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________________ वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला श्री कैलाशचंदजी चौधरी -इंदौर उपाध्यक्ष प्रांतीय प्रवर्तन समिति ने जगह-जगह अपना पूर्ण सहयोग प्रदान करने का आश्वासन दिया तथा श्री इंदरचंद चौधरी सनावद महामंत्री प्रादेशिक समिति ने पूज्य ज्ञानमती माताजी को नारियों की मसीहा बतलाते हुए कहा कि "इस ढाई हजार वर्ष के इतिहास में इस नारीरत्न ने अपने अमर कार्यों के द्वारा संसार में जो कीर्तिमान स्थापित किया है, वह युगों-युगों तक चिरस्मरणीय रहेगा।" इसी प्रकार यहाँ के 'लक्ष्मी अम्ब्रेला' व्यापार के संचालक श्री सुमेरचंद जैन (जिन्हें दादाजी के नाम से जाना जाता है) एवं श्री भूरमल जैन ने अपना सक्रिय सहयोग प्रदान किया। Jain Educationa International जबलपुर की मधुर स्मृतियों को अपने में संजोए हुए ज्योतिरथ का प्रस्थान जबलपुर संभाग की गली-कूचों में हुआ, जिसका संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है जो महा आत्माएं होतीं युग परिवर्तन कर देती हैं। भारत माता उनको पाकर निज जन्म सफल कर लेती है ॥ है वर्तमान गौरवशाली जो ऐसी ज्ञान प्रदाता हैं। निज ज्ञानज्योति से आलोकित कर रहीं ज्ञानमति माता हैं ॥ १ ॥ उनके पुरुषार्थों का प्रतीक यह शनज्योति पावन रथ है। हस्तिनापुरी में निर्मित जम्बूद्वीप इसी का प्रतिफल है ॥ नै महिने से दक्षिण भारत जिस ज्येती से अलेक्ति था वह पुनः उत्तरापथ आई अब मध्य प्रदेश प्रवर्तन था ॥ २ ॥ पहले संभाग जबलपुर से उद्घाटन हुआ ज्योति रथ का । चौरासी सन् फरवरी एक प्रारंभिक काल प्रवर्तन का ॥ चल पड़ी ज्योति यात्रा आगे पूरे प्रदेश का हित करने। जिन ग्रामों के थे नाम नहीं वे भी आए स्वागत करने ॥ ३ ॥ इक नगर सिलौड़ी का मार्मिक संस्मरण याद आया मुझको । इक नारी ने कितने दिन से शुभ आश संजोई दर्शन को ॥ सोचा था अपने हाथों से कुछ दान यथाशक्ति दूंगी। हस्तिनापुरी की रचना में अर्थांजलि मैं अपनी दूंगी ॥ ४ ॥ लेकिन होनी को इस जग में नहिं टाल कोई भी सकता है। इस मरण काल के आगे क्या कोई का वश चल सकता है ॥ नगरी में ज्योति पहुँचने से पहले ही उसका मरण हुआ । पर ज्योति प्रवर्तन बिना किन्हीं भी विघ्नों के सम्पन्न हुआ ॥ ५ ॥ परिवार की धार्मिकता देखो सबने ही रथ में भाग लिया। मृतका नारी के पूर्व भाव अनुसार उन्होंने दान दिया ॥ यह धर्मप्रेम उस परिकर की वैराग्य भावना का फल था। जिनने ऐसे वियोग क्षण में भी प्रस्तुत किया उदाहरण था ॥ ६ ॥ [६०९ चल दिया ज्योति परिवार यहाँ से सभी अमरकंटक आए। नर्मदा नदी का उद्गम स्थल लख सबके मन हर्षाए ॥ बरगी व बरेला तथा कटंगी आदिक उन सब शहरों में। करते थे जहाँ प्रतीक्षा सब पहुँची ज्योती उन नगरों में ॥ ७ ॥ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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