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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
विनयांजलि
- श्री डालचन्द जैन, सागर [पूर्व सांसद]
श्रद्धेय गणिनी आर्यिकारत्न श्री १०५ ज्ञानमती माताजी, समाज की उन महिलाओं में से हैं जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन त्याग के साथ समाज को समर्पित कर दिया। हस्तिनापुर में जैन दर्शन के प्रचार-प्रसार के लिये त्रिलोक शोध संस्थान एवं जम्बूद्वीप की स्थापना अपने क्षेत्र में अद्वितीय है, जो युगों-युगों तक प्रकाश स्तम्भ की तरह जैन दर्शन का दिग्दर्शन कराती रहेगी।
मैं श्रद्धेय माताजी को विनयांजलि अर्पित करता हुआ, उनके स्वस्थ एवं दीर्घायु जीवन की मंगल-कामना करता हूँ।
अज़ीम इन्सान
- पद्यश्री हकीम सैफुद्दीन अहमद-मेरठ [सलाहकार स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय भारत सरकार]
यह जानकर मुझे खुशी हुई कि आप ज्ञानमती माताजी के सिलसिले में एक किताब शाये कर रहे हैं। श्री महावीरजी के पैगाम "जिओ और जीने दो" की आज ज्यादा जरूरत है और इसी पैगाम की अशायत के लिए माताजी बराबर लगी हुई हैं। वह न सिर्फ जैन समाज की, बल्कि पूरी इन्सानियत की खिदमत कर रही है। जो काबिले कद्र है।
"उनका पैगाम है “मोहब्बत जहाँ तक पहुँचे" मुझे फखर है कि ऐसे अज़ीम इन्सान की खिदमत का मौका मुझे उनकी बीमारी के जमाने में मिला।
विनयांजलि
-मिलापचंद जैन न्यायाधीश, दिल्ली
अत्यन्त हर्ष का विषय है कि भारतीय दिगम्बर जैन समाज ने दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान के माध्यम, तत्त्वावधान व नेतृत्व में परम पूजनीय, परम विदुषी, जैन साध्वी, गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी की बहुआयामी सेवाओं तथा आध्यात्मिक जीवन के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने के भाव से एक वृहद अभिवन्दन ग्रन्थ प्रकाशित करने का निश्चय किया है। ऐसे ग्रन्थ के प्रकाशन से पूज्य माताजी के विषय में जैन व जैनेतर सभी लोगों को जानकारी प्राप्त होगी और उससे वे लाभान्वित होंगे व सही दिशा व सही मार्ग पाकर जीवन में उस पर अनुसरण कर सकेंगे व आत्म कल्याण के मार्ग पर आगे बढ़ेंगे।
मुझे भी जीवन में पूज्य माताजी के पावन दर्शनों का हस्तिनापुर में स्वर्णिम सुअवसर व सुयोग मिला था। जम्बूद्वीप व कमल मन्दिर की मनोहारी रचना से उस शान्त व निस्तब्ध वातावरण से मैं अत्यन्त प्रभावित हुआ। पूज्य माताजी ने 'न्याय प्रक्रिया में धर्म का स्थान, विषय पर मेरे विचार पूछे। प्रश्न के उत्तर में मैंने यही कहा कि न्याय का धर्म ही आधार है। धर्म रहित न्याय, न्याय नहीं है। न्याय अधर्म पर आधारित नहीं हो सकता। यह सही है कि न्यायालयों में न्याय विधि के अनुरूप व अनुकूल ही किया जाता है उसके विपरीत नहीं। किन्तु विधि की संरचना धर्मानुकूल व समाज हित के अनुसार ही होती है।
पूज्य माताजी ने विपुल जैन साहित्य की रचना की है जिसके परिशीलन व अनुपालन से जीवन आलोकित हो सकता है। वे ज्ञान की भण्डार हैं। इसके साथ उनका जीवन त्याग, तपस्या व साधना का जीवन है वे आत्मोन्मुखी हैं, उनका आध्यात्मिक जीवन प्रेरणादायक है। ऐसी महान आत्मा के चरणों में मेरा शत शत नमन, वन्दन व अभिवन्दन ग्रन्थ के सफल प्रकाशन के लिए हार्दिक शुभ कामनाएं
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