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________________ गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ [३९ विनयांजलि - नेमीचन्द जैन संस्कृति प्रधान देश भारतवर्ष में चिरकाल से धर्म एवं राजनीति का समन्वय रहा है। शासक राष्ट्र की सीमाओं की रक्षा हेतु प्रयत्न करने के साथ ही नागरिकों के धर्मानुकूल आचरण एवं सुख शान्तिपूर्वक निराकुल जीवन यापन में आने वाली बाधाओं को दूर करते हैं। धर्मगुरु, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक जीवन को नेतृत्व प्रदान कर न केवल प्रजा अपितु राजा को सत्य-असत्य, कृत्य-अकृत्य का बोध कराकर उन्हें समाज एवं राष्ट्र के प्रति कर्तव्यों के निर्वाह हेतु आदेशित करते रहे हैं। परम पूज्य गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमतीजी हमारे समाज की एक ऐसी ही वरिष्ठ साध्वी हैं जिनसे हमारे देश के कर्णधारों को सतत मार्गदर्शन, प्रेरणा एवं आशीर्वाद प्राप्त होता रहा है। खारवेल नरेश एवं श्राबस्ती नरेश वीर सुहेलदेव राय द्वारा अहिंसा के वास्तविक रूप को हृदयंगम कर हिन्दू संस्कृति के संरक्षण हेतु किये गये प्रयास वर्तमान राजनेताओं के लिए आर्दश हैं। पूज्य माताजी राजनेताओं को इतिहास के माध्यम से ऐसे प्रसंग बताकर उन्हें नैतिक मूल्यों की स्थापना एवं शाकाहार के प्रचार हेतु प्रेरित करती रहती हैं। जैन धर्म ग्रन्थों में ही नहीं, अपितु श्रीमद्भागवत्, वायुपुराण, अग्निपुराण आदि वैदिक परम्परा के ग्रंथों तथा अभिधर्म कोश आदि ग्रन्थों में जिस जम्बूद्वीप का वर्णन है तथा "जम्बूद्वीपे, आर्यावर्ते, भरतखण्डे, भारत नाम देशे.... आदि" संकल्प मंत्र में हम जिस जम्बूद्वीप एवं भरत क्षेत्र का श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हैं उस जम्बूद्वीप की सम्पूर्ण प्रतिकृति बनवाकर हम सब आस्थावान् नागरिकों एवं प्राचीन भूगोल में रुचि रखने वाले विशेषज्ञों पर महान् उपकार किया है। शताधिक ग्रन्थों की रचयित्री, जम्बूद्वीप की पावन प्रेरिका, परम विदुषी गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमतीजी के चरणों में शतशः नमन । ज्ञानपुञ्ज - डी०डी० सारस्वत, क्षेत्राधिकारी, [मेरठ] उ०प्र० मुझे हार्दिक प्रसन्नता हुई कि आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी जो कि अपने आपमें एक ज्ञानपुञ्ज के समान हैं। उनके अमूल्य प्रवचन एवं दर्शन से मानव समाज आज के इस युग में लाभान्वित हो रहा है। पूज्य माताजी के सम्मान में एक अभिवंदन ग्रंथ प्रकाशित किया जा रहा है यह बहुत अच्छा कार्य है। मैं इस पुनीत कार्य में आपके साथ हूँ और मेरी ईश्वर से कामना है कि माता ज्ञानमतीजी के आध्यात्मिक विचारों से लम्बे समय तक हम लाभान्वित होते रहें। मंगलकामना - जयनारायण सिंह थानाध्यक्ष-हस्तिनापुर [मेरठ] उ०प्र० जम्बूद्वीप रचना की पावन प्रेरिका परम पूज्य १०५ गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी ने हमारे जैन व जैनेतर समाज को एकता, अहिंसा, नैतिकता, साम्प्रदायिक सद्भाव आदि का सन्देश देकर मानव मात्र को जीने की नई दिशा प्रदान की है । जहाँ साहित्य, ग्रन्थ स्तुतियों, धार्मिक उपन्यास आदि की संरचना करके मानव को धर्म के प्रति विश्वास एवं ईश्वर में लीन होकर अंधकार से प्रकाश की ओर चलते रहने के लिए अग्रसर किया है वहीं बाल साहित्यों की रचना करके बच्चों को देश के प्रति प्रेम, सभी जीवों पर दया, सादा जीवन उच्च विचार के पथ पर चलने के लिये प्रेरित किया है। अतः श्री ज्ञानमती माताजी का जीवन देश-धर्म-संस्कृति एवं आत्म साधना के लिए समर्पित है। मैं कामना करता हूँ कि पूज्य माताजी दीर्घायु होकर जैन एवं जैनेतर समाज को अपनी असाधारण प्रतिभा से पथ-प्रदर्शित करती रहें। Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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