सौ युवक चले। दुल्हन-सी सजी उस नगरी में हैं आज असंख्यों दीप जले॥ पाण्डाल विशाल बना जिसमें ज्योती की स्वागत सभा हुई। शोभायात्रा के लिए इन्द्र और इन्द्राणी की बोलियाँ हुईं ॥ २५ ॥
अर्थाञ्जलि के संग भावाञ्जलि अर्पण करने का दिन आया। नगरी की जनता को पुष्पांजलि करने का अवसर आया । केन्द्रीय प्रवर्तन समिति के लोगों का भी सम्मान हुआ।
प्रान्तीय समिति ने सफल प्रवर्तन कर सबका सम्मान लिया ॥ २६ ॥ इस शुभ अवसर पर नगर विधायक श्री कैलाशचन्द आए। बहुमान्य अतिथियों ने आकर निज भाव पुष्प भी बिखराए । बाजों की मधुर ध्वनी व भजन मंडलियों से नगरी गूंजी। शोभायात्रा में द्वार-द्वार स्वागत करने जनता पहुँची ॥ २७ ॥
इतिहास अमर हो गया यहाँ का युग युग तक बतलाएगा। माँ ज्ञानमती की ज्योति यहाँ आई थी यह बतलाएगा ॥ इंदरचंदजी चौधरी सनावद का यह अथक परिश्रम था।
मोतीचंद के लघुभ्रात प्रकाशचंद का कठिन परिश्रम था ॥ २८ ॥ श्री विमलचंद व त्रिलोकचंद, श्रीचंद, नवलचंद आदि सभी। आयोजन सफल बनाने में गणमान्य व्यक्ति की कमी नहीं ॥ मोतीचंदजी के पिता अमोलकचंद माता रूपाबाई। इस घर में आज विशेष रूप से थी मानो खुशियाँ छाई ॥ २९ ॥
बाहर से आये अतिथियों ने तीरथयात्रा का लाभ लिया। सिद्धवरकूट, बड़वानी, पावागिरी, ऊन का दर्श किया। इस यात्रा के पश्चात् अतिथि गण अपने घर की ओर चले।
अपनत्व के ये मधुरिम क्षण जीवन में सदैव संस्मरण बने ॥ ३० ॥ इस कार्यक्रम के बाद ज्योतिरथ ने बड़वाह विहार किया। स्वागत बैनर, ध्वज, तोरण से युत नगरी ने सत्कार किया ॥ सिद्धवरकूट श्री सिद्धक्षेत्र उन्नीस मई को रथ आया। सब आस-पास के शहरों से स्वागत को जनसमूह आया ॥ ३१ ॥
इंदौर में उद्घाटनकर्ता श्री देव कुमार सिंहजी थे। श्री लालचंदजी मित्तल महापौरजी नगर निगम भी थे। श्री बाबूलालजी पाटोदी कार्यक्रम के संयोजक थे। यहाँ बने काँच मंदिर का दर्शन कर सबके मन हर्षित थे॥ ३२ ॥
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