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________________ गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ [४१ अवर्णनीय व्यक्तित्व - अक्षय कुमार जैन [भू.पू. संपादक] नवभारत टाइम्स, नई दिल्ली पूज्य गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी के सम्मान में अभिवंदन ग्रन्थ प्रकाशित हो रहा है, यह जानकर प्रसन्नता हुई। पूज्य माताजी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर तो कुछ भी लिखना असंभव-सा है; क्योंकि जैन जगत् पर उनके अनन्य उपकार हैं। उनकी गरिमा के अनुरूप ही अभिवंदन ग्रन्थ प्रकाशित हो यही मेरी मंगलकामना है। मैं पूज्य माताजी के चरणों में अपनी विनम्र विनयांजलि अर्पित करता हूँ। मंगलकामना - प्रो० सुरेश कुमार चौहान, कुलपति, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन ४५६ ०१० यह जानकर प्रसन्नता हुई कि दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान द्वारा अकादमिक गतिविधियों की प्रेरणा स्रोत, विश्व में अद्वितीय जम्बूद्वीप रचना की प्रेरिका, १२५ से अधिक ग्रन्थों की कवयित्री परमपूज्य गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने के भाव से एक वृहद् अभिनंदन ग्रंथ का प्रकाशन किया जा रहा है। यह प्रयास सराहनीय है। ___मैं प्रकाशन समिति के सदस्यों को अपनी ओर से बधाई देता हूँ तथा अभिवंदन ग्रंथ के प्रकाशन की सफलता के लिये मंगलकामनाएं प्रेषित करता हूँ। "दिव्य व्यक्तित्व से मैं परिचित हूँ" -कल्याणमल लोढा-कलकत्ता भूतपूर्व कुलपति, जोधपुर विश्वविद्यालय परमपूज्य गणिनी आर्यिकारत्न ज्ञानमती माताजी के दिव्य व्यक्तित्व से मैं परिचित हूँ। उन्होंने जैनधर्म, संस्कृत, अध्यात्म व दर्शन के अध्ययन के नए आयाम प्रस्तुत किए हैं। साथ ही इन्होंने लोक प्रचारार्थ एवं सर्वजनहिताय महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। मेरी मान्यता है कि ऐसे पुनीत ग्रन्थ समस्त समाज के लिए प्रेरणादायक होते हैं और उसे नदीन एवं रचनात्मक दृष्टि से सम्पन्न करते हैं। हस्तिनापुर जैन संस्कृति और धर्म का तीर्थ है। श्रीदिगंबर जैन त्रिलोक शोध संस्थान ने जैन समाज की अनेक प्रकार से सेवा व संकल्प साधना की है। प्रस्तुत ग्रंथ की योजना भी एक विशिष्ट कार्य है। आज विश्व में - अनेक राष्ट्रों में जैनधर्म व दर्शन के प्रति नई जागरूकता व चेतना व्याप्त हो रही है। हिंसा, प्रदूषण, प्रतिस्पर्धा की विसंगतियों में जैनधर्म के सिद्धान्तों को अपनाने का नया वातावरण बन रहा है। अहिंसा के लिए सभी वर्ग समर्पित होना चाहते हैं। हाल ही में नागाशाकी और हिरोशिमा पर गिरे अणुबम की दुःखद स्मृति चिह्न के रूप में एक शिला खंड भारत आया है। अमेरिका में महात्मा गाँधी की प्रतिमा स्थापित करने की योजना है। प्रायः सभी वैज्ञानिक भी आज अहिंसक समाज की संरचना के लिए कटिबद्ध हैं। विज्ञान और तकनीकी युग की विभीषिका ने मनुष्य को जड़ मशीन बना दिया है और भौतिक तत्त्वों की लालसा व कषायों ने उसे पाश्विक । एक ही मार्ग है इसके घातक परिणामों से बचने का- वह है हमारे तीर्थंकरों, आचार्यों, साधु व साध्वियों द्वारा अपनाया गया मार्ग। आपकी संस्था द्वारा प्रकाशित अभिवन्दन ग्रन्थ इसी परम्परा और मार्ग का एक मील का पत्थर बनेगा यह मेरा विश्वास है। Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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