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________________ वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला [६११ पंडित सुधर्मचन्दजी शास्त्री का जन्मग्राम कहलाता है। इस नगरी से जुड़ गई नये संचालकजी की गाथा है ॥ १७ ॥ कटनी में एक विधायकजी का भाग्य खिल गया था उस दिन। बैंडों की मधुर ध्वनी ने ज्योतीरथ सत्कार किया जिस दिन ॥ रीठी के भीष्म सहाय विधायक ने पुष्पों का हार लिया। अपनी नगरी में आई ज्ञान ज्योति का खूब प्रचार किया ॥ १८ ॥ बड़गांव तथा सिहुड़ी बाकल से बहुरीबन्द तीरथ पहुंची। श्री शांतिनाथ के अतिशय स्थल के दर्शन कर ज्योति जगी॥ संभाग जबलपुर का यह सफल प्रवर्तन यहीं समाप्त हुआ। सागर संभाग चली ज्योती सहयोग सभी का प्राप्त हुआ॥ १९ ॥ [२] सन् चौरासी के चार मार्च को जिला दमोह सिंगरामपुरा । मंगल प्रवेश से ज्ञानज्योति के मानो हुआ सवेरा था । सिंगरामपुरा व जवेरा में सरपंचों ने सत्कार किया। संचालकजी के प्रवचन में जनता ने जय-जयकार किया ॥ २० ॥ विद्युत प्रकाश फौव्वारों का जब हुआ प्रदर्शन रात्री में। तब नगर अभाना का विशाल मेला उमड़ा था रात्री में ॥ हस्तिनापुरी का लघु रूपक ही इस रथ में दर्शाया है। जिसने अपने आकर्षण से शुभ ज्ञानामृत वर्षाया है ॥ २१ ॥ लक्ष्मी भंडार जबलपुर के दादा सुमेरचंद संग रहे। श्री सेठ भूरमलजी भी अब इस ज्ञानज्योति के अंग बने। मोतीचंदजी शास्त्री सुधर्मचंद पंडित जी भी रहते थे। सब समय-समय पर ज्योति सभा को ही संबोधन करते थे॥ २२ ॥ छह मार्च दमोह ज्योति आई सारा जनमानस उमड़ पड़ा। बांदकपुर, हटा, पटेरा में नैतिकता का सम्मान बढ़ा। अनुभागीय अधिकारी निर्मलजी जैन हटा में आए थे। श्री भागचंद भागेन्दू ने बासा में दर्शन पाए थे ॥ २३ ॥ रात्री के ग्यारह बजे गढ़ाकोटा कार्यक्रम भव्य हुआ। इस ज्ञानज्योति में रात्री दिन का मानो भेद समाप्त हुआ। कितने शहरों में पूर्ण रात्रि तक भव्य जुलूस निकलते थे। बहुसंख्या में नरनारी इन स्वागत जुलूस में चलते थे॥ २४ ॥ जिनके मन में सम्यक्त्व ज्योति की शिखा सुदीपित रहती है। उनकी आत्माएं अंधकार में भी उद्दीपित रहती हैं। इस ज्ञानज्योति ने आशातीत सफलता जग में पाई है। इसके द्वारा बहुतों ने अपनी अन्तज्योति जलाई है ॥ २५ ॥ रहली सागर के एस.डी.ओ. साहब एवं नायकजी ने। स्वागत कर निज को धन्य किया ढाना के भी नर नारी ने ॥ Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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