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________________ ४२] वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला पूज्य माताजी एक प्रेरणा स्रोत हैं -महावीर सिंह त्यागी, जिला अध्यक्ष भारतीय जनता पार्टी, मेरठ पूज्य आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी का सान्धिय १९९१ के सरधना चातुर्मास के समय प्राप्त हुआ। आपके प्रवचन सुने। आपके बारे में जानकारी प्राप्त हुई। ___आप जैन समाज तो क्या, अपितु समस्त भारतीय दर्शन की प्रकाण्ड विदुषी हैं, ज्ञान का अगाध भंडार हैं, आपकी त्याग-तपस्या उच्च-कोटि की है। आपने हस्तिनापुर के जंगल की भूमि पर जम्बूद्वीप की रचना करवाकर भारतीय समाज को जम्बूद्वीप को समझने में एक सरलता प्रदान की तथा वेदों व शास्त्रों के प्रति आस्था पैदा की। मेरी हार्दिक कामना है कि आप दीर्घायु रहें और ज्ञान का प्रकाश फैलाती रहें। विनयांजलि -नरेन्द्र कुमार जैन, कोषाध्यक्ष-प्रदेश परिषद्-भाजपा [मेरठ जिला] भारत वसुन्धरा पर परम पूज्य गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी ने जन्म लेकर इस शती में अलौकिक कार्य किये हैं जिन्हें भारतीय जैन जैनेतर समाज कभी नहीं भूलेगा। आपने ऐतिहासिक स्थल हस्तिनापुर में जम्बूद्वीप की रचना को साकार रूप देकर वर्तमान पीढ़ी को सोचने-समझने का अवसर प्रदान किया। आपकी प्रेरणा से आज हस्तिनापुर देश-विदेश के पर्यटकों का दर्शनीय एवं वन्दनीय स्थल बन चुका है। आपका ज्ञान कोष अपार है। आपने न्याय-शास्त्र के अनेक ग्रन्थ लिखे हैं साथ ही शताधिक ग्रन्थों का लेखन, अनुवादन, सम्पादन किया है। आप त्याग तपस्या की प्रतिमूर्ति हैं। आपकी कीर्ति देश-विदेश में सुरभि की तरह है। मेरी आपके प्रति विनयांजलि है कि जिस त्याग के मार्ग पर आप हैं उसी मार्ग पर चलकर ज्ञान की ज्योति फैलाती रहें। प्रतिभाशाली विदुषी माता - संहितासूरि ब्र० सूरजमल बाबाजी, निवाई पू० गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी बाल्यकाल से ही प्रतिभाशाली-विदुषी हैं, आपके लिखे हुए ग्रन्थ विद्वत्तापूर्ण हैं। आपकी गति न्याय, व्याकरण आदि सभी विषयों में है। कविता बनाने में भी आप पारंगत हैं; जितनी भी आपकी कविताएँ हैं सब ही रसपूर्ण एवं ओजस्वी हैं। कई तरह की विधान पूजाएँ बना दी, जो हिन्दी भाषा में उपलब्ध भी नहीं थीं। आपके द्वारा रचे हुए हिन्दी पूजन विधानों से आम जनता लाभ उठा रही है। हर व्यक्ति विधानों का पूजन बड़ी रुचि के साथ करके अपने को धन्य समझता है। यह सब पूज्य माताजी की देन है। पूज्य माताजी की विद्वत्ता की प्रशंसा जितनी भी की जाये, थोड़ी है। आप स्वास्थ्य नरम रहते हुए भी निरन्तर ज्ञानोपयोग में लगी रहती हैं। मैं भगवान से प्रार्थना करता हूँ कि पूज्य माताजी शतायु होकर हमें सम्यग्ज्ञान देती रहें, यही मेरी विनयांजलि है। Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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